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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही।
कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना।
पर बेटा, दुनिया में सबसे बड़ी शर्मिंदगी है अपनी संतान को वो करते हुए खुली आंखों से देखना जो तू कर रहा था।
मैं चोर की तरह दबे पांव जब दरवाज़ा खोल कर भीतर आई तो तू बिल्कुल उस अवस्था में था, जैसे मेरे पेट से जन्म लेते समय!
चलो, तुझे ऐसे देखने की तो मैं अभ्यस्त थी ही। बचपन में रोज़ तुझे नहलाती- धुलाती ही थी।
पर बेटा, तेरे साथ तेरी उस सहेली को भी ऐसे ही देखना... हाय हाय... मैं क्या करती??
पर एक बात कहूं। तू उस समय बिल्कुल तेरे पिता की तरह ही लग रहा था। मुझे मेरा जॉनसन याद आ गया। वो भी तो बिल्कुल ऐसे ही तो पेश आता था मेरे साथ। बिल्कुल वही अंदाज़, वही स्टाइल।
ऐसे ही तो किसी जांबाज़ शहसवार की तरह पसीने में तर... लहरा कर उड़ते बाल... लड़कों की जानलेवा रिदम! जिसके लिए हर लड़के के मां -बाप उसकी शादी के समय गर्व से सिर उठाए लड़की वालों के दरवाज़े पर जाते हैं शान से।
पर ये समय ख़ुश होने का नहीं था। न तो वो तेरी जीवन संगिनी बनी थी और न ही तू अभी बालिग हुआ था। ये मेरे लिए झूम कर नाचने का मेला नहीं था, मैं तो भय से, घृणा से, गुस्से से, हताशा से कांप रही थी। सच कहूं, मैं तो ये सब देख कर भी खुश ही होती, इसमें कैसी शर्म, पर खुश मैं तब होती जो तू पूरी तरह जवान होकर दुनिया की निगाहों में मर्द हो गया होता। सबके सामने धूमधाम से तेरी शादी हुई होती। उस लड़की ने बहू बनकर हमारे परिवार में कदम रखा होता। मैंने अपनी पूरी की पूरी ज़िंदगी तुम्हारे सपनों पर न्यौछावर कर दी होती। चाहे तुम दोनों को इस तरह देख कर मेरी आंखें शर्म से झुकी होती पर फिर भी मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया होता।
पर तूने तो अनर्थ ही कर डाला बेटा। कच्ची उमर का तू और अधखिली उम्र की वो? और ये सब??
मैं पलट कर कमरे से बाहर तो निकल गई पर मैंने बड़बड़ाना, तुझे कोसना, अपने नसीब को रोना शुरू कर दिया।
झटपट कपड़े पहन कर वो लड़की भी सिर झुकाए निकल गई। जाते - जाते मुझे सलाम करना तो दूर मेरी ओर देखने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाई। हिम्मत लाती भी कहां से। हिम्मत तो तूने सोख ली थी उसकी।
मैं नहीं जानती कि मैंने तुम्हें बीच में ही अलग कर दिया था या फ़िर तू फारिग हो चुका...
जाने दे, मैं तेरी मां हूं। ये सब सोचना मुझे शोभा नहीं देता। इंसान के नसीब में जो कुछ देखना बदा होता है वो तो उसे देखना ही पड़ता है। दुनिया का कोई पर्दा उसे थाम नहीं पाता। मैंने भरसक अपने आप को अपराधी महसूस करने से रोका। जो हुआ सो हुआ।

लेकिन इतना जरूर था कि ये सब होने के बावजूद तेरा व्यवहार मुझसे किसी तरह बदले का नहीं था। तू क्रुद्ध नहीं बल्कि तृप्त सा घूम रहा था। नालायक! बेशरम!


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि क

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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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6 अगस्त 2022
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फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही थी। मेरी मां बताती थी कि

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें

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जॉनसन से मेरी शादी हो गई। और संयोग देखो, शादी के बाद तुरंत ही एक बार फ़िर मेरा देश छूट गया। हम अमरीका आ गए। जॉनसन ने मेरा सब कुछ बदल दिया। वो बहुत प्यारा इंसान था। उसने मेरा मुल्क तो बदला ही, मेरा नाम

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तू धीरे- धीरे बड़ा होने लगा और तुझे देख देख कर ज़िन्दगी पर मेरा भरोसा बढ़ने लगा। मैं ख़ुश रहने लगी। ये कितनी अजीब बात है न? इमारतें, सड़कें, पुल, झीलें, झरने, बग़ीचे, बाज़ार, मोटर, रेल, दुकानें, खेत..

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मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

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कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में टाइम खराब कि

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बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस

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किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं। है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं। शायद इस

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6 अगस्त 2022
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छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

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नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

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अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। हडसन में तेरे काफ़िले को ह

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चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

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