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बे मतलब के ख्वाब!

20 अक्टूबर 2016

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बे-मतलब के ख्वाब

नींद की गहराई में नहीं

खुली आँखों से देखे है

उन्हें पूरा करने की कोशिश

मन में खौफ पैदा करती है

यह ही सोचकर कदम

आगे नहीं बढ़ाता

कहीं दायरे न लाँघ जाऊं

दायरे, ईट-दीवारों की नहीं

सामाजिक परम्पराओं की है

पारिवारिक उसूलो की है

मानो पिंजड़े में कैद

एक पंख फड़फड़ाता पंछी

खुले आसमान में

उड़ना चाहता है

पर डरता है

कहीं उड़ान

इतनी ऊँची न हो जाए

की जमीनी सच्चाई

पर उतरना

न-मुनासिब हो जाएarticle-image

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