मन में अनायास ही उपजे दोहे
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शीत लहर कितनी बढ़ी, हुआ नहीं आभास, ये जादू तब तक मगर, जबतक तुम मेरे पास । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
शीतलहर की शीत से, विचलित मन घबराय, इस सर्दी में आप क्यों, रूठे हमसे जाय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
शीतलहर से हो गए, सर्द सभी अनुबन्ध, जाने क्या-क्या बह गया, जब टूटे तटबन्ध । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
बंधीं तटों से नाव तो, क्या लहरों से सम्बन्ध, इनकी गाँठें खोल दो, हों ये भी तो कुछ उद्दण्ड । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सर्दी कितनी भी बढ़े, गर्म रखो अहसास, सर्दी गर्मी तय करे, क्या सम्बन्धों में ख़ास । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
मनवा आज उदास है, जैसे बीच मसान, जगा जागरण जोग सा, जाग गया इंसान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
ज्ञानी ये कहते खर्च कर, जैसे बहाया पानी, लेकिन एक दिन आएगा, लेगा बदला पानी । (C)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जाग रहा है रात को, जाग रहा है दिन, साँसों की चिंता नहीं, पैसे रहा है गिन। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
कोई महल न काम का, इतना लीजो जान, यहीं धरा रह जाएगा, निकल जायेंगे प्रान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
साँसें भरी हों आस में, तो सब कुछ होगा पास में, जब सब कुछ होगा पास में, तब भी होगा आस में । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
ओ ग़रीब क्या देखी नहीं, तूने अपनी औकात, किससे पूछकर देखता, आगे बढ़ने के ख़्वाब । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
तकनीकी में अब रखो, हिंदी का उपयोग, जिसको हिंदी आएगी, वो ही पायेगा भोग । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
जीत के पीछे हार है, हार के पीछे जीत, रात गए दिन होत है, यही पृकृति की रीत । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
निश्चित ही हो जायेगी नौका, भवसागर से पार, राम पधारे अयोध्या, और हम अयोध्या के द्वार । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
सपना ऐसा देखिये , नींद नहीं फिर आए , सपना हो साकार जब, चैन तभी मिल पाए । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
शीतलहर है चल रही, रखियो कोयला पास, जैसी जितनी ठण्ड हो, उतना लीजो ताप । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
लकड़ी जल कोयला बनी, कोयला बन गया राख़ , अब तो आलू निकाल ले, हो गए होंगे ख़ाक । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
शीतलहर में ओढ़ लो, कान ढांक कर लिहाफ़, मारो चाय की चुस्कियाँ, और पढ़ते रहो किताब। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
दो अश्रु नैनन ढले, किया समन्दर खार, मन कितना हल्का किया, ये मन पर उपकार। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
अश्रु छोड़ें नैन जब, छूटे तब दुःख का साथ, मन हल्का तब और हो, जब कोई बढ़ाये हाथ। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
आँखों में अश्रु बसें, और बसे हृदय में पीर, नग्न पीर हो जात है, बहें अश्रु फटे ज्यों चीर। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
अश्रु मोती आँख के, रखियो इन्हें सम्भाल, जरा-जरा सी बात पे, काहे रहे निकाल। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
बर्फ़ पिघल गई दर्द की, निकली आशा की धूप, अँधेरा तब तक रहा, जब तक न निकले कूप। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
चौराहे पर आ खड़े, अब जायें किस ओर, नहीं पता था आएगा, जीवन में ये भी दौर। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जीवन ऐसे चल रहा, ज्यों बाजी शतरंज, जब लगता सब ठीक है, त्यों होवे बदरंग। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
दो रोटी की चोट से, पीर पोर तक होय, मन साधे तो तन दुखे, तन साधे मन रोय। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जहर भर गया जेहन में, कैसा जादू होय, जैसे कूकुर बावरा, बिना बात के रोय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सोना उतना ही भला, जितने से काम चल जाये, ज्यादा सोया, ज्यादा पाया, तन या मन ढाल जाये । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
चलती चक्की साँस की, जाने कब रुक जाय, जोड़-घटा और गुना-भाग में, काहे समय गँवाय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सूरज की एक रौशनी, देती अंकुर फोड़, अपने मतलब की सीख को, लेवो सदा निचोड़ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
घड़ी- घड़ी क्यों कर रहा, मरने का अपराध, जीवन ही अनमोल है, मलते रह जइयो हाथ। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जिस थाली में खा रहा, उसमें करता छेद, ऐसे जन पहचानकर, कभी न कहियो भेद। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
प्रचलन दुष्टों का बढ़ा, बढ़ता कलियुग आज, सीधा-सरल और सादगी, बन बैठे अपराध । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
लोकतंत्र सबसे बड़ा, सबसे बड़ा चुनाव, मताधिकार का मान रख, सब पहुँचो अपने गाँव । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
जिस नेता के काज गलत, जिसकी नीयत में खोट, पक्ष-विपक्ष न देखिये, दीजो वोट की चोट । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
देश के हित को देखना, जब करना मतदान, कितना पानी दूध है कितना, सर्प नेवला जान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
गुप्तदान की महिमा बड़ी, जन्म सुफल हुई जाय, मन रखियो चुपचाप सब, जब मत दीजो जाय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
राम का नाम सर्वश्रेष्ठ है, लिया आज़मा देख, राम ही असली नाम है, बाकी सब कुछ है फेक। (C)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
काम न आया गर कभी, दूर रखा हो विकास, अस जब पहुँचे आप तक, मत कीजो विश्वास । (C)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
षड्यंत्रों को जो बुने बस, पाने को सत्ता राज, सही वक़्त मतदान का, उन्हें ठोंक दो आज । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
जात-पात की बात जो, देता रोज बताय, उस पर झाड़ू फेर दो, कितना भी बहकाय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जात-पात देखो नहीं, न मजहब, पंथ या धर्म, प्रत्याशी को वोट दो, देख के उसके कर्म । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
समय बड़ा बलवान है, देत पटखनी जोर, कभी ग़रीब की आँख का, नहीं भिगोना कोर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जो जन समय निकाल ले, आपकी खातिर आज, उसको कभी न भूलियो, उसको रखियो याद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जो विपत्ति में साथ दे, उसे नहीं बिसराओ, काँधे से काँधा दो मिला, जब भी मौका पाओ। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
कभी अघाया न थका, देते तुम्हें मन की पीर, छह गज राखो फ़ासला, जाओ न उसके तीर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
चैन दिवस का उड़ गया, उड़ी रात की नींद, ऐसे बालक से रखो, आगे बढ़ने की उम्मीद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
सोया, खाया, करता रहा, अमूल्य समय बर्बाद, अस बालक सूखे तरु, चाहे जो डालो फिर खाद। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
पिता पुत्र को टोंकता, यह कीजो वह नाय, अपनी गलती के सबक, बेटे को समझाय। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
माता-पिता और बड़ों की बातें, समझो आशीर्वाद, बीते समय के साथ में, बहुत आयेंगे याद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
चलते चलते थक गए, ले लो थोड़ा विश्राम, एक अनवरत प्रक्रिया, ख़त्म न होते काम । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
समय का मोती पास था, काहे दिया गँवाय, काहे का रोना-पीटना, अब काहे पछताए । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
क्यों दूजे के काम में, सदा अड़ाय टांग, एक दिन ऐसा आयेगा, खुल जायेगा स्वाँग । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
तारे आँखों के बना, देख-भाल पहचान, तिनका छोटा आँख में, ले लेता है जान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
आँखों की शोभा बढ़े, जब लें काजर डार, सुथरा मैले के सामने, और लगे उजियार । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
महती बातें तब करो, जब मन होय न क्लेश, नहीं ते होवे सब गुड़गोबर, कुछ भी बचे न शेष । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "