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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं।
है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं।
शायद इसीलिए जवानी में लोग खतरों से खेलते हैं कि उन्हें कभी बूढ़ा न होना पड़े। बुढ़ापे से मौत भली। ठीक कह रही हूं न मैं?
पर बेटा ऐसा नहीं है। बुढ़ापा बहुत शान और सलीके का दौर है। मैं तुझे बताऊं, इंसान को असली आराम तो इसी समय मिलता है। बुढ़ापा जीवन का ऐसा दौर है कि सब तब तक ज़िन्दगी में जो कुछ भी करना चाहें, कर चुके होते हैं। दायित्व बाक़ी नहीं रहते।
न कहीं जाने की जल्दी और न ही न जा पाने का दुख। घर ही भला लगता है।
जवानी जैसी उखाड़- पछाड़ नहीं रह जाती कि ये करना है, यूं करना है।
तू मुझे वचन दे कि तू बूढ़ा होगा। मरेगा नहीं। क्या फ़ायदा बेटा, जियो न जितनी ज़िन्दगी मिले।
दुष्ट, मैं सब देख रही हूं। हंस रहा है न तू।
जवानी में तो साथी के होंठों को चूमने की इच्छा भी इसलिए होती है कि अपने ख़ुद के होठों में बला की प्यास होती है और उसके बदन में रस होता है। मगर बुढ़ापे में इसलिए चूमने का दिल करता है कि देखो, यही इंसान है जिसने जीवन भर हमारा साथ दिया। हमारे सब काम किए। इसका शुक्रिया!
बेटा, जिस बुखार में तप कर इंसान जवानी में शादी करने के लिए छटपटाता है, घर वालों को छोड़ने तक को तैयार हो जाता है वही बुखार बुढ़ापा आते ही एक मंद- मंद समीर में बदल जाता है। कोई हो तो उससे हंस- बोल कर जी बहला ले, और न हो तो उसकी यादों के सहारे ही समय काट ले।
जिन्हें सब चेहरे की झुर्रियां कहते हैं न, वो कोई ग़म के गीत गाती शहनाइयां नहीं होतीं, वो तो उन शरारतों की लहरें होती हैं जो हमने जीवन भर कीं। हमारे बदन पर पड़ी झाइयां उन अंगुलियों के पोरों के अक्स होते हैं जिन्होंने हमें छुआ या हमसे छेड़छाड़ की। हमें गुदगुदाया। हमें चूमा।
ओह! मैं भी क्या बेकार की कहानी लेकर बैठ गई। तू भी तो पक्का ढीठ है। मानेगा थोड़े ही कुछ। तेरा फितूर तो बदस्तूर तेरे सिर पर चढ़ कर नाच रहा है। वो आ गया तेरा दोस्त अर्नेस्ट। न जाने क्या- क्या कबाड़ इकट्ठा कर रहे हो दोनों। कमरे को भूसे से भर रखा है। न जाने किस ऊतपंच में लगे हो। मरने की कोई ऐसी तैयारी भी करता है भला?
और ये तेरा दोस्त भी क्या साथ में मरेगा तेरे? मैं अभी दोनों का सिर फोड़ दूंगी। नालायक कहीं के। शरम नहीं आती अपनी मां की बात की अनदेखी कर रहा है। तूने मुझे पैदा किया है या मैंने तुझे जन्म दिया है? क्या मेरा तुझ पर इतना सा भी हक़ नहीं है कि तुझे ऊटपटांग काम करने से रोक सकूं।
मान जा बेटा! आ, हम सब मिल कर लूडो खेलेंगे। चल मैं तुम दोनों के लिए सैंडविच और पुडिंग बनाती हूं। वो ख़ास, तेरी पसंद वाला। जो तुझे बहुत अच्छा लगता था, तू मेरे हिस्से में से भी खा जाता था। छोड़ दे बेटा ये सब। क्या फ़ायदा?
नहीं मानता???
ले, मैं जा रही हूं घर छोड़ कर। फ़िर रोना बैठ कर।


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि क

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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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6 अगस्त 2022
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फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही थी। मेरी मां बताती थी कि

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें

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तू धीरे- धीरे बड़ा होने लगा और तुझे देख देख कर ज़िन्दगी पर मेरा भरोसा बढ़ने लगा। मैं ख़ुश रहने लगी। ये कितनी अजीब बात है न? इमारतें, सड़कें, पुल, झीलें, झरने, बग़ीचे, बाज़ार, मोटर, रेल, दुकानें, खेत..

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मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

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कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में टाइम खराब कि

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बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस

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छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

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अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिय

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नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

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6 अगस्त 2022
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अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। हडसन में तेरे काफ़िले को ह

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चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

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