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तुम लाख छुपाओ बात मगर, कल सबको पता चल जाएगा, पत्ता, पत्थर, पानी, कंकड़, चीख़ चीख़ बतलायेगा । यह डर जो तुम्हारे दिल में है, सब पता सरे-महफ़िल में है, खुलने वाला है ये राज अभी, जो राज अभी
बलिदानी सिपाही शूल सी चुभती हृदय में उस शिशु की चीत्कार है, जनक जिसका है सिपाही, करता वतन से प्यार है । जो अपनी मातृभूमि के सदके जान अपनी कर गया, श्रृंगार-रत नवयौवना को श्वेत वसन दे गया; व
मत कहो नहीं, आज मुझसे कोई तस्वीर रंगने को मत कहो। क्योंकि, हर बार जब मैं ब्रश उठाता हूँ, और उसे रंग के प्याले में डूबता हूँ; उस रंग को जब कैनवास के धरातल पर सजाता हूँ; तो सिर्फ एक ही
आज जब जमाने का हिसाब निकला, बस कसूर मेरा ही बेहिसाब निकला । @ नील पदम्
अपने दिल की कोई जरा, हम बात क्या कह देते हैं। मेरी हर बात को झट, वो अपने पे ले लेते हैं ।। @नील पदम्
सुनो, किसी भी सफर में रहना, फोन जरूर करते रहना, हालात, ठीक ना हों अगर, मिस्ड काल ही देते रहना। और हाँ, कहीं भी चले जाना, आवाज जरूर देते रहना, गर, ना मुमकिन हो पुकारना, मन ही मन याद कर
देश के बाहर रहकर अपने देश को दुश्मन देश की सूचनाएँ पहुँचाने वाले रॉ जैसे एजेंसी के शूर वीरों को समर्पित .... ये वो शूरवीर हैं जिनकी वजह से बहुत हद तक हमारे देश का शानदार तिरंगा लहराता है . .... हर घ
हर दूसरे- तीसरे दिन गीदड़ भभकी देने वाले पड़ोसी के लिए व्यवहार कैसा हो ........................ अपनी आँखों की चमक से डरा दीजिये उसे, हँस के हर एक बात पर हरा दीजिये उसे, पत्थर नहीं अ
जात-पात और धर्म लिखो करवाते रहो बवाल, आने वाली पीढ़ियां पूछेंगी कई सवाल॥ (c) @ दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
आजादी के देखो मायने, कैसे करे गए हैं अनर्थ, क्रांति के बलिदान सब, गए जाया हुए अब व्यर्थ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
बहा पसीना व्यर्थ में, रोया यदि मजदूर, जाया उसका श्रम हुआ, पारितोषिक हो मजबूर, नहीं आजादी आई अभी, समझो वो है अबहूँ दूर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जब मातृभूमि को माँ माना था अशफाक, भगत, बोस से जाना था ये गाँधीजी ने भी माना था कि भारत माँ आजाद करें हम गुलामी की जंजीरों से । लेकिन भूल गये तुम सब-कुछ माँ की स्तुति मंजूर नहीं है मैं मानूं ये
मीठा खाय जग मुआ, तीखे मरे ना कोय, लेकिन तीखे बोल ते, मरे संखिया सोय ॥ @नील पदम्
कुछ नींदों से ख़्वाब उड़ जाते हैं और कुछ ख़्वाबों से नींदें उड़ जातीं हैं @नील पदम्
मन में जैसा घटेगा क्यों लिखूँ, सिर्फ छंदबद्ध तुकांत कविताऐँ । आपकी सलाह- आपके मशविरा का शुक्रिया, आपकी डांट भी सर-माथे पर लेकिन माफ़ कीजियेगा ये जो मात्राएँ और तुक नापते हुए चलते हैं जब तो
क्यों इंसानियत के क़त्ल हो रहे हैं हर जगह, मजहब-ए-इंसानियत को कोई मानता नहीं, मशरूफ हैं औरों के हक पर निगाहें गड़ी हुईं, कोई अपने हक की बात क्यों जानता नहीं । @नील पदम्
इन सब रिपोर्टिंग की आवश्यकता तो थी ताकि लोग जागरूक हों और अच्छे और बुरे लोगों को अलग अलग किया जा सके लेकिन इस तरह की घटनाओं में धर्म के खुलासों की जरुरत नहीं थी धार्मिक दृष्टिकोण को अहमियत देने की आवश
02 सितम्बर, २०२३ को इसरो ने सूर्य के अध्ययन के लिए अपना आदित्य L 1 मिशन लांच किया । मंगल मिशन, चंद्रयान मिशन के बाद हम आदित्य मिशन के भी साक्षी बन रहे हैं जिससे हम गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। इसर
शब्द ही सबसे बड़े गुरु हैं, शर्त है मन छप जायें, मीठे ते अनुकूल करे, कड़वे भी देत मिलाय , किसी तरह का शब्द बाण मन के अंदर गड़ जाये, चेला बाद में सोचता, जब जीवन ध्येय वो पाये । @नी
शब्द ही सबसे बड़े गुरु हैं । कभी गौर कीजियेगा । गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाएं बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय । उपरोक्त में "बताय" शब्द का क्या मतलब है। किसी ने बताया।
राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के एक गांव में 21 वर्षीय एक आदिवासी महिला को उसके पति ने नग्न कर घुमाया। यह घटना कैमरे में रिकॉर्ड हो गई और इस शर्मनाक घटना की क्लिप अब वायरल हो गई है। यह घटना गुरुवार को
कृष्ण छवि को निहारता मैं, बांके बिहारी धाम रे, कौन बताएगा मुझे अब, क्या है हमारा नाम रे । अस्तित्व सम्मिलित हो गया, प्रभुजी के ही नाम में, कैसे कहूँ कृष्णा अलग, और है अलग मेरा नाम रे ॥
कृष्णा मुझे बता दे जाकर कहाँ छिपा है, घंटे हैं चार बीते मैया को न दिखा है, मैया को सब पता है तेरी शैतानियाँ बहुत हैं, नादान बचपने की कहानियाँ बहुत हैं । @नील पदम्
कृष्णा तुम्हारी बँसी, सबको लगे पुकारे, जिसने भी इसे सुना है, कहे नाम है हमारे । @नील पदम्
ख्वाहिशों के कितने भी पूरे हुए मुक़ाम, अगली को उठ खड़ा हुआ मन में नया मलाल । @नील पदम्
कुछ वर्षों पहले जयपुर गया था । क्योंकि यात्रा पूर्व-निर्धारित न होकर अकस्मात् थी इसलिए कोई भी होटल बुक नहीं किया हुआ था । रेलवे स्टेशन पर बैठ कर मोबाइल पर किसी होटल की अच्छी लोकेशन देखकर बुक करने
द्वितीयअनुभव परिवार के साथ हमारी जयपुर यात्रा के दौरान, मैंने स्थानीय टूर ऑपरेटरों से संपर्क किया। वह कोई मुश्किल काम नहीं था. मुझे अपने होटल के पास ही एक टूर ऑपरेटर मिल गया। हमने अगले दिन ज
I. N. D. I . अलायंस का पत्रकारों पर लगा प्रतिबन्ध सोचने पर मजबूर करता है । कुछ पत्रकारों पर प्रतिबन्ध लगाना कहाँ से उचित है । देश विरोधी पत्रकारों का विरोध भी तो करना चाहिए। अगर कुछ भारत क
ऑस्ट्रेलिया में एक छोटा सा गांव कूबर पेडी हैं। यहां के अधिकांश लोग अंडरग्राउंड घरों में रहते हैं। यहां ओपल की कई खदानें हैं। अधिकांश अंडरग्राउंड सिस्टम खुदाई के मकसद से ही बनाए गए थे। खदान के मज
आज राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती दिवस 23 सितम्बर को श्रद्धांजलि स्वरुप उनकी कविता सिंहासन खाली करो कि जनता आती है से प्रेरित मेरी कविता प्रस्तुत है। जनता सहती सबकुछ चुपचाप, जैसे शां
मेरी प्यारी सी बच्ची, पहले बसंत की प्रतीक्षा में, लेटी हुई एक खाट पर मेरे घर के आँगन में। प्रकृति की पवित्र प्रतिकृति एकदम शान्त, एकदम निर्दोष अवतरित मेरे घर परमात्मा की अनुपम कृति। देखत
बेटियाँ बहुत प्यारी होती हैं । बहनें भी बहुत प्यारी होती हैं । माँ-बाप और भाई आजीवन उनपर अपना स्नेह-प्यार लुटाते रहते हैं। पर, ये बेटियाँ या बहने आखिरकार होती तो लडकियाँ ही हैं जिन्हें दुनिया के दस्तू
एकात्म मानववाद एक राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा तैयार की गई अवधारणा थी और 1965 में जनसंघ के आधिकारिक सिद्धांत के रूप में इसे अपनाया गया था। इस सिद्धांत की व्याख्य
पता पिता से पाया था मैं पुरखों के घर आया था एक गाँव के बीच बसा पर उसे अकेला पाया था । माँ बाबू से हम सुनते थे उस घर के कितने किस्से थे भूले नहीं कभी भी पापा क्यों नहीं भूले पाया था । जर्जर ए
कितनी भी चौड़ी दरार हो, तुमको तो बस कि नहीं हार हो, किसी भी हद तक भाड़ में जाएँ, हाथ उपहार, गले में हार हो ।
सृष्टि ने जो रच दिया, सब उसको रहे बिगाड़, तभी सृष्टि-दृग तीसरी, सब छन में करत कबाड़ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
काट दिए सब पेड़ औ, सब पर्वत दिए उखाड़, धरती का पानी सोखकर, मिट्टी भी दई उजाड़ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
नदियों में घोला जहर, वन में लगाई आग, वो दिन अब न दूर हैं, कोसत रहियो भाग । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जहरीली कर दी हवा, प्रतिदिन गरल मिलाय, कैसे-कैसे कर्म हैं, मानवता मिट जाए। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
क्या वजह करते फिरें क्यों वो राक्षसी कृत्य मानव को मानव खा रहा करते दानवी नृत्य। आखिर क्या इनको चाहिए पूछो इनसे जाय, कौन सी इनकी सोच है जो मानवता को खाय। आतंकी ये सोच राक्षसी कैसे
ऐ भाई ! जरा देख कर चलो जरा संभल कर चलो पर उससे पहले जाग जाओ | कब तक आँखें बंद कर काटते रहोगे वही पेड़ जिस पर बैठे हो तुम, ऐसा तो नहीं कि आरी चलने की आवाज तुम्हें सुनाई नहीं देती, या तुम्हारी
आजाद हुए थे जिस दिन हम टुकड़ों में देश के हिस्से थे, हर टुकड़ा एक स्वघोषित देश था छिन्न-भिन्न भारत का वेश। तब तुम उठे भुज दंड उठा भाव तभी स्वदेश का जगा सही मायने पाए निज देश। थी गूढ़ पहे
दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत । दीप ऐसे जलें, न अन्धेरा रहे शाम हो न कभी, बस सवेरा रहे, रौशनी की कड़ी से कड़ी सब जुड़ें रौशनी प्यार की बिखरी हो हर तरफ । दीप ज
हे दिनकर अहसानमंद हम तुमसे जीवन प्राण पाएं हम चले पवन और बरसें बादल झूमे मन हो मतवाला हो पागल हो हरा भरा पृथ्वी का आंचल क्या क्यों हिमनद क्या विंध्याचल क्या सरयू क्या यमुना क्या गंगा उत्तंग
ये सिर्फ एक हार है भले ही कुछ बड़ी हो पर ये अंत कदापि नहीं ........................ शूरवीरों की तरह लड़ते हुए ज़ख्मी हुए ज़ख्मों को भी अस्त्र सा संभाल लीजिये, आगे भिड़े तो शत्र
सागर के सीने से निकले थे, काल सरीखे नाग। मुम्बई में बरसाने आये थे, जो जहरीली आग ।। रण रिपु छेड़ रहा था लेकिन, हम थे इससे अन्जान। छब्बिस ग्यारह दिवस ले गया, कई निर्दोषों की जान ।। तांडव कर
लोकतंत्र का मंदिर इनको फूटी आँख न भाये, इस मंदिर की मर्यादा को ये कब समझ हैं पाये, लोकतंत्र इनकी फ़ितरत को जँचता कभी नहीं है, कभी सुशासन पलड़ा भारी लगता
तुम अब घर से बाहर भी मत निकलना और तुम मत अब घर के भीतर भी रहना । मत सोचना कि चंद्र और सूर्य पर या फिर इस पृथ्वी पर एक देश में, किसी शहर में किसी गांव में या मोहल्ले में या फिर किस
थकती हैं संवेदनाएँ जब तुम्हारा सहारा लेता हूँ, निराशा भरे पथ पर भी तुमसे ढाढ़स ले लेता हूँ, अवसाद का जब कभी उफनता है सागर मन में मैं आगे बढ़कर तत्पर तेरा आलिंगन करता हूँ, सिकुड़ता हूँ शीत में जब
शब्द. इन परिवार को विश्व हिंदी दिवस की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें । दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से सभी जुटे हैं काम में । कौन राम जो वन को गए थे, छोटे भईया लखन संग थे, पत्नी सीता मैया भी पीछे, रहती क्यों इस काम में ।
सन्देश खाली है यही कुछ भी नहीं है यहाँ सही, जानवर भी इनसे अधिक मनुष्यता के समीप हैं । कुकृत्य इनके राछ्सी इंसानियत की न बास भी, दंश देते बिच्छुओं से जहर भरे जीव हैं । हैं दण्ड के पात्
दौड़त-दौड़त सब गए, देन परीक्षा नीट, लेकिन डर्टी पिक्चर थी, कुछ भी नहीं था ठीक, कुछ भी नहीं था ठीक, लीक थी पूरी टंकी, लगने लगा है कि आयोजन था सब नौटंकी, आयोजन था सब नौटंकी, नौटंकी होती रि
एक पदक से चूकते, चढ़ गई सबको भाँग, सब सोचें कि कैसे लें, इस अवसर को भांज, राजनीति करते हुए, अपने बर्तन चमकायें, कैसे इस मौके पर अपनी बढ़त बनायें, अपनी बढ़त बनाते वो लें जब तक बर्तन माँज, ये सप
तेज है, औ वेग है, है गति, संवेग है, अग्रता है, है त्वरण, स्फुरण, तरँग है, ओज रग-रग भरा, मन में उमँग है, कुलाँच भर रहा हृदय, ऊर्जित हर अंग है, जोश की कमी नहीं, होश का भी संग है, हर तरफ बिखेरत
एक गृहिणी को दे सकें, वो वेतन है अनमोल, कैसे भला लगाइये, सेवा, ममता का मोल । चालीस बरस की चाकरी, चूल्हा बच्चों के चांस, शनै: शनै: रिसते रहे, रिश्ते - जीवन - रोमांस । पति पथिक ब
खोद-खोद कर खाइयाँ खोद रहें हैं देश, लूट रहे हैं माल सब बदल-बदल कर भेष, बदल-बदल कर भेष चक्र ऐसा वो चलायें, खुदी हुई खाई की चौड़ाई नित और बढ़ायें। जब ऐसी हो सोच आये कैसे समरसता, कैसे होय सुधार