नगर वासियों की आस्था का प्रतीक है मां खेड़ापति मंदिर
लक्ष्मणगढ़ पहाड़ी और पार्वती नदी के बीच में बना है मंदिर
भितरवार। हर एक शहर, नगर, कस्बा हो या गांव मैं सबसे पहले गांव खेड़े की आधिपति मानी जाने वाली मां खेड़ापति का मंदिर जरूर होता है। इसी क्रम में नगर से होकर निकली जीवनदायिनी कही जाने वाली पार्वती नदी और क्षेत्र की कई ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हुए खड़ी प्राकृतिक लक्ष्मणगढ़ पहाड़ी के बीचो बीच खेरापति मोहल्ला में स्थापित मां खेरापति का मंदिर नगर के प्राचीन मंदिरों में शुमार है। यहां विराजी खेरापति माता के नाम से ही मोहल्ले का नाम भी खेड़ापति मोहल्ला रखा गया है। नगर वासियों के घर में कोई शादी ब्याह का आयोजन हो या कोई तीज त्यौहार। बड़ी संख्या में नगरवासी माता के दर्शन पूजन करने जरूर आते हैं। नगर की बसाहट के साथ लगभग 400 वर्ष से पूर्व बने इस प्राचीन मंदिर का समय-समय पर जन सहयोग एवं नगरीय निकाय के सहयोग से जीर्णोद्धार कर नया रूप दिया गया है।
*श्रद्धालुओं की उमड़ती है भीड़ -*
नगर वासियों के अनुसार सदियों पहले से नगर के निवासियों की रक्षा मां खेड़ापति करती चली आ रही हैं। पार्वती नदी के पास ऊंचाई पर मां का मंदिर बना हुआ है। जिसमें तीन माता की प्रतिमाएं विराजित है। तो दूसरी ओर विशाल काय चट्टान के रूप में हरियाली से लक्षादित्य होती प्राकृतिक लक्ष्मणगढ़ पहाड़ी सीना ताने खड़ी हुई है जो खेड़ापति मां के दरबार को और भी सुरम्य बनाता है। नगर में शादी विवाह आयोजित होने पर माता पूजन करनी महिला पुरुष इस मंदिर में बाजे गाजे के साथ आते हैं। विवाह उपरांत दूल्हा-दुल्हन भी बाजे गाजे के साथ मां का आशीष लेकर ही नव दांपत्य जीवन का श्रीगणेश करते हैं। वैसे तो यहां रोजाना मां की आरती में सुबह शाम अनेकों लोग शामिल होते हैं। वहीं चैत्र एवं शारदेय नवरात्रि के दौरान मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। हजारों लोग सुबह से ही मां के दर्शन और मंदिर में आते हैं। प्रतिवर्ष अनेक प्रकार के आयोजन नवरात्रि पर्यंत इस मंदिर में चलते हैं। कन्या भोज भंडारे आदि के आयोजन कराए जाते हैं। साथ ही चैत्र नवरात्रि में सप्तमी के जवारे एवं विशेष हवन पूजन का आयोजन भी किया जाता है। मंदिर के पास ही हनुमान जी एवं सिद्ध बाबा का स्थान भी बना हुआ है। नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर में हवन, पूजन, कीर्तन, भजन आदि का आयोजन सुबह शाम आयोजित होता रहता है। नगर में आज भी किसी भी प्रकार के बड़े धार्मिक आयोजनों के अवसर पर सबसे पहले खेड़ापति का पूजन कर ध्वज आदि चढ़ाते श्रद्धालुओं को देखा जाता है।
*नवरात्रि में है दर्शन का विशेष महत्व -*
नवरात्रि के नो दिन मां खेड़ापति की आराधना से यहां दिन-रात श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है और मातारानी की महिमा के जयकारों से पूरा वातावरण गुंजित होने लगता है। प्रातः काल से ही माता पर जल चढ़ाने वालों की भीड़ लगना शुरू हो जाती है । कहते हैं कि श्रद्धालुओं द्वारा माता रानी से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है जिसके प्रति को मुराद पूरी होने के एवज में लगे मंदिर के घंटे एवं चढ़ाए गए ध्वज और पालना है।
*महिलाओं की भरती है सूनी गोद-*
नगर का सुप्रसिद्ध प्राचीन खेड़ापति माता मंदिर जहां अपनी प्राचीनता के लिए नगर ही नहीं आसपास के क्षेत्र में भी प्रख्यात है। उसी प्रकार अपनी चमत्कारिक कार्यों के लिए भी प्रख्यात है। नगर और आसपास के ग्रामीण अंचल के कई ऐसे दंपत्ति थे जिन्होंने संतान प्राप्ति के लिए बड़े से बड़े चिकित्सकों से इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं मिला यह तो उम्र का पायदान ढलता गया तो वही संतान की चिंता और भी बढ़ती गई ऐसे में भूले भटके दंपत्ति मां की शरण में पूरी आस्था के साथ पहुंचे और सब कुछ खेड़ापति के भरोसे छोड़ दिया तो उम्र का संतान प्राप्ति का पड़ाव निकल जाने के बाद भी विज्ञान चिकित्सा साइंस को फेल करते हुए मां ने उनकी सूनी गोद भर दी। संतान प्राप्ति के बाद संबंधित दंपत्ति के द्वारा अपने बच्चों का मुंडन संस्कार एवं पालना संस्कारी मां के दरबार में ही किए जाते हैं। बताती हैं कि सच्चे मन से मांगी गई श्रद्धा पूर्वक मनोकामना मां के दरबार में पूर्णत: पूरी होती है।
*माता महादेव दोनों ही बने है नगर के रक्षक-*
क्षेत्र में लगभग एक दशक पूर्व कई दुर्दांत डकैतों का आतंक रहा लेकिन नगर के लोगों पर कभी भी किसके दुर्दांत डकैतों का साया तक नहीं पड़ पाया। वैसे क्षेत्र में दयाराम, रामबाबू गडरिया गिरोह, हजरत रावत गिरोह, बदना बंजारा आदि डकैत गिरोह की दस्तक जरूर रही और नगर में घटना घटित करने का प्रयास भी किया लेकिन एक और खेड़ापति मां तो दूसरी ओर गोलेश्वर महादेव लोगों की रक्षा करते रहे। और दुर्दांत डकैतों पूर्व नगर में सफल नहीं होने दिया। जिस के संबंध में आज भी नगरवासी इसी बात को कहते हैं हर आपदा विपदा मैं माता और महादेव दोनों ही नगर की रक्षा करते हैं।