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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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चल बेटा, अब बंद करती हूं।
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया।
वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बहुत सीखते हैं। सच तो ये है कि हम सब अपने ही जीवन से सीखते हैं। यदि दूसरों की ज़िंदगी हमें सिखा दे, तो खुद अपनी ज़िंदगी का हम क्या करें?
कहा जाता है अपने अपने जीवन में हम सब अकेले हैं। पर मुझे तो हमेशा से ये लगता है कि कोई अकेला नहीं है, अपने अपने बदन में भी हम सब कई- कई रूपों में बसे हैं। एक के साथ हम अच्छे बन जाते हैं, दूसरे के साथ बुरे, किसी को चाहते हैं तो किसी को दुत्कारते हैं। फिर अपने जिस्म के भीतर भी हम बाहर से कुछ और हैं तो भीतर से कुछ और। एक हम अपने लिए हैं, एक दूसरों के लिए... कोई शायर कह भी गया है न -
"हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना!"
तू तो मेरे अपने जिस्म का टुकड़ा था। तेरे पिता ने अपना सत्व देकर तुझे मेरे जिस्म से ही खींचा था। हमने तुझे पाला था। मैंने अपना दूध तुझे पिलाया, तेरे पिता ने अपने सपने तुझ में बोए। वो कंधे पर तुझे उठाए घूमते थे।
लेकिन जब मेरी दुनिया बिखरी तो वो मेरे तन से दूर हो गए, तू मन से।
नहीं नहीं... माफ़ करदे बेटा। तू मन से मुझसे दूर कभी नहीं हुआ। मैं जानती हूं कि तू मुझे बहुत प्यार करता था। गलती मेरी ही थी जो मैं तुझ से अलग सोचती थी। मैं तेरे सपने में अपनी उमंग के रंग नहीं भर पाई।
ये दुनिया ऐसी ही है, किसी फिरोज़ा झील सी। हम सब के सपने यहां मछलियों की तरह तैरते हैं और एक दूसरे के सपनों से टकराते रहते हैं। हम सब के भीतर छिपी मछलियां ही हमें दुनिया में किसी के लिए अपना तो किसी के लिए पराया बनाती हैं।
बेटा, अब इन बातों का तो कोई अंत ही नहीं है। जब तक जीवन है तब तक बातें हैं।
ले, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं। मुझे कुछ याद ही नहीं रहता। अब कहां है जीवन? मैं तो बरसों पहले ही मर गई थी और अब तू भी मर गया। अब बातें कैसी?
लेकिन तू कुछ भी कह, एक बात तो मैं ज़रूर कहूंगी। दुनिया में मज़ा तो बहुत आया।
मैं तो पैदा ही एक जेल में हुई थी। नहीं नहीं, मैंने कोई अपराध नहीं किया था। अपराधी थी मेरी मां! हत्या उसने की थी।
औरों को तो मैं कुछ नहीं बता सकी। उन्हें जो कुछ बताया पास -पड़ौस वालों ने, भीड़ ने, पुलिस ने, कचहरी ने बताया। पर तुझे तो मैं बता ही सकती हूं। मेरी मां हत्या करने नहीं गई थी। तू खुद सोच, हत्या करने जाती तो साथ में बंदूक, तमंचा, छुरी, खंजर कुछ तो लेकर निकलती न?
वो तो पानी की बाल्टी लेकर घर से निकली थी। पानी का मटका थामे निकली थी। वो बेचारी क्या करती! प्यास तो सबको लगती थी न। पानी न लाती तो क्या सबको प्यासा तड़पते हुए देखती? उसके पानी के बर्तन को एक औरत ने फोड़ दिया। बस, उसने औरत का सिर फोड़ दिया।
इतनी सी बात थी।
... नहीं बेटा। ये इतनी सी बात नहीं थी।
- जाने दे, हम अब न कोई हत्या की बात करेंगे, न अपराध की और न ही पानी की! बातों का क्या, कभी ख़त्म थोड़े ही होती हैं बातें?
मैं मर गई, तू भी मर गया! हमें अब क्या करना। करना है तो दुनिया वाले करेंगे...
पानी है ही ऐसी चीज़। सफीने इसी में तैरते हैं इसी में डूबते हैं!
(समाप्त)


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही थी। मेरी मां बताती थी कि

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें

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मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

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अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिय

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