भौर के दामन में...
शबनम के मोती झरते..
नवप्रभाती रश्मिक तंतु..
दूबकण तक ऊर्जित करते...
भरते नवल एहसास..
प्रकृति के कण-कण में...
शुभ्र वर्ण धारित ये...
भरते उमंग अंतर्मन में..
लहलहाती धरा ये..
पहन हरित वसन को...
पर्वत,कानन,खग,विहग..
संजोए जैसे सजन को..
सकुचाती,इठलाती..
प्रकृति निज सौंदर्य पर...
जैसे कोयल इठलाती..
निज कंठ माधुर्य पर..
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश