नारी का जीवन या फिर एक व्यथा
नारी का जीवन या फिर एक व्यथा ,,? ,व्यथा ही तो है नारी का जीवन ,, जिस दिन से माँ के गर्भ में अस्तित्वमान होती है माँ - बाप ,परिवार सबका मन इस बात से व्यथित कि क्या किया जाए ,इसे दुनिया में लाया जाए या फिर इस अंकुरण को गर्भ में ही कुचल दिया जाए ,,, यहाँ पर दो ही बातें होत