अमन डामर की सड़क पर सिर झुकाये धीरे धीरे स्कूल की तरफ चला जा रहा था।पास आते साईकल के पहिये की परछाईं से उसने नज़रें ऊपर उठाईं।अखबार वाले सगीर भैया थे,"क्या अमन,आज फिर लेट।जल्दी बैठ डंडे पे वर्ना स्कूल में ताला लग जायेगा।"कहते हुए सगीर भैया ने अमन को अपनी साईकल के डंडे पर बैठाया और घंटी बजाते हुए तेजी से स्कूल की तरफ चल पड़े।अमन को याद नहीं की पहली बार उसने सगीर भैया को कब देखा था और उनकी साइकिल पर बैठ स्कूल जाने का सिलसिला कब से शुरू हुआ।हालाँकि घर पर सबके मुंह से बार बार एक ही कहानी सुन सुनकर उसे भी याद हो गया था की एल के जी में भर्ती के पहले दिन जब पापा का स्कूटर उसे स्कूल छोड़ने के वक्त स्टार्ट नहीं हुआ तभी पीछे से घंटी की आवाज सुनाई दी और उसने पहली बार ये नाम सुना,"सगीर भैया"।
पहले तो ये नाम उसे बिलकुल ही अजीब लगा जिस कारण बार बार बोलने से उसे याद भी जल्दी हुआ।घर के सब लोगों के नाम रमेश,शांति,मुकेश,महेश और पड़ोस में वर्मा,मिश्रा और तिवारी जी के नाम कम अजीब थे पर ये नाम उन सब से अलग था।घंटी की टिन टिन हुई और साईकल स्कूल के गेट के सामने थी।अमन डंडे से उतर कर स्कूल की तरफ चल पड़ा और सगीर की साइकिल फिर घंटी बजाते दूर निकल गई।अमन के ऊपर सगीर और उसकी साइकिल का असर कुछ इस कदर था की ड्राइंग की कक्षा में मिस जब बच्चों को चित्र बनाने को कहतीं तो अमन दो बड़े बड़े अंडाकार पहियों के ऊपर डंडे से जुड़े हैंडल पर रंगीन घंटी लगा देता और नीचे टेढ़े मेढ़े अक्षरों में लिखता- साईकिल।
शाम को स्कूल से लौटने के बाद अमन की ट्यूशन होती थी जिसे अल्पना दीदी लेने आती थीं।अल्पना एक छोटी ही लड़की थी जिसने अभी हाल ही में बारहवीं कक्षा के इम्तिहान में शहर में सबसे अधिक अंक पाये थे और सबसे अच्छे कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया था।अल्पना की इसी उपलब्धि से प्रभावित होकर मोहल्ले के सभी माता पिता अपने बच्चों को उसी से ट्यूशन पढ़वाना चाहते थे।सगीर और अल्पना लगभग हम उम्र ही थे।दोनों ने अपनी प्राथमिक पढ़ाई सरकारी विद्यालय से ही एक ही कक्षा में की थी।जहाँ पिता के देहांत के बाद सगीर ने कक्षा छह में पढ़ाई छोड़ कर छोटे मोटे काम करने शुरू कर दिए थे वहीँ अल्पना एक मध्यमवर्गीय आर्थिक रूप से सक्षम परिवार से होने के कारण अपनी पढ़ाई को सफलतापूर्वक आगे जारी रख सकी।अक्सर दोनों कभी सुबह एक दूसरे से मिल जाते तो आँखों ही आँखों में एक दूसरे से बचपन की सारी बातें कह जाते।सगीर हड़बड़ाहट में साइकिल की घंटी को तेजी से बजाता और पैडल को जल्दी जल्दी मारते हुए उसके सामने से साइकिल लेकर भाग जाता।अल्पना वहां इस तरह खड़ी रह जाती जैसे जाने कितनी बातें उसे कहने को रह गयी हों।एक सोमवार को अमन उसी तरह सर झुकाये धीरे धीरे स्कूल की तरफ जा रहा था तभी उसे साइकिल की घंटी की आवाज़ सुनाई दी,हमेशा की तरह बिना सगीर की ओर देखे वो साइकिल पर बैठा और दोनों चल पड़े।सगीर इधर उधर की बातचीत करते हुए पैडल मार रहा था तभी उसे बगल में स्कूटी के हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी।सगीर के तो जैसे हाथ पांव फूल गए।उसे लगा उसके पैरों में किसी ने दस दस किलो वजन का लोहा बांध दिया हो और लाख पैडल मारने पर भी साइकिल अपनी जगह से हिल ही न रही हो।बारहवीं पास करने पर पिता द्वारा गिफ्ट की हुई स्कूटी पर ये अल्पना थी।सुबह की सैर के लिए वो स्कूटी से फील्ड तक जाती थी।उसने अमन की तरफ देखते हुए बोला,"क्यों अमन,स्कूल जा रहे हो?"अमन ने सोचा की दीदी को क्या हुआ है,स्कूल ड्रेस में बस्ते के साथ मैं और कहाँ जाऊंगा?अमन ने इसके जवाब में दीदी को गुड मॉर्निंग कहना ज्यादा सही समझा।अमन के गुड मॉर्निंग का जवाब देकर अल्पना ने सगीर की ओर देखा।वह अपनी आँखों को सड़क के आखरी छोर पर टिकाये चुपचाप साइकिल चलाये जा रहा था।अल्पना ने उसे पुकार कर पुछा,"कैसे हो सगीर?","अं,...हाँ...मैं ठीक हूँ तुम कैसी हो?" सगीर ने इस तरह जवाब दिया जैसे किसी लंबी नींद से जागा हो।"मैं काफी दिनों से तुमसे बात करने की कोशिश कर रही थी,खासकर जब से मेरे बारहवीं के नतीजे आये थे।"अब सगीर ने थोड़ा थोड़ा उसके चेहरे की ओर देख कर साइकिल चलाता जा रहा था।"तुम्हे मालूम है न,मैंने बारहवीं अच्छे अंकों से पास की और काफी नाम हुआ और इनाम भी मिले।"अब सगीर सोच रहा था कि शायद अल्पना उसकी हालत पर उसे नीचा दिखाने आई है।एक ही साथ शुरुआत करने वाले दोनों के जीवन के अंतर को दिखाने आई है।खटारा साइकिल और चमचमाती स्कूटी के अंतर को दिखाने के लिए आई है।उसने बेरुखी से कहा,"हाँ मालूम चला था,अखबार में फ़ोटो छपी थी।"
"मैं जब भी तुम्हे देखती थी मुझे अपने बचपन के वो दिन याद आते थे जब हम एक ही कक्षा में पढ़ते थे।याद है तुम्हे?कक्षा छह में जब छमाही परीक्षा में तुमने मुझे गणित में एरिया का फार्मूला बताया था।मैं अपने जीवन में कभी उस एक क्षण को भूल नहीं पाई।मैंने जितनी भी परीक्षाएं दी जितने भी अच्छे से अच्छे लोगों के बीच बैठ कर पढ़ाई की मुझे कभी तुम्हारा वो बचपन वाला चेहरा नहीं भूला।मैंने कितनी बार तुमसे मिलकर तुम्हे शुक्रिया कहने के बारे में सोचा मगर कुछ तो अपनी उपलब्धियों के कारण और संकोच के कारण इतनी देर कर बैठी।उस पांच अंकों के सवाल के सही होने पर ही मैं कक्षा छह में प्रथम स्थान पर आ पाई।और तुम?तुमने उस परीक्षा में अच्छे अंक आने पर भी पढ़ाई बीच में छोड़ दी।"अब तक दोनों स्कूल के गेट पर पहुँच चुके थे।अमन साइकिल से उतर कर स्कूल के अंदर जाने लगा।जाने क्या सोच कर वह मुड़ा और उसने सगीर और अल्पना दोनों के नाम ले कर उन्हें बाय कहा।
सगीर और अल्पना कुछ देर तक खड़े स्कूल के गेट के अंदर सूखे हुए आम के बड़े पेड़ को देख रहे थे।जब वे पढ़ते थे तो ये पेड़ हरा भरा हुआ करता था।इसके आमों का स्वाद का तो सगीर को अब भी याद था।सगीर ने एक लंबी सांस ले कर कहा..,"अल्पना.."उसे कुछ देर तो यकीन ही नहीं हुआ की उसका नाम वह इतनी आसानी से बोल पाया है,"इस स्कूल में बहुत से बच्चे आते हैं,कुछ मेरे जैसे,कुछ तुम्हारे जैसे।हम सब इस गेट के अंदर घुसते तो एक ही साथ,एक तरह से हैं मगर बाहर निकलने पर दुनिया हमारे लिए एकदम अलग होती है।ये साइकिल देख रही हो?कितनी पुरानी है।मेरे अब्बा की है।इसी से वो मुझे छोड़ने स्कूल आते थे।वो हमेशा से चाहते थे कि मैं पढ़ लिख कर एक इज़्ज़तदार आदमी बनूँ।वो चाहते थे कि शर्मा अंकल और तुम्हारे पापा की तरह मेरी बातों को भी मोहल्ले वाले ध्यान से सुनें और आते जाते पढ़े लिखे लोग मुझसे नमस्कार करें।मगर सब कुछ उनके हाथ में नहीं था।अब्बा का काम बंद हुआ तो बेचैनी के कारण वो बीमार रहने लगे शुरू में तो जमाखर्च से फीस के पैसे निकल आये मगर धीरे धीरे दवा का खर्च फीस पर भारी पड़ने लगा।मैंने अब्बा को नहीं बताया कि मैं कक्षा छह की छमाही में फेल नहीं हुआ था।मैं चाहता था कि वो पढ़ाई छूटने का जिम्मेदार खुद को न समझें।मगर पढ़ाई के खर्च ख़त्म होने के बाद भी उनकी हालत में सुधर नहीं हुआ।घर चलाने के लिए मैंने कई काम किये।तुम लोगों की कक्षा से जिस तरह मैं अचानक गायब हुआ था उसी तरह धीरे धीरे तुम सब के दिमाग से भी निकल गया।अब तो बस मेरी ये साइकिल है और केरियल में दबे अखबार।हाँ,आते जाते स्कूल के गेट के सामने से गुजरने की कोशिश करता हूँ ताकि अपने बचपन को इन बच्चों को देखकर जी सकूँ।अच्छा चलता हूँ साहबों की कॉलोनी में अखबार पहुँचाने हैं"सगीर ने घंटी बजाई और अल्पना के सामने से निकल गया।वह कुछ देर वहीँ खड़ी रही उसने तार से मैदान में देखा,उसे सीढ़ी पर बैठ कर लंच करती वो और उसकी सहेलियाँ दिखीं,दूसरी तरफ आम के फलदार पेड़ के नीचे सगीर एक ढेले से निशाना बनाकर पेड़ पर मार रहा है।वह स्कूटी स्टार्ट करती है और निकल जाती है।
अशरफ शेख़