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नारी का जीवन या फिर एक व्यथा

15 जून 2017

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नारी का जीवन या फिर एक व्यथा ,,? ,व्यथा ही तो है नारी का जीवन ,, जिस दिन से माँ के गर्भ में अस्तित्वमान होती है माँ - बाप ,परिवार सबका मन इस बात से व्यथित कि क्या किया जाए ,इसे दुनिया में लाया जाए या फिर इस अंकुरण को गर्भ में ही कुचल दिया जाए ,,, यहाँ पर दो ही बातें होती हैं या तो उसे जीवनदान दिया जाता है या मृत्यु ,,,, लड़की के जीवन और मृत्यु का फैसला यहाँ ईश्वर नहीं करता ,,,लड़की का जन्म हुआ ,उसकी नन्हें - नन्हें कदमों की आहट ,उसकी चंचल हँसी पूरे घर को नूर की रोशनी देती है ,,लेकिन फिर से मन में ये व्यथा की ये अगर बड़ी होकर ऐसी ही चंचलता दिखाएगी तो समाज क्या कहेगा ,,,फिर शुरू होती है लड़की की शिक्षा ,,माफ करियेगा यहाँ बात स्कूली शिक्षा की नहीं बल्कि सामाजिक शिक्षा की हो रही है कि समाज में लड़कियों का रहन -सहन ,चाल - चलन कैसा होना चाहिए , लड़की को ये समझाया जाता है ऐसे कपड़े पहनो,ऐसे बैठो, ज्यादा मत हँसो, यहाँ मत जाओ ,ये मत करो वो मत करो ,,हर तरह से एक तथाकथित सामाजिक आदर्शवादी लड़की बनने की शिक्षा और लड़कियाँ सब बातें बिना किसी झिझक के मानती जाती हैं ,, धीरे -धीरे समय बीतता है लड़की थोड़ा बड़ी होती है अब उसकी हँसी में ,उसके पहनावे में लोगों को कामुकता की झलक दिखाई देने लगती है और ये लोग समाज के लोग नहीं है जिनकी बात मैं यहाँ कर रही हूँ क्योंकि लड़की ने अभी घर की दहलीज़ पार नहीं की है अभी वह मात्र छः -सात साल की है अभी वह परिवार की दुनिया में खुद को सबसे सुरक्षित समझती है और उसी सुरक्षित घेरे में एक दिन उसकी मासूमियत को तार -तार किया जाता है और ये कुकृत्य उसके अपने पिता ,अपने भाई ,अपने चाचा या किसी भी परिवारजन द्वारा किया जाता है ,,,लड़की समझ नहीं पाती कि उसके साथ जो हुआ वो क्या है ,उसका मन व्यथित है किससे कहे ,और किसके बारे में कहे ,,क्योंकि सभी तो उसके अपने है फिर भी वह हिम्मत करती है और अपनी माँ से बताती है लेकिन यह क्या ? माँ ने उसे बेशर्म ,नालायक और जाने क्या -क्या कहकर डांटा ,और दुबारा ऐसी बात की तो जुबान खींच लूँगी कहकर लड़की को चुप करा दिया ,,,,,अब लड़की कहाँ जाए ,क्या करे ,कैसे माँ की बात का अनादर करे ,कैसे घरवालों के विषय में गलत सोंचे ?,,वह खामोश हो जाती है और इसे स्वाभाविक मानकर हर दिन शोषण का शिकार होती है ,,,और लड़की की मासूमियत उसी सुरक्षित घेरे में दफन हो जाती है ,,और यह सिलसिला चलता रहता है ,वह बड़ी होती है समाज में कदम रखती है उसके मन में कई सारे सवाल होते हैं ,,वह सोंचती है कि आखिर वह सुरक्षित कहाँ है उस परिवार में जहाँ बचपन से उसके जिस्म को नोंचा जा रहा है या इस समाज में जिससे बचने की उसे बचपन से नसीहत दी जाती रही है ,,, मन की इस व्यथा को वह किसी से बाँट नहीं सकती क्योंकि जब उसकी अपनी माँ ने उसके दिल के दर्द को महसूस न किया ,उसकी कही बातों को समझ न सकी तो वह लड़की विश्वास किस पर कर सकती है ,,,किसी पर नहीं ,,और ज़िन्दगी भर इस व्यथा के साथ जीती है कि आखिर कौन सही था ,और उसके अस्तित्व को दागदार करने वालों को अपनी आंखों के सामने समाज का ,परिवार का सम्मानित व्यक्ति का दर्जा धारण किये ता-उम्र देखती है और कुछ नहीं कर सकती है ,एकदम असहाय ,लाचार है सबकुछ स्वीकार कर लेती ,,,,,क्यों ?????

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