स्वप्न सहेली,
ये रात अलबेली।
सँग तारों के,
करती अठखेली।
शबनम जैसे,
मोती बरसाती।
भोर होते जो,
लगते पहेली।
स्याह कभी,
कभी चाँदनी।
खिले गगन ताल,
बनकर कुमुदिनी।
नवयौवना सी,
नटखट चंचल।
मृगनयनी सी,
सहज सुंदर।
हरती क्लांत हर तन के,
करती शांत ज्वार मन के।
ये रात अलबेली,
स्वप्न सहेली।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश