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पाश की प्रतिनिधि कविताएँ

Avtar Singh Sandhu 'Pash'

24 अध्याय
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11 पाठक
निःशुल्क

पाश की जीवन के प्रति चेतना तथा उनकी कविताओं का संग्रह पाठकों को इस किताब के माध्यम से मिलेगा।  

pash ki pratinidhi kavitayen

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पाश की प्रतिनिधि कविताएँ जीवन, समाज और आम लोगों के संघर्षों पर एक अनूठा और ताज़ा परिप्रेक्ष्य प्रदान करती हैं। उनके शब्द कच्ची भावना और मानवीय स्थिति की गहरी समझ से भरे हुए हैं, जो सभी उम्र और पृष्ठभूमि के पाठकों के साथ प्रतिध्वनित होते हैं। पाश की कविताएँ सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर सशक्त टिप्पणी प्रस्तुत करती हैं, साथ ही पाठकों को जीवन की चुनौतियों में आशा और अर्थ खोजने के लिए प्रेरित करती हैं। कुल मिलाकर, पाश की प्रतिनिधि कविताएँ एक दूरदर्शी कवि और मानवीय भावना के चैंपियन के रूप में उनकी स्थायी विरासत का प्रमाण हैं।

Avtar Singh Sandhu 'Pash' की अन्य किताबें

पुस्तक के भाग

1

पाश का जीवन तथा काव्य परिचय

25 मार्च 2023
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पाश का पूरा  नाम अवतार सिंह संधु था। पंजाब के प्रमुख कवियों के रूप में उनको जाना जाता है। पाश की पहली कविता 1967 में छपी, जबकि पहली कविता उन्होंने पद्रह वर्ष की आयु में लिखी थी। कवि के रूप में पाश को

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लौहकथा १९७० ( भारत कविता )

27 मार्च 2023
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भारत -   मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द  जहां कहीं भी प्रयोग किया जाए  बाकी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं  इस शब्द के अर्थ  खेतों के उन बेटों में हैं  जो आज भी वृक्षों की परछाइयों से  वक्त मापत

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प्रतिबद्धता कविता - पाश

27 मार्च 2023
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हम चाहते है अपनी हथेली पर कुछ इस तरह का सच जैसे गुड़ की चाशनी में कण होता है जैसे हुक्के में निकोटिन होती है जैसे मिलन के समय महबूब की होठों पर कोई मलाई जैसी चीज़ होती है

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संविधान कविता - पाश

27 मार्च 2023
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संविधान यह पुस्‍तक मर चुकी है इसे मत पढ़ो इसके लफ़्ज़ों में मौत की ठण्‍डक है और एक-एक पन्‍ना ज़िन्दगी के अन्तिम पल जैसा भयानक यह पुस्‍तक जब बनी थी तो मैं एक पशु था सोया हुआ पशु और जब मैं जागा

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हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते कविता - पाश

27 मार्च 2023
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हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते जिस तरह हमारे बाजुओं में मछलियाँ हैं, जिस तरह बैलों की पीठ पर उभरे सोटियों के निशान हैं, जिस तरह कर्ज़ के काग़ज़ों में हमारा सहमा और सिकुड़ा भविष्‍य है हम ज़िन्दग

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भगत सिंह ने पहली बार कविता - पाश

27 मार्च 2023
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भगत सिंह ने पहली बार पंजाब को जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से बुद्धिवाद की ओर मोड़ा था जिस दिन फाँसी दी गई उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था पंजाब की जवानी को उसके आख

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सबसे खतरनाक कविता व भूमिका

31 मार्च 2023
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अवतार सिंगह संधू पाश ने अपनी कविता सबसे खतरनाक में फासीवाद का बढ़ना तथा आम जन का उसपे कोई प्रतिक्रिया न करने पर अपने काव्य के माध्यम से लोगों को क्रांति लाने के लिए प्रेरित किया है। हमारे समाज में बहुत

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पाश की कविता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

31 मार्च 2023
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फासीवाद से जकड़े समाज की सबसे बड़ी समस्या है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर राजनेताओं का हस्तक्षेप। पाश के तत्कालीन समाज में उन्होंने भी इस ही समस्या को देखा था, झेला शब्द यद्यपि प्रयोग में लाना गलत होगा क

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क़ैद करोगे अंधकार में कविता

31 मार्च 2023
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क्या-क्या नहीं है मेरे पास शाम की रिमझिम नूर में चमकती ज़िंदगी लेकिन मैं हूं घिरा हुआ अपनों से क्या झपट लेगा कोई मुझ से रात में क्या किसी अनजान में अंधकार में क़ैद कर देंगे मसल देंगे क्या जीव

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घास कविता

31 मार्च 2023
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मैं घास हूँ मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर मेरा क्‍या करोगे मैं तो घास हूँ हर चीज़ प

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सपने कविता

31 मार्च 2023
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हर किसी को नहीं आते बेजान बारूद के कणों में सोई आग के सपने नहीं आते बदी के लिए उठी हुई हथेली को पसीने नहीं आते शेल्फ़ों में पड़े इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते सपनों के लिए लाज़मी है झेलनेव

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23 मार्च कविता

31 मार्च 2023
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उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग किसी दृश्य की तरह बचे ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की देश सारा बच रहा बाक़ी उसके चले जाने के बाद उसकी शहादत के बाद अपने भीतर खुलती खिडकी में लोगो

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हम लड़ेंगे साथी कविता

31 मार्च 2023
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हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर यह काम हमारा नह

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मैं पूछता हूँ कविता

31 मार्च 2023
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मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से क्या वक़्त इसी का नाम है कि घटनाएँ कुचलती चली जाएँ मस्त हाथी की तरह एक पूरे मनुष्य की चेतना ? कि हर प्रश्न काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ? क्यूँ

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अब विदा लेता हूँ कविता

31 मार्च 2023
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अब विदा लेता हूँ मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ मैंने एक कविता लिखनी चाही थी सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं उस कविता में महकते हुए धनिए का ज़िक्र होना था ईख की सरसराहट का ज़िक्र होना था उस

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आधी रात में कविता

1 अप्रैल 2023
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आधी रात में मेरी कँपकँपी सात रजाइयों में भी न रुकी सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया सातों रजाइयाँ गीली बुखार एक सौ छह, एक सौ सात हर साँस पसीना-पसीना युग को पलटने में लगे लोग बुख़ार से नहीं मरते मृ

17

मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से कविता

1 अप्रैल 2023
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मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से क्या वक़्त इसी का नाम है कि घटनाएँ कुचलती हुई चली जाएँ मस्त हाथी की तरह एक समूचे मनुष्य की चेतना को ? कि हर सवाल केवल परिश्रम करते देह की ग़लती ही हो क

18

तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पावों की सौगन्ध बापू कविता

1 अप्रैल 2023
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तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पाँवों की सौगन्ध बापू तुम्हें खाने को आते रातों के जाड़ों का हिसाब मैं लेकर दूँगा तुम मेरी फ़ीस की चिंता न करना मैं अब कौटिल्य से शास्त्र लिखने के लिए विद्यालय नहीं जाया

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उनके शब्द लहू के होते हैं कविता

1 अप्रैल 2023
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जिन्होंने उम्र भर तलवार का गीत गाया है उनके शब्द लहू के होते हैं लहू लोहे का होता है जो मौत के किनारे जीते हैं उनकी मौत से ज़िन्दगी का सफ़र शुरू होता है जिनका लहू और पसीना मिटटी में गिर जाता है

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तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं कविता

1 अप्रैल 2023
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तुम्हारे बग़ैर मैं बहुत खचाखच रहता हूँ यह दुनिया सारी धक्कम-पेल सहित बेघर पाश की दहलीजें लाँघ कर आती-जाती है तुम्हारे बग़ैर मैं पूरे का पूरा तूफ़ान होता हूँ ज्वार-भाटा और भूकम्प होता हूँ तुम्हारे

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वफ़ा कविता

1 अप्रैल 2023
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बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए मैं भूल गया हूँ कब से, अपनी आवाज़ की पहचान भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका मेरे लिए वर्ण अ

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हमारे लहू को आदत है कविता

1 अप्रैल 2023
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हमारे लहू को आदत है मौसम नहीं देखता, महफ़िल नहीं देखता ज़िन्दगी के जश्न शुरू कर लेता है सूली के गीत छेड़ लेता है शब्द हैं की पत्थरों पर बह-बहकर घिस जाते हैं लहू है की तब भी गाता है ज़रा सोचें

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अपनी असुरक्षा से कविता

1 अप्रैल 2023
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यदि देश की सुरक्षा यही होती है कि बिना जमीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द अश्लील हो और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे तो हमें देश की सुरक्षा स

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क्या-क्या नहीं है मेरे पास कविता

1 अप्रैल 2023
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क्या-क्या नहीं है मेरे पास शाम की रिमझिम नूर में चमकती ज़िन्दगी लेकिन मैं हूँ घिरा हुआ अपनों से क्या झपट लेगा कोई मुझ से रात में क्या किसी अनजान में अन्धकार में क़ैद कर देंगे मसल देंगे क्य

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