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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" के बारे में

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" रोटी के जुगाड़ से बचे हुए समय का शिक्षार्थी मौलिकता मेरा मूलमंत्र, मन में जो घटता है उसमें से थोड़ा बहुत कलमबद्ध कर लेता हूँ । सिर्फ स्वरचित सामग्री ही पोस्ट करता हूँ । शिक्षा : परास्नातक (भौतिक शास्त्र), बी.एड., एल.एल.बी. काव्य संग्रह: इंद्रधनुषी, तीन (साझा-संग्रह) नाटक: मधुशाला की ओपनिंग सम्पादन: आह्वान (विभागीय पत्रिका) सम्प्रति: भारत सरकार में निरीक्षक पद पर कार्यरत स्थान: कानपुर, मेरठ, रामपुर, मुरादाबाद, नोएडा, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

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पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-10-01
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-09-23
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-09-19
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-08-27
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-08-03
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-07-26
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-07-22
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BEST ARTICLE 2023-07-08
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-07-08

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" की पुस्तकें

नील पदम् दैनन्दिनी

नील पदम् दैनन्दिनी

रोज रोज रोजनामचा

75 पाठक
46 रचनाएँ

निःशुल्क

नील पदम् दैनन्दिनी

नील पदम् दैनन्दिनी

रोज रोज रोजनामचा

75 पाठक
46 रचनाएँ

निःशुल्क

नील पदम् की डायरी

नील पदम् की डायरी

मन में उमड़ती हुई भावनाओं के समंदर का एक द्वीप

26 पाठक
38 रचनाएँ

निःशुल्क

नील पदम् की डायरी

नील पदम् की डायरी

मन में उमड़ती हुई भावनाओं के समंदर का एक द्वीप

26 पाठक
38 रचनाएँ

निःशुल्क

नील पदम् की कहानियाँ

नील पदम् की कहानियाँ

अभागा, निशानी, हाथ का बुना स्वेटर, लूट का माल एवं नील पदम् लिखित अन्य कहानियाँ

21 पाठक
7 रचनाएँ

निःशुल्क

नील पदम् की कहानियाँ

नील पदम् की कहानियाँ

अभागा, निशानी, हाथ का बुना स्वेटर, लूट का माल एवं नील पदम् लिखित अन्य कहानियाँ

21 पाठक
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चिन्दियाँ

चिन्दियाँ

चंद शब्दों में बड़ी बातें कहने की कोशिश

17 पाठक
80 रचनाएँ

निःशुल्क

चिन्दियाँ

चिन्दियाँ

चंद शब्दों में बड़ी बातें कहने की कोशिश

17 पाठक
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अस्तित्व (स्व:अन्वेषण)

अस्तित्व (स्व:अन्वेषण)

अपने अस्तित्व की खोज में एक कदम बढ़ने का आनंद

10 पाठक
20 रचनाएँ

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अस्तित्व (स्व:अन्वेषण)

अस्तित्व (स्व:अन्वेषण)

अपने अस्तित्व की खोज में एक कदम बढ़ने का आनंद

10 पाठक
20 रचनाएँ

निःशुल्क

ड्योढ़ी लाँघकर

ड्योढ़ी लाँघकर

मेरी मनपसंद वो कवितायेँ जो मेरे अंतर्मन की ड्योढ़ी लांघकर आप तक पहुँचने के प्रयास में हैं ।

8 पाठक
18 रचनाएँ

निःशुल्क

ड्योढ़ी लाँघकर

ड्योढ़ी लाँघकर

मेरी मनपसंद वो कवितायेँ जो मेरे अंतर्मन की ड्योढ़ी लांघकर आप तक पहुँचने के प्रयास में हैं ।

8 पाठक
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निःशुल्क

भानमती का पिटारा

भानमती का पिटारा

परिचय ज़िंदगी के पथ पर रोजमर्रा के सवाल जबाब से

2 पाठक
6 रचनाएँ

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भानमती का पिटारा

भानमती का पिटारा

परिचय ज़िंदगी के पथ पर रोजमर्रा के सवाल जबाब से

2 पाठक
6 रचनाएँ

निःशुल्क

हरिशंकर की परछाईं

हरिशंकर की परछाईं

हास्य-व्यंग्य की रोचक यात्रा नाटक विधा के रूप में ....... आशान्वित हूँ कि आपको पसंद आएगा

1 पाठक
2 रचनाएँ

निःशुल्क

हरिशंकर की परछाईं

हरिशंकर की परछाईं

हास्य-व्यंग्य की रोचक यात्रा नाटक विधा के रूप में ....... आशान्वित हूँ कि आपको पसंद आएगा

1 पाठक
2 रचनाएँ

निःशुल्क

मधुशाला की ओपनिंग

मधुशाला की ओपनिंग

दो शराबियों के द्वारा अपनी खुद की मधुशाला खोलने के प्रयास..... (पूर्व में इस नाटक का मंचन हो चुका है, यदि किसी को मंचन के लिए नाटक की स्क्रिप्ट चाहिए तो सूचित करके लेखक से इसे प्राप्त कर सकता है। अभी यहाँ पर प्रकाशित होने में थोड़ा समय लग सकता है )

0 पाठक
0 रचनाएँ

निःशुल्क

मधुशाला की ओपनिंग

मधुशाला की ओपनिंग

दो शराबियों के द्वारा अपनी खुद की मधुशाला खोलने के प्रयास..... (पूर्व में इस नाटक का मंचन हो चुका है, यदि किसी को मंचन के लिए नाटक की स्क्रिप्ट चाहिए तो सूचित करके लेखक से इसे प्राप्त कर सकता है। अभी यहाँ पर प्रकाशित होने में थोड़ा समय लग सकता है )

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एक अज्ञानी के दो शब्द

एक अज्ञानी के दो शब्द

महान लेखन को पढ़कर मन में कुछ न कुछ घटित अवश्य होता है। मुझे ऐसा विचार आया कि अपने मन के कूप में पड़े रहकर काई लगने से अच्छा है कि मुक्त आकाश में इन मन-घटित को विचरने दें ताकि मेरी मुक्ताकाश में उडती पतँग को देखकर और पतंगे भी पेंग लें और शायद मेरा शब्

0 पाठक
1 रचनाएँ

निःशुल्क

एक अज्ञानी के दो शब्द

एक अज्ञानी के दो शब्द

महान लेखन को पढ़कर मन में कुछ न कुछ घटित अवश्य होता है। मुझे ऐसा विचार आया कि अपने मन के कूप में पड़े रहकर काई लगने से अच्छा है कि मुक्त आकाश में इन मन-घटित को विचरने दें ताकि मेरी मुक्ताकाश में उडती पतँग को देखकर और पतंगे भी पेंग लें और शायद मेरा शब्

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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" के लेख

छब्बीस-ग्यारह (मुम्बई) _ 26/11 (श्रद्धांजलि)

27 नवम्बर 2023
2
1

सागर के सीने से निकले थे, काल सरीखे नाग। मुम्बई में बरसाने आये थे, जो जहरीली आग ।। रण रिपु छेड़ रहा था लेकिन, हम थे इससे अन्जान। छब्बिस ग्यारह दिवस ले गया, कई निर्दोषों की जान ।। तांडव कर

ये हार नहीं अंत है

21 नवम्बर 2023
3
2

ये सिर्फ एक हार है  भले ही कुछ बड़ी हो पर ये अंत कदापि नहीं ........................                   शूरवीरों की तरह लड़ते हुए ज़ख्मी हुए ज़ख्मों को भी अस्त्र सा संभाल लीजिये,  आगे भिड़े तो शत्र

अर्ध्य दिया है सूरज तुमको

15 नवम्बर 2023
1
0

हे दिनकर अहसानमंद हम तुमसे जीवन प्राण पाएं हम चले पवन और बरसें बादल झूमे मन हो मतवाला हो पागल हो  हरा भरा पृथ्वी का आंचल क्या क्यों हिमनद क्या विंध्याचल क्या सरयू क्या यमुना क्या गंगा उत्तंग

मेरी काव्य पंक्तियों में ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का द्वितीय सूक्त

7 नवम्बर 2023
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हे वायुदेव तुम सुन्दर मन तुम सुन्दर मन, तुम सुन्दर तन सुनो प्रार्थना, हम करें हवन इस यज्ञ हेतु है अभिनन्दन । भाव भरे घट रखे  सोमरस तुम लाते बसंत, तुम लाते पावस प्रेम भरा ये  निमंत्रण

मित्रावरुण (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - नवम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
1
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"  कवीनोमित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम् । "   अनेक कर्मों को सम्पन्न कराने वाले विवेकशील तथा अनेक स्थलों में निवास करने वाले मित्रावरुण हमारी क्षमताओं और कार्यों को पुष्

सत्य यज्ञ (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - अष्टम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
1
0

"  ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा । क्रतुं बृहन्तमाशाथे ।  "   सत्य को फलितार्थ करने वाले सत्ययज्ञ के पुष्टिकारक देव मित्रावरुणो ! आप दोनों हमारे पुण्यदायी कार्यों (प्रवर्त्तमान सोमयाग

प्रकृति नियंता शत्रु हन्ता (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - सप्तम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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"  मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम् । धियं घृताचीं साधन्ता ।  " घृत के समान प्राणप्रद वृष्टि-सम्पन्न कराने वाले मित्र और वरुण देवों का हम आवाहन करते हैं। मित्र हमें बलशाली बनायें तथा वरुणदेव

आओ पधारो देव (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - षष्ठम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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"  वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम् । मक्ष्वित्था धिया नरा ।  "  हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों बड़े सामर्थ्यशाली हैं। आप यजमान द्वारा बुद्धिपूर्वक निष्पादित सोम के पास अति श

भोलाराम का जीव 2.0

4 नवम्बर 2023
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सूत्रधार- प्रख्यात व्यंगकार श्रद्धेय श्री हरिशंकर परसाई जी की कृति भोलाराम का जीव तो आपने पढ़ा ही होगा । अगर नहीं पढ़ा तो इसी ऑफिस में हुआ नाट्यमंचन तो याद होगा। चलिये कोई बात नहीं हम संक्षिप्त में ब

दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत

4 नवम्बर 2023
4
0

दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत  आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।  दीप ऐसे जलें, न अन्धेरा  रहे  शाम हो न कभी, बस सवेरा रहे, रौशनी की कड़ी से कड़ी सब जुड़ें  रौशनी प्यार की बिखरी हो हर तरफ ।  दीप ज

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