यह मिट्टी ही तो है जो हमें स्वाभिमानी बनाती है
इसे फिर हटाओ फिर आती है ,फिर हटाओ फिर आती है
अरे रुको इससे पूछो यह कहना चाहती है
यह मिट्टी तो है जो हमें स्वाभिमानी बनाती है
अरे यह तो आंखों में भी आती है, हवा से उड़ उड़ के आती है इसे फिर हटाओ फिर आती है ,फिर हटाओ फिर आती है
यह मिट्टी ही तो है जो हमें स्वाभिमानी बनाती है
यह दुनियां बावली है ,जो इस पर मार्बल लगाती है
यह तो मार्बल पर पे भी आती है
पैरों से चिपक चिपक के आती है
इसे फिर हटाओ फिर आती है, फिर हटाओ फिर आती है
यह मिट्टी ही तो है जो हमें स्वाभिमानी बनाती है
यह दुनिया बावली है जो इस पर बिस्तर लगा के सोती है
यह तो बिस्तर पे भी आती है
पैरों से चिपक चिपक के आती है
इसे फिर हटाओ फिर आती है फिर हटाओ फिर आती है
मिट्टी ही तो है ,जो हमें स्वाभिमानी बनाती है
और यह ,यही कहना चाहती है
कहां तक भागेगा इंसान
चिपका रह मुझसे
जुड़ा रह मुझसे
तेरा शरीर भी एक माटी है
तेरा शरीर भी एक माटी है