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नौकर

3 अगस्त 2022

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क्या बाबूजी आप भी बच्चो की तरह जिद्द कर रहे है ,ये दवा तो आपको पीना ही पड़ेगा , कोई बहाने बाजी नही चलेगी ,*" नंदू यह कहता हुआ अशोक आचार्य के सामने खड़ा हो गया , पता नही उसकी बातो में क्या जादू था की आचार्य जी किसी की बात नही सुनते थे पर नंदू के आग्रह को टाल नही पाए ,और चुप चाप दावा खा लिया और पानी पिया ,वह ग्लास लेकर कहता है ,*" यही माता जी के कहने पर ही खा लिए होते तो उन्हे भी अच्छा लगता ,""!!?

वह ग्लास लेकर जाता है , आचार्य जी अपना चश्मा निकाल कर साफ करते हुए सोचने लगते है ,** आज से पंद्रह साल पहले वह ऑफिस से घर जा रहे थे ,  बारिश हो रही थी  और उनकी गाड़ी  रास्ते में बंद पड़ गई थी, बारिश इतनी तेज थी की वह बाहर निकलते तो भीग जाते  वह सोचने लगते हैं की कोई दिख जाता तो धक्का मरवा लेते , तो शायद गाड़ी स्टार्ट हो जाती ,*"!!!
अभी वह  सोच रहे थे कि एक दस बारह साल का लड़का कांच को ठोकता है , तो वह कांच थोड़ा नीचे करते हैं ,तो वह कहता है ,*" साहब कुछ खाने को दे देंगे तो मैं धक्का मार देता हूं ,*"!!
आचार्य जी उसे देखते है और सोचते हैं *"यह छोटा बच्चा क्या धक्का मारेगा ,*"!!
तभी वह बच्चा कहता है ,*" बाबूजी मुझे भूख लगी है , मैं धक्का मारता हूं, !!
और वह इनके हां कहने से पहले पीछे जाकर धक्का लगाने लगा और सच में गाड़ी धकेलता है ,नॉर्मल बच्चो से उसमे ताकत अधिक थी,  वह गाड़ी धकेलने लगा और गाड़ी स्टार्ट हो जाता हैं ,वह लड़का भाग कर आता है , आचार्य जी कांच नीचे कर देखते हैं वह ठंड से कांप रहा था ,आचार्य जी कहते हैं ,*" क्या नाम है तुम्हारा ,*"!!??

वह कांपते हुए कहता है ,** नंदू ,साहब दे दीजिए ना कुछ भी !!
आचार्य जी कहते हैं,*" कहां रहता है , तेरे मां बाप कहां हैं,*"!!,??
वह कहता है ,*" साहब कोई नही है , तुम कुछ दे दो ना भूख लगी है कुछ ले कर खा लूंगा,*"!!
आचार्य उसे कांपते हुए देखते हैं और कुछ सोचते है फिर कहते हैं,*" चल गाड़ी में बैठ  ,तुझे खाना खिलाता हूं ,*"!!
वह पहले तो सोचता है ,फिर दरवाजा खोलकर आगे बैठता है ,वह हॉफ पैंट पहने था जो उसके साइज से बड़ा था तो वह रस्सी से बांधे हुए था ,और एक टी शर्ट भी उसी तरह का था उसके साइज से काफी बड़ा पर उसने चोगे की तरह पहन रखा था ,आचार्य सीधे गाड़ी घर पर रोकते हैं , और उसे घर में ले जाते हैं तो वह आश्चर्य से कभी उन्हे और कभी घर को देखता है , उनकी पत्नी कुसुम गाड़ी की आवाज सुन बाहर आती हैं ,तो सामने एक बच्चे को देख  चौंक कर पूछती हैं ,*" ये कौन है , अरे यह तो ठंड से कांप रहा है ,वह भी मां थी और उनका भी पंद्रह साल का लड़का था तो उनका दिल द्रवित हो उठा और उसे प्यार से घर में ले जाकर पहले टॉवल देती है ,और फिर उसे अपने बेटे के पुराने कुछ छोटे हो गए कपड़े पहनने को देती हैं जो उसे फिट हो गया था, !!

आचार्य जी कहते हैं*" पहले उसे खाना खिलाओ उसे भूख लगी है ,*"!!
कुसुम उसे खाना देती हैं वह आज कई दिन बाद भर पेट खाना खाया था , कुसुम आचार्य जी के कमरे में कुछ समान देने जाती है ,तो वह बर्तन उठाकर बेसिन में ले जाता है तो वहां और भी बर्तन पड़े थे तो वह धोने लग जाता है , और जब तक कुसुम बाहर आई उसने सारे बर्तन साफ कर दिया था,!!

कुसुम यह देख कहती हैं,*" अरे बेटा तुमने क्यों धोया ,*"!!
वह कहता है ,*" तुम्हारा खाना खाया तो इतना तो करना ही चाहिए ,एक बार बहुत भूख लगी थी तो एक होटल में खाना खा लिया तो पैसे नही थे इसलिए इन लोगो ने मुझे मारा भी था और दो दिन बर्तन धुलवाए  थे ,*"!!
कुसुम उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है ,*" तुम हमारे साथ रहोगे , मेरा एक बेटा है, तुमसे बड़ा है ,मतलब तुम्हारा बड़ा भाई है , अभी थोड़ी देर में स्कूल से आयेगा ,*"!!
नंदू कहता है *" तुम लोग मारेगे तो नही ,में बाकी सब काम करूंगा ,बर्तन धोऊंगा ,झाड़ू  पोछा मारूंगा , !!

आचार्य आते हुए कहते हैं,*" गलती नही करोगे तो क्यों मार खाओगे ,गलती पर तो हम अपने बेटे संतोष को भी सजा देते हैं,*"!!

नंदू कहता है ,*" साहब मैं कोई गलती नही करूंगा ,*"!
कुसुम उस से उसके बारे में पूछती है तो पता चलता है उसके मां बाप एक्सीडेंट में मारे गए थे ,उसके चाचा चाची उसे पकने लगे थे ,वह लोग उस से पूरा घर का काम करवाते हैं , और  हर बात में मरते पीटते थे , और अपने बच्चो को तो उसके सामने ही खूब दुलार करते थे , एक दिन तो हद हो गई थी जब उसके चचेरे भाई ने झूठ झूठ का नाटक कर रोते हुए कहा की इसने मुझे बहुत मारा और फिर चाचा ने उसे पीटा और बांध कर बाथरूम के सामने पूरा दिन और रात भूखा प्यासा रखा था तोवाह उसी दिन घर छोड़ कर भाग लिया और फिर इधर उधर भटकता रहा रोज रात कहीं भी  सो जाता था,*"!!
कुसुम उसकी कहानी सुन रोने लग गई थी , और उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे गले लगा लिया था ,संतोष से भी उसकी जम गई थी , कुसुम के मना करने पर भी वह घर  का काम बड़े साफ सफाई से करता था , कुसुम ने उसे साहब जी और मालकिन बोलना छुड़वाकर , मां और बाबूजी बोलना सिखाया , उसने रोड पर रहकर दिखा था की  यहां आदमी को साहब और औरत को मालकिन कहने का ,*"!!
वह धीरे धीरे कब घर का विभिन्न अंग बन गया किसी को पता नही चला ,आचार्य जी तो स्कूल भी भेजना चाहते थे पर वह नही गया तो उसे घर में ही थोड़ा पढ़ाने लगे थे जिस से वह लिखना पढ़ना अच्छी तरह से सिख गया था , वह अब इंग्लिश भी अच्छी बोल लेता था ,!!
समय बिता आचार्य जी रिटायर हुए और संतोष को नौकरी मिला गई थी वह भी ए ग्रेड ऑफिसर बना था , पर नंदू वहीं का वही था ,फर्क इतना था की अब वह मां बाबूजी का चहेता था और वह उन पर पूरी तरह से हक जताता था ,और वह दोनो भी उसकी बात मानते थे ,  नंदू खा पीकर एक  बलिष्ठ नौजवान हो गया था , उसकी उम्र भी सत्ताइस साल के आस पास हो गई थी , घर में अब उसकी ही चलती थी संतोष भी उसको छोटे भाई की तरह ही मानता था , संतोष थोड़ा  सा आज के जमाने के लडको जैसा था जो सिर्फ अपनी सोचते हैं ,!!
कुसुम संतोष के साथ साथ नंदू के लिए भी कोई गरीब लड़की देख रही थी पर वह नंदू के लिए भी ऐसी लड़की चाहती थी जो उसके जैसी हो ,अशोक जी जब रिटायर हुए तो उसके नाम पर भी एक लाख की एफ डी करवाई थी , !!

आज संतोष के साथ आचार्य जी  बाजार गए थे  वहां पर एक नवोदित गुंडे से  गाड़ी पार्किंग को लेकर  संतोष से कुछ हलकासा विवाद हो जाता है ,जब आचार्य जी उसे समझाने जाते हैं तो वह गुंडा उनका कॉलर पकड़ कर धकेलते हुए कहता है , *" आने बूढ़े समझा अपने इस बेटे को वरना मेरी खसकेगी तो तुम दोनो का जनाजा एक साथ निकल जायेगा ,*"!!

वह संतोष का भी कॉलर पकड़ कर कहता है*" अपनी गाड़ी हटा नही तो गाड़ी को तोड़ कर रख दूंगा ,*"!!

दोनो ही घर पहुंचते हैं , आचार्य की आंखो में अंसुत देख कुसुम पूछती हैं ,*" क्या हुआ ,तुम्हारी आंखों में आंसु क्यों है *"!!

वह कुछ नहीं बोलते हैं ,और अपने कमरे में चले  जाते हैं ,संतोष मां को सब कुछ बताता है वही खड़ा नंदू सुन रहा था ,वह धीरेक्से बाहर निकलता है , कुसुम संतोष को समझाती हैं *" बेटा इन बदमाशों के मुंह लगना ही नही चाहिए ,कोई बात नही अब वहां मत जाया करो ,चलो खाना खा लो नंदू भी इंतजार कर रहा है ,चल नंदू खाना खा लेते हैं ,*"!!
पर नंदू कहीं दिखाई नहीं देता है तो कुसुम कहती है ,*" ये पगला कहां चला गया ,*"!!
आधे घंटे तक नंदू का कही पता नही चलता है , तीनो ही परेशान होते हैं ,तभी पड़ोस का एक लड़का आकर  कहता है ,*" संतोष भईया ,नंदू भईया को  पुलिस पकड़ कर ले  गई अभी अभी मेरे सामने ही गाड़ी में ले गए ,*"!!
सभी हैरान हो जाते हैं ,!!
कुसुम कहती है *" अब ये कौन सी नई मुसीबत खड़ी हो गई , *"!!
आचार्य बाहर आते हुए कहते है ,*" चल संतोष देखे तो क्या किया इस बेवकूफ ने आज का दिन ही खराब लग रहा है ,*"!!
वह पुलिस स्टेशन के लिए निकलते हैं तो रास्ते में गुप्ता जी मिलते हैं और बताते है , *"  पंडित जी ये जो नया गुंडा पनप रहा था आज किसी ने उसे बुरी तरह मारा है सीधे हॉस्पिटल पहुंचा दिया है अब कभी गुंडागर्दी नही करेगा ,*"!!

दोनो पुलिस थाने पहुंचते है तो उन्हे बाहर ही पता चल जाता है की नंदू ने ही उस गुंडे को बहुत बुरी तरह से मारा था , आचार्य समझ गए कि संतोष की बात सुन उनकी बेइज्जती उसे बर्दास्त नही हुई और उसने ये कांड कर दिया , आज आचार्य जी को यह अहसास होता है की असली बेटा तो वह है, संतोष तो खुद भी चार गलियां सुन कर चला आया था, पर नंदू ने उसके मुंह से बात सुनकर बिना बताए उस गुंडे को हॉस्पिटल पहुंच दिया था , ,!!
जमानत करते समय इंस्पेक्टर पूछता है *" नंदू आपका नौकर हैं,*"!!?
आचार्य जी कहते हैं ,*" नही साहब वह मेरा छोटा बेटा है , *" नंदन आचार्य ,*"!!

दोनो नंदन को लेकर घर जा रहे थे , नंदन बाबूजी के कंधे पर सर रख कर बैठा था ,*"!!

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नंदू को आचार्य जी रास्ते से लेकर अपने घर में पनाह देते हैं ,और नंदी भी उनके घर का पूरा काम करता था ,वह घर का नौकर कम परिवार का सदस्य अधिक था।।

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