शाम का समय है। आकाश की लालिमा धरती तक फैल चुकी है। नदी का पानी शाम की लालिमा में रंग चुका है। पेड़ों पर सारे पंछी अपने अपने घोंसले में आकर चहचहाने लगे हैं ।ठंडी हवा चल रही है।
हिमालय के खूबसूरत पहाड़ों में प्रकृति दुल्हन बन कर बैठे हैं। शवेत पहाड़ों के बीच नदी और झरना आगे बढ़ते हुए ,पत्थरों से टकराते हुए ,अपना मधुर संगीत प्रकृति को दे रहे हैं। समय-समय पर बर्फ की वर्षा इनके सौंदर्य को और बढ़ा रही है। ऐसी खूबसूरत प्रकृति के बीच एक छोटा सा कस्बा सा गांव है।
मुग्धा ओ मुग्धा कहां चली रुक तो मुग्धा के पीछे पीछे दौड़ती रेनू बोली "मेरी तो सांस फूल रही है अब मैं नहीं दौड़ सकती", "तो तू चल के आ दौड़ने को कौन बोला" ?मुग्धा ने कहा" मैं तो इन हवाओं के साथ उड़ रही हूं"।
हिरनी की तरह दौड़ती हुई मुद्दा नदी के किनारे पर आकर एक शीला पर बैठ गई। और अपने पांव नदी में डाल कर पानी के साथ अटहेलीया करने लगी, मानो कोई प्रेमिका अपने प्रेमी के साथ मस्ती के रंग उड़ा रही हो।
पीछे से रानू आई और गुस्से से तिल मिलाकर बोली "आज के बाद कभी तेरे साथ ना आऊंगी, मां को बोलकर मेरे साथ घर से निकलती है ।और फिर गांव से निकलते ही मुझे छोड़कर हवा के साथ उड़ने लगती है, मेरी कोई बात नहीं सुनती मुझे पीछे से दौडाती है "। "अब कभी ना आउ तेरे साथ रानू मुग्धा से नाराजगी जताने लगी"।
"अच्छा बाबा माफ कर दे", 'गलती हो गई ,अब तुझे साथ लेकर दौडुगी ठीक है। अब गुस्सा छोड़ ,और देख कितनी खूबसूरत शाम है। यह नदी कोई गीत गा रही है और इन पहाड़ों को सुना रही है। यह ठंडी ठंडी हवा चारों ओर फूलों की महक फैला रही है।
"हवा गीत ,खुशबू ,पहाड़ यह सब तुझे मुबारक मैं तो सिवाय अपनी थकान के कुछ नहीं महसूस करती ,अब जल्दी कर, घर चल, सारा दिन भेड़ों को चराकर और अब शाम को तेरे साथ दौड़ कर थक गई हूं"।
और फिर से मुग्धा इन प्रकृति में खो गई, खूबसूरत शाम और प्रकृति को जी भर के जी रही है, अपनी आंखों से पी रही है।
मुग्धा खूबसूरत सादगी से भरी ईश्वर की बेनमून कलाकृति ,मानो स्वर्ग कि कोई अप्सरा धरती पर आ गई। 16 साल की उम्र में मुग्धा ने खूबसूरत प्रकृति का रूप ले लिया, ,मुग्धा के घर में मुग्धा ओर उसकी मां सिर्फ दो ही रहते थे ।बचपन में मुग्धा के पिता का देहांत हो गया था ।भेड़ों को चरा कर उससे अपना गुजारा करती थी ।मुग्धा अपनी मां से बहुत प्यार करती थी।मां के लिए वह कुछ भी कर सकती थी।
मुग्धा को नदी पहाड़ झरने से बहुत लगाव था ।वह हर रोज शाम को नदी किनारे आती थी और दिन ढलने तक किनारे बैठी रहती थी। मां मुग्धा को अब अकेली नहीं आने देती थी ,तो मुग्धा की सहेली रेनू को लेकर आती थी रेनू को इन प्रकृति में कोई रुचि नहीं थी। फिर भी मुग्धा की दोस्ती के लिए जबरदस्ती आना पड़ता था।
इस जगह से मुग्धा को इतना लगाव था कि मानो कोई अदृश्य शक्ति इसे अपनी ओर खींच रही हो, मुग्धा को ऐसा लगता था कि इस जगह से कोई पुराना नाता हो।
दिन ढल चुका है। मुग्धा और रेनू दोनों घर वापस आ गई ,कितनी बार कहा तुझे, घर जल्दी आ जाया कर आज फिर से देर कर दी, दिन ढलने के बाद घर से बाहर घूमना अच्छी बात नहीं है, लेकिन मेरी तो सुनती ही नहीं है, मुग्धा के आते ही माने डांटना शुरू कर दिया। रोज की तरह मां को मनाने के लिए मुग्धा मां के गले लिपट कर बोली" मेरी प्यारी मां तू ,इतनी चिंता मत कर ,मुझे कुछ नहीं होगा, यह नदी ,पहाड़ यह रास्ते सब मेरे अपने हैं, और तेरी ढेर सारी दुआ दी तो मेरे साथ है"।
माँ ने मुग्धा के गाल पर हल्के से थप्पड़ लगाई और कहां," पता है,ऐसे मीठी मीठी बातों से रोज तो मुझे बहलाती है। ,लेकिन कल तेरी एक नहीं सुनूंगी ,कल से देर तक घर से दूर जाना मना तेरा",,,,, ।
"ठीक है मा ,अब क्या सारा पेट तेरी डांट से ही भर लूं? खाना नहीं मिलेगा?आज बड़ी भूख लगी है"।
"चल हाथ मुंह धो ले खाना तैयार है"।
खाना खाने के बाद मां सो गई लेकिन, मुग्धा को नींद नहीं आ रही, मुद्दा ने घर की खिड़की खोली, खूबसूरत चांद ,तारे ,पहाड़ यह नजारा भी आज मुग्धा को खुशियां ,शांति नहीं दे रहा था ।इसके मन में आज अजीब सी चहल-पहल मची है मानो कि कुछ होने वाला है देर रात तक उसे नींद नहीं आई।
सुबह हो गई, माने घर के सारे काम खत्म कर लिए ,लेकिन मुग्धा अभी तक सो रही थी, मां ने मुग्धा को आवाज लगाई और कहा ,"अरी ओ मुग्धा, कब तक सोती रहेगी? देख सूरज सर चढ़ गया है, उठ,,।
मुग्धा ने आख खोली तो बड़ी देर हो गई थी।जल्दी से उठी तैयार होकर मां से बोली "मां ,मैं भेड़ों को लेकर चराने जा रही हूं, शाम से पहले आ जाऊंगी ।माँ ने कहा ठीक है, अपना ख्याल रखना,संभल कर जाना।
कल रात की तरह आज भी मुग्धा का मन अशांत था। पता नहीं पर कुछ गहरे विचारों में डूबी थी। भेंडो को आगे रखकर आगे की आगे चली जा रही है ।रोज के रास्ते से बहुत आगे निकल गई, मुग्धा का गांव देश की सरहद के पास ही था। गहरे विचारों में डूबी मुग्धा कब बॉर्डर तक पहुंच गई उसे पता भी नहीं ।
तब अचानक आवाज सुनाई दी," अरे ओ लड़की कहां जा रही है?, कहां से आई है"? बॉर्डर के जवान ने मुग्धा से कहा।
मुग्धा चौक गई, किसी सपने में से जाग गई हो। वैसे वह इधर-उधर देखने लगी।" ये मैं कहां आ गई? लगता है चलते चलते बॉर्डर तक पहुंच गई"।
अब क्या करूं बॉर्डर का जवान नजदीक आया," सुनाई नहीं देता ?"कहां से आई "?"क्यों आई "?मुग्धा सिर झुकाये खड़ी थी।"साहब, गलती से आ गई ,भुल हो गई, माफ कर दो, वो पहाड़ी के नीचे मेरा गांव है"।
लेकिन वह जवान नहीं माना, सख्ती से पूछताछ करने लगा, सारी भेंड को एक तरफ कर दिया और मुग्धा को सवाल करने लगा शाम होने वाली थी ।मुग्धा को चिंता के साथ-साथ डर भी लग रहा था कि ,"अगर सिपाही ने मुझे जाने नहीं दिया तो ?मां भी चिंता कर रही होगी ,अब मैं क्या करूं"?
तभी दूर से कोई गाड़ी आई सिपाही दौड़ कर वहां गया मुग्धा ने देखा वह बड़े साहब थे ।सिपाही ने सलामी दी और भेड़ों को देखा साहब बोले "इतनी सारी भीड़ यहां कैसे"? सिपाही बोला "साहब वह लड़की और यह सारी भीड़ इसकी है बोलती है, यहां गलती से आ गई ,कैसे मान ले हम ?इसलिए इसे रोक के रखा है"।
मुग्धा सिर झुका कर खड़ी थी। एक नजर साहब ने मुग्धा की तरफ देखा और बोले सुनो, "इसे इसके गांव तक छोड़ कर आओ शाम होने वाली है, ले जाओ"।
सिपाही साहब की बात टाल नहीं सकता तो मुग्धा को गुस्से से देखा और बोला "चलो अपनी भेड़ों को ले लो आगे करो"।
मुग्धा गांव पहुंची तो अंधेरा हो गया था। मां भी चिंता कर रही थी। मुग्धा को देखा तो उसकी जान में जान आई ,दौड़कर मुग्धा के पास गयी "इतनी देर क्यों हो गई ?,कहां रह गई थी"?
मुग्धा घर के दरवाजे के पास बैठ गई, मां ने मुग्धा को पानी पिलाया, फिर मुग्धा ने सारी बात बताई पहले तो मां थोड़ी गुस्सा हुई फिर बोली "भला हो हो बड़े साहब का जो तुझे जाने दिया नहीं, तो मैं क्या करती" ?मुग्धा थी यह सोचने लगी कि," इतने सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ"।
दूसरे दिन सुबह रेनू घर आई," चाची मुग्धा है"? हां वह अंदर कमरे में है, सुबह से उदास है, जा उसके पास बैठ", रेनू कमरे में गई, मुग्धा क्या कर रही है?," आज भेड़ चराने नहीं गई"?," नहीं, आज मन नहीं था, तो मां पास में चराने के लिए ले जाएगी"।
अच्छा, चल ठीक है।, पता है, आज गांव में मेला लगा है। और उसमें आसपास के और अपने गांव के लड़के और लड़कियां अपना जीवन साथी चुनेंगे यह देखने में बड़ा मजा आएगा, चल हम भी देखने जाएंगे ,"नहीं मेरा मन नहीं है", मुग्धा ने ना कहा, लेकिन रेनू ने बड़ी जीद की तो मुग्धा साथ चल दि।
दोनों सहेलियां मेले में गई, गांव से थोड़ी दूर शिव शक्ति का मंदिर है ।वहां यह मेला लगता है। मेले में बड़े बूढे , छोटे बच्चे खास तो नव युवक और युवतियां आती है, और विवाह उत्सुक अपने जीवन साथी चुनते हैं तथा महादेव का आशीर्वाद लेते है।
ऐसी मान्यता है, कि आज के दिन जो भी लड़का लड़की यहाँ महादेव के आशीर्वाद से विवाह करते हैं, उनको जीवन भर का साथ मिलता है।
मेले में बड़ी-बड़ी खिलौने की दुकान है। खाने पीने की स्टाल लगी है, कपड़े स्त्रियों की सजावट की दुकान तो पूजा की सामग्री की दुकान, मिठाईयां, फरसाण और भी बहुत सारे स्टाल लगे थे। मुग्धा का मन नहीं था, लेकिन रेनू के लिए आई, रेनू बड़ी खुश थी।
रेनू ने कहा चल मुग्धा पहले भगवान के दर्शन करते हैं।, फिर मेला घूमेंगे, मुग्धा ने मंद समीत किया, रेनू के साथ मंदिर में गई। हाथ जोड़, आंख बंद करके भगवान को प्रणाम किया ,उसी समय वहां बॉर्डर के बड़े साहब जयराज भी वहां आए मुग्धा के पास में मुग्धा को बिना देखे भगवान के सामने हाथ जोड़, आंख बंद करके खड़े हो गए। मंदिर के पुजारी ने दोनों को जोड़ा समझकर आशीष दे दिया ,"आपका नया जीवन सुख में हो, महादेव आपकी हर मनोकामना पूर्ण करें"।
दोनों चौक गए, झट से आंखें खोली, पहले पुजारी को देखा, फिर आमने सामने एक दूसरे को देखा, पुजारी ने दोनों को प्रसाद दिया, और बिना कुछ बोले दोनों वहां से अलग-अलग रास्ते पर चले गए।
मेले में मुग्धा का मन नहीं लग रहा था ।रेनू बहुत ही खुश थी। उसने अपने लिए कान की ,बालियां पांव की पाजेब, खरीदी "मुग्धा तुभी कुछ लेना?," मेरा मन नहीं है, तू ले ले", सभी लोग मेले में बड़े मजे से आ रहे थे।, तरह-तरह की चीजें खरीद रहे थे। कोई अपना जीवनसाथी चुन रहा था, तो कोई बड़े बुजुर्ग आशीष दे रहे थे।
इसी समय 10,12 गुंडे जैसे लड़के मेले में आंधी की तरह आए दुकानों पर लूटपाट कर रहे हैं ,कोई भी चीज उठाकर बिना दाम दिए ले लेते ,पसंद ना आए तो तोड़ कर फेंक देते, अपनी मनमानी करते ,और बड़ी जोर से हंस कर वहां से निकल जाते, लोगों को परेशान करते लड़कियों को छेड़ते थे ।कोई कुछ नहीं बोल पाता था। ,क्योंकि इन सब के साथ सरपंच का बेटा था।
अपनी जिप में घूमते घूमते गुंडागर्दी करते करते थक गए", चलो अब हम यहां से चलते हैं"। "कुछ खास मजा नहीं आया", सरपंच का बेटा भीमा बोला" मेले से बाहर जाते है। जाते जाते भीमा की नजर मुग्धा पर पड़ी, मुग्धा गुमसुम एक जगह खड़ी थी। रेनू अपने लिए कपड़े देख रही थी "मुग्धा यह कैसा लगा"? बिना देखे मुग्धा ने बिना देखे कहा" हां अच्छा है",। भीमा मुग्धा को देख कर तो देखता ही रह गया, जब आगे बढ़ रही थी। भीमा बोला "गाड़ी रोको" इनके दोस्तों ने देखा, भीमा एक लड़की को देख रहा था, सब ने भीमा के साथ मस्ती करते हुए बोले, "तू कहे तो उठा ले इसको"?, "कौन है यह लड़की"? "पहले कभी नहीं देखा", तो कोई बोला," हमारे गांव के बाहर वाला जो नदी की तरफ रास्ता जाता है वही पर रहती है ।यह और इसकी मां अकेली ही है। गांव के बाहर रहती है। इसलिए तुमने आज तक नहीं देखा और वह गांव में भी नहीं आती, कामकाज के लिए इसकी मां आती है"।
भीमा अपने पिता की इकलौती औलाद थी। भीमा के पिता काशीनाथ गांव के सरपंच थे। दोनों ही गांव में अपनी मनमानी करते थे ।लोगों को परेशान करते थे। गांव के सभी लोग उससे डरते थे कोई कुछ नहीं बोलता था।
अब इसकी नजर मुग्धा पर पड़ गई। वह बोला "मैं इसी से शादी करूंगा, चलो घर"।