बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए
मैं भूल गया हूँ कब से, अपनी आवाज़ की पहचान
भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए
मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी
मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका
मेरे लिए वर्ण अपनी ध्वनि खो बैठे हैं बहुत देर से
मैं अब लिखता नहीं- तुम्हारे धूपिया अंगों की सिर्फ़
परछाईं पकड़ता हूँ ।
कभी तुमने देखा है- लकीरों को बगावत करते ?
कोई भी अक्षर मेरे हाथों से
तुम्हारी तस्वीर बन कर ही निकलता है
तुम मुझे हासिल हो (लेकिन) क़दम-भर की दूरी से
शायद यह क़दम मेरी उम्र से ही नहीं
मेरे कई जन्मों से भी बड़ा है
यह क़दम फैलते हुए लगातार
रोक लेगा मेरी पूरी धरती को
यह क़दम माप लेगा मृत आकाशों को
तुम देश में ही रहना
मैं कभी लौटूँगा विजेता की तरह तुम्हारे आँगन में
इस क़दम या मुझे
ज़रूर दोनों में से किसी को क़त्ल होना होगा ।