चंद शब्दों में बड़ी बातें कहने की कोशिश
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बेहद मार्मिक और जीवित चिन्दियाँ मन को छू गया - बधाई ..
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कहने को तो कर किया , चिर- धाराओं में बदलाव, पर इससे मिटता कहाँ, आपराधिक मन-भाव ।
धाराये बदली गईं, नूतन नव-परिधान, चलो-चलो इतना हुआ, अपने हुए विधान ।
दासता के पीठ पर, खुरचे हुए निशान, कबसे पीछे था पड़ा, विदेशियों का बना विधान ।
चाहे न बदलती धारायें, पर रुक जाते अपराध, धर्म मार्ग पर जागते, करते जन-हित काज ।
धारायें बदली गईं, भारत के नए विधान, गौरव से मन पूर्ण है, इतना सुन्दर काम ।
आज़ादी पाई मगर, फिर भी रहे गुलाम, ये प्रतीक दासत्व का, मिट गया नामोनिशान ।
इश्क की पहली शर्त कि कोई शर्त ना हो 🌹 @नील पदम्
जब से मेरी आशिकी, उनके दिल में जा बसी, मैं तो हूँ पागल मगर, है गायब उनकी भी हँसी। @ दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “
थोड़ी दुश्वारियां ही भली, या रब मेरे, दुश्मनों की अदावत तो कम रहती है। @नील पदम्
धूप की उम्मीद कुछ कम सी है, कि मौके का फायदा उठाया जाये। इतने सर्द अह्सास हुए हैं सबके, घर एक बर्फ का बनाया जाये ॥ @” नील पदम् “
जाने कैसे दौर से गुजर रहा हूँ मैं, वक़्त के हर मोड़ पे लड़खड़ाता हूँ, वो बन्दा ही जख्म-ए-संगीन देता है, जिसको पूरे दिल से मैं अपनाता हूँ ।। @*नील पदम् *
उम्मीदों के आसमान पे बैठे हुए थे जब, वो क्या गिरा आंखें जिसे संभाल ना पायीं ।। @ नील पदम्
आँखों में उसके बहते हुए धारे हैं, वो भी मुझसा कोई फरियादी है। @नील पदम्
कुंठाओं के दलदल में, उल्लासोँ के कमल खिलेंगे । यदि निराशा भरी दीवालों पर, आशा की खिड़की खुली रखेंगे ।। @नील पदम्
संबंधों के पुल के नीचे जब, प्रेम की नदियाँ बहती हैं, जीवन के दो पल में भी तब, पूरी सौ सदियाँ रहती हैं ॥ @नील पदम्
मेरे वश में नहीं है, तुम्हारी सजा मुकर्रर करना । तुम ही कर लो जिरह औ फैसला मुकम्मल कर लो ॥ @नील पदम्
जलने वालों का कुछ हो नहीं सकता, वो तो मेरी बेफिक्री से भी जल बैठे ॥ @नील पदम्
छोड़ भगौने को चमचा, चल देगा उस दिन । माल भगौने के भीतर, ना होगा जिस दिन ॥ @ नील पदम्
पत्थर का सफ़ीना भी, तैरता रहेगा अगर, तैरने के फलसफे को, दुरुस्त रखा जाये। @नील पदम्
मुनासिब है, ऊंचाइयों पर जाकर रुके कोई, उड़ने का हुनर अगर, बाज से सीखा जाये । @नील पदम्
कोई हुनर में तब तलक कैसे, माहिर हो, पूरी सिद्दत से जब तलक ना, सीखा जाये। “नील पदम् ”
जनाब मासूम जनता है, यहाँ सब चलता है। @ नील पदम्
वक़्त गुजरेगा आहिस्ता-आहिस्ता, इसकी सिलवटें हर चेहरे पर होंगी । @नील पदम्
हम इस उम्मीद में जागे की सवेरा होगा, पर वही बेगैरत हवायें थीं फ़िजाओं में । @नील पदम्
मुस्कुराने की आदत छोड़ नील पदम् , खुश रहना भी एक खता है समझो ॥ @नील पदम्
हर वक़्त इसी गम में दुश्मन, ग़मगीन हमारा रहता है, कोई बन्दा कैसे हरदम, यूँ खुशमिजाज रह लेता है। @नील पदम्
वक़्त सितम इस तरह, ढा रहा है आजकल, हाथ वायां दायें को, बहका रहा है आजकल ॥ @ नील पदम्
सत्य दीप जलता हुआ, लौ हवा हिलाए बुझ न पाए, करे प्रयास यदि कोई आँधी, चिंगारी बन आग लगाये । (c)@नील पदम्
अनुभव एक ताबीज है रखियो इसे सम्भाल, बुरे वक़्त के टोटके, लेगा सभी संभाल । (c)@नील पदम्
साँसें कागज की नाँव पर, चलतीं डरत डराए, जाने किस पल पवन चले, न जाने कित जाएँ । (c)@नील पदम्
जो निज माटी से करे, निज स्वारथ से बैर, उसको उस ठौं भेजिए, जित रस लें भूखे शेर।
सुन्दर तन तब जानिये, मन भी सुन्दर होय, मन में कपट कुलांचता, तन भी बोझिल होय । (c)@नील पदम्
पानी सा किरदार था, तो पसंद नहीं था, चढ़े रंग जब दुनिया के, तो ऐब कह दिया। जीने नहीं देती है ये, चाहे ऐसे चाहे वैसे, दुनिया ने शराफत से, कुछ पेश ना किया ॥ (C)@नील पदम्
अपनी आँखों की चमक से, डरा दीजिये उसे, हँस के हर एक बात पर, हरा दीजिये उसे, पत्थर नहीं अगर , तो मोम भी नहीं, एक बार कसके घूरिये, जता दीजिये उसे । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जब कभी ये वतन याद आये तुझे, माटी, ममता, मोहल्ला बुलाये तुझे, दो नयन मूँदना, पुष्प चढ़ जायेंगे, संग मिलेंगी करोड़ों दुआयें तुझे । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
स्वप्न यदि कुछ ख़ास कर, तो बढ़ के अपने पास कर, कर जतन, जब तक है दम, अपने पर विश्वाश कर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
यहु तो विधाता की भली, स्मृति देत भुलाय, नहिं ते विपदा याद कर, जग जाता बौराय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
आँखें बंद की हैं उनको आजमाने के लिए, वो आयेंगे भी या नहीं हमें मनाने के लिए । @नील पदम्
धरती का बेटा गया, मिलने मामा चाँद, मुश्किल थी थोड़ी मगर, पहुँचा वो दूरी फांद । @नील पदम्
प्रज्ञान चलता चाँद पर, छोड़त भया निशान, इसरो, भारतवर्ष की, यूँ बनी रहेगी शान । @नील पदम्
कुदरत से थोड़ी सी तो वफाई कर लो, आसमान पिता, धरती को माई कह लो, कब तक बोझ डालोगे पिता की कमाई पर, इस आबो-हवा की, थोड़ी सफाई कर लो । @नील पदम्
बहुत दिन हुए तुम बता दो कहाँ हो मेरी धडकनें सब सुनेगी कहाँ हो, मेरे लबों पर भी आयेंगीं खुशियाँ जहाँ हो अगर तुम वहीँ मुस्कुरा दो । @नील पदम्
बहुत दिनन के, बाद आयी हमका, मोरे पिहरवा की, याद रे ॥1॥ चाँदी जैसे खेतवा में, सोना जैसन गेहूँ बाली, तपत दुपहरिया में आस रे ॥2॥ अँगना के लीपन में, तुलसी तले दीया, फुसवा के छत की, बरसात रे ॥3॥
कुछ कसर रह गई पक ये पाया नहीं, ज़िंदगी की तपिश में तपाया नहीं, थोड़ी मेहनत का तड़का लगा देते तो, न कहते कभी स्वाद आया नहीं । कुछ कसर रह गई, स्वाद आया नहीं ॥ (c)@दीपक कुमार
कुछ नींदों से अच्छे-खासे ख़्वाब उड़ जाते हैं, कुछ ख़्वाबों से मगर नींदें भी उड़ जातीं हैं, नींद या ख़्वाबों की ताबीऱ आप पर निर्भर है, दोनों में से आप अहमियत किसे दे जाते हैं । @नी
मानुष तन तब जानिये, मानुष हृदय संजोए, मानुष मन के अभाव में, कैसा मानुष होय । @नील पदम्
स्वप्न झर रहे हों यदि, ताबीर हो पाती नहीं, प्रयास अपने गौर कर, रोक कैसी है यदि कहीं। @नील पदम्
आँखों की रौशनी से बड़ी, मन की रौशनी, इल्म की इबादत से जड़ी, स्वर्ण रौशनी, आँखों का देखना कभी, हो जायेगा गलत, पढ़ती नहीं गलत कभी, ये मन की रौशनी । @नील पदम्
मीठा फल संतोष का, आगे बढ़कर खाए, स्वाद बहुत मीठा लगे, दूजे को न मन ललचाए । @नील पदम्
साथ सुहाना तब कहो, जब मन साथ में होय, मन भटके कहुं और तो, साथ साथ न होय । @नील पदम्
पता नहीं कब सच कहा उसने, पता नहीं कब झूठ बोला उसने, उसकी आँखों को कभी पढ़ा ही नहीं, क्योंकि कभी गौर से देखा नहीं हमने। @नील पदम्
दुनिया के सफीनों को, कागज पर बिठा दो तुम, कागज के सफीनों को, दरिया में उतारना है । @नील पदम्
अभी भी मैं, उसकी नज़र में हूँ मुसलसल, पर अभी भी वही कि, न ये प्यार नहीं । @नील पदम्
भोर होते ही कुछ मुस्कुराये वो, संताप स्वप्नों में छोड़ आये वो, वो पिछली दिनों के गीले रूमालों को, गुजरे कल में ही छोड़ आये वो । @नील पदम्
इतने भरे हुए थे वो कि छलकने ही वाले थे, बड़ी मशक्कतों-मुश्किल से आँसुओं को सम्भाले थे, उनकी उस दुखती राग पर ही हाथ रख दिया जालिम, जिसकी वजह से उसके दिल में पड़े छाले थे । @नील पदम
कुछ भरे-भरे से हैं हम, ये जान कर, वो भी भर आये, मुझे अपना मान कर, और भर लिया हमें अपने आलिंगन में अपने, हम और भी भर आये, इतना पहचान कर । @नील पदम्
दर्द से इस कदर तड़प रहा था वो कि, अपना दर्द भूल कर उसको दवा दे दी, इस तरह तो कुछ ऐसा हुआ कि, जज को किसी मुल्जिम ने सजा दे दी । @नील पदम्
सुनो, बहुत दुष्कर है तुम्हारे लिए, मुझे स्पर्श कर पाना, तब जबकि मैं मुझ सा मुझमें हूँ । और, असंभव है तब तो, जब मैं मुझ सा, तुझमें हूँ । @नील पदम्
वो अब कभी किसी भी गली में दिख नहीं सकते भटकते आवारा, कैद कर लिया है अब उनको, दिल के कारागारों में हमने । @नील पदम्
तब कहती थीं कि नहीं, अभी कुछ भी नहीं, अब कहती हो की नहीं, अब कुछ भी नहीं, सच कब बोला तुमने, अब या तब, झूठ कब कहा तुमने, अब या तब । @नील पदम्
मैं तुझे ज़िन्दगी पुकारूँगा, मैं तेरा नाम कुछ सुधारूँगा । @नील पदम्
जब अजनबी से बढ़ी नजदीकियां, तो जाना कि कितना है अजनबी वो । @नील पदम्
शतरंज की बिसात सी बनी है ज़िन्दगी, खुली हुई क़िताब के मानिंद कर निकल। भूल जा हर तलब, हर इक नशा औ जख्म, अब तो बस एक रब का तलबगार बन निकल। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”
कांटों का काम है चुभते रहना, उनका अपना मिज़ाज होता है, चुभन सहकर फिर भी सीने में, कोई गुल उसका साथ देता है । @ नील पदम्
काल के कुचक्र के रौंदें हुए हैं हम, महामारियों के दौर में पैदा हुए हैं हम, पर्यावरण, पृथ्वी, आवो-हवा से हमें क्या, बस खोखले विकास में बहरे हुए हैं हम । @नील पदम्
तेरा नाम नहीं लेंगे पर तू ही निशाना है, तेरे भरोसे उन्हें, व्यापार चलाना है । @नील पदम्
है दौर चला कैसा, है किसकी कदर देखो, पैसों की सिगरेट है, मक्कार धुआं देखो। सीधे-सरल लोगों की दाल नहीं गलती, अब टेढ़ी उंगली है हर सीधी जगह देखो । @नील पदम्
काली अंधियारी रात में चाँद का टुकड़ा जैसे, रोती रेत के बीच में हरियाली का मुखड़ा जैसे, जब तूने खोल कर अपनी सुरमई आँखों से देखा, मुझे ऐसा ही कुछ लगा था उस वक़्त विल्कुल ऐसे । @नील
स्वार्थ के पेड़ पर जब लोभ भी चढ़ जाता है, जंगल के गीत सबसे ज्यादा लकड़हारा गाता है । @नील पदम्
बादा का वादा था, लेकिन जाम आधा था, पूरा भरकर ले आते, मेरा पूरा का इरादा था । @नील पदम् बादा = शराब
जो हो रहा है, जब होना वही है, तो काहे का रोना, जो होना नहीं है । @नील पदम्
वो करेंगे क्या भला, दो कदम जो न चला, जागने की हो घड़ी पर सुप्त है। @नील पदम्
सीढियां जो न चढ़ा, रह गया वहीं खड़ा, वो देखते ही देखते विलुप्त है। @नील पदम्
कट गईं हैं बेड़ियाँ, सब हटी हैं रूढ़ियाँ, अब पुरुषों से आगे मातृ-शक्ति है। @नील पदम्
कल की जैसे बात है, नारी कमजोर जात है, पर कौन अब कहेगा, ये अशक्त है। @नील पदम्
ये कदम रुके नहीं, अब कभी थके नहीं, आसमान की परिक्रमा ही लक्ष्य है। @नील पदम्
धारायें बदली गईं, भारत के नए विधान, गौरव से मन पूर्ण है, इतना सुन्दर काम । धाराये बदली गईं, नूतन नव-परिधान, चलो-चलो इतना हुआ, अपने हुए विधान । दासता के पीठ पर, खुर
साथ दो कदम साथ था दो कदम, छाले पैरों में हैं, पूरी दुनिया भली, पर हम गैरों में हैं। किस तरह हम मुक़दमा बिठाएं यहाँ, हम तो आज़ाद हैं, पर वो पहरों में हैं। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
कैसे हम बोल दें, वो लाख चेहरों में हैं, दीप हमने जलाये अंधेरों में हैं, दीप तो जल गए , उनको दिखते नहीं, ज्यों कड़ी धूप हो, वो दोपहरों में हैं। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" 1
शब्दों की तिजारत तुम हज़ार बातें कह लो, मैं बुरा न मानूंगा, ये प्यार है, कोई शब्दों की तिजारत नहीं। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" 1
जीवन के पाठ प्रारूपों की, परीक्षा का अभ्यर्थी हूँ, रोटी की जुगाड़ से बचे हुए, समय का एक शिक्षार्थी हूँ, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, शेर की दुनियाँ में झाँकता एक बच्चा, भाव करें जो व्यक्त उन्हीं,
कल मोहब्बत की, और आज ख़तम हुई, अच्छा है आग, जितनी जल्दी दफ़न हुई । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
कुछ सवाल हैं पेचीदा, जिनके जबाब ढूँढ़ता हूँ, अजी आप रहने दो, मैं अपने आप ढूँढता हूँ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
उँगली पकड़ कर चल रहा था जो कल तक, मैं आज तक उस बच्चे सा ख़्वाब ढूँढ़ता हूँ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
ऐसा भी नहीं कि इस बीमारी का, कहीं कोई इलाज नहीं, तय कीजिये चाहिए क्या, या तो दर्द नहीं या शायरी नहीं । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
कौन राम जो वन को गए थे, छोटे भईया लखन संग थे, पत्नी सीता मैया भी पीछे, रहती क्यों इस काम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीप
राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र हैं, पुरुषों में जो सर्वश्रेष्ठ हैं, राम-राज्य पर्याय बन गया अच्छे सुशाषित काम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं क
कठिन तपों से करी पढ़ाई, असुरों के संग लड़ी लड़ाई, बचपन बीता संघर्षों में रह पाए न निज धाम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दी
बचपन में ही मारे खर दूषण, कर उत्पातों का दूर प्रदूषण, विध्न हटाये सारे जो थे यज्ञादि पुण्य के काम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में
सकल जमातें जुटी हुईं थीं, धनुष खींचने लगी हुई थी, गुरु-आशीषों के संकेतों में खींच के तोड़ा राम ने । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
देश समाज हित ठान लिया था, वन जाना भी मान लिया था, वो ईश्वर हैं, उन्हें पता था, वन जायेंगे किस काम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम म
लेकिन वन में भी चैन नहीं, विपदायें नित नई-नई, असुर प्रताड़ित करने वाले भी, पहुंचाये बैकुण्ठ धाम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
एक दिन ढ़ोंगी रावण आया, तिलक- कलावा वेष बनाया, सीता माता भोली भाली फँस गईं आसुरी चाल में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीप
राम - राम की टेर लगाई, लेकिन शत्रु जबर था भाई, वीर जटायू प्राण से हारे, माँ सीता बच न पाई रे । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
जैसे बादल कोई फटा था, राम-लखन का ह्रदय फटा था, सीता-सीता, माता-माता, वन में चहुँदिश गुंजायमान । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
वन में माता शबरी देखीं, जात न देखी, जूठ न देखी, बड़े प्रेम से बेर चखे थे मात-प्रेम में राम ने । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (
तब हनुमत जी सम्मुख आये, ब्राह्मण जैसा भेष बनाये, सुग्रीव के दुःख हरने को, प्रभु को देखा श्रीराम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में
बाली का बल बढ़ता जाता, कोई उसको हरा न पाता, लेकिन वह अपने पाप से हारा तार दिया श्रीराम ने । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीप
बजरंगबली की आई बारी, सीता-माता की खबर निकारी, फिर तो सबने जान लिया था माँ लंका में भी वनवास में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
युद्ध कहाँ था टलने वाला, रावण हठी घमंडों वाला, अंगद के पैरों ने बतलाया, नहीं सरल पर काम ये । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@
जली हुई लँका का स्वामी, लेकिन फिर भी रावण अभिमानी, भाई विभीषण मार भगाया, देता था नीति का ज्ञान ये। देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
मेघनाथ तब विपदा लाई, लक्ष्मण गिर गए मूर्छा खाई, राम हृदय फट जाता लेकिन बचा लिया हनुमान ने । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@द
भाई गँवाए, पुत्र गँवाए, लेकिन रावण होश न पाए, आखिर एक दिन वह भी पहुँचा कर्मों के अन्जाम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)
तभी राम जी घर आये थे, सभी नागरिक हर्षाये थे, दीप जले थे जगमग-जगमग पुरी अयोध्या धाम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीपक
सब पृथ्वी के राजा राम, आते थे सदैव प्रजा के काम, राम-राज में सभी सुखी थे नीति अनुसरित काम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (
सकल विश्व में हुई प्रशंसा, बनी नीतिगत असुरी लंका, वर्ष हजारों पहले बन गया मन्दिर उनके नाम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c
राम रूप भी, राम ब्रह्म भी, राम सगुण भी और निर्गुण भी, चाहे कोई जैसे सुमिरे, बन जायेंगे काम रे । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
तभी दौर एक ऐसा आया, एक पड़ा आतंकी साया, मंदिर तोड़ा सोच कर ऐसा, घटे आस्था राम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीपक कुमार
रामलला का मन्दिर तोड़ा, घूँट-घूँट सब पीते पीड़ा, टेंट खींच कर रात गुजारीं अपने प्यारे श्रीराम ने । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
लेकिन फिर से न्याय मिला है, जन-जन का मन खूब खिला है, राम का मंदिर बन जाये ये, इच्छा थी हर इंसान में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
फिर से घर-घर दीप जलेंगे, भू से नभ तक नाद बजेंगे, फिर से लौट अयोध्या देखी, प्रभु ने अपने धाम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।
देखें क्या है राम में, वनवासी श्रीराम में, पुरुषोत्तम श्रीराम में, जनमानस के भगवान में, राम राज उपमा बन जाये ऐसे राजा राम में । देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर
है चन्द्र छिपा कबसे, बैठा सूरज के पीछे, लम्बी सी अमावस को, पूनम से सजाना है। चमकाना है अपनी, हस्ती को इस हद तक, कि सूरज को भी हमसे, फीका पड़ जाना है। ये आग जो बाकी है, उसका तो नियंत्रण ही, थोडा सा
अगर आगे कहीं भी जाना है, तो पहला कदम तो बढाना है।
दस शीश और आँखें बीस कहे बुराई हो गए तीस, मारे फुफकारे अहंकार के छिद्र नासिका सारे बीस, आखों में नफरत का रक्त मुख मदिरा और मद आसक्त, कर्ण बधिर न सुने सुझाव भाई भी हो जाए रिपु, सिर चढ़ता
हाथों में सिन्दूर था ये न उन्हें मंज़ूर था कर रहे थे वंदना सब आलता-कुमकुम सजा रक्त की न गंध हो तो उनको क्या आता मज़ा। मृत्यु की देवी का साया उनके सिर पे सवार था पलकें हुईं बोझिल पड़ीं थीं प्यास