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प्रकथन

2 सितम्बर 2022

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दिव्य कृष्णलीला 1 से 4  बंद

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हे पूर्ण कला के अवतारी ,गुणगान नही तेरा सम्भव।

हे नटवर नागर गिरधारी, यशगान नहीं तेरा सम्भव। 00

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बचपन की तेरी लीलाएं,बस मंत्रमुग्ध करने वाली।

बालछवि तेरी मोहक सी,बरबस मन हरने वाली।

वो निश्छल सरल स्मित तेरी, उर के अंदर रमने वाली।

वो माखन की वो मिश्री की, मधुर स्वाद भरने वाली।

हे माखन के चोरक सुन ले , जप ध्यान नही तेरा सम्भव।

हे पूर्ण कला के अवतारी.....1

बचपन की तेरी क्रीड़ाएँ, वो गोप ग्वाल के संग वाली।

हे नटखट अटपट सी बातें,नहीं समझ आने वाली।

जान बूझकर तुझसे भिड़कर,वो तेरी मीठी गाली।

धेनु के संग वेणु के संग,रेणु के संग रमने वाली।

हे गिरधर गोवर्धन का ,गुणगान नहीं तेरा सम्भव।

हे सारे जग के जगतपति ,यशगान नही तेरा सम्भव। 2
 

मोह नही तुमको मोहन कुछ,कितनी गाथा भरी पड़ी।

जन्म देवकी से पाकर ,कितने पल संग तेरे खड़ी।

वासुदेव वसुदेव का रिश्ता, भी लगती कुछ ऐसी कड़ी।

ओर जसोदा की क्या कहिये, जिनसे पाई प्रीत बड़ी।

नंद बाबा को भूले कैसे ,यह ज्ञान नही तेरा सम्भव।

हे मोहपाश से विलग प्रभु, जप ध्यान नही तेरा सम्भव। 3

क्रमश : ..................

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दिव्य कृष्ण लीला
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इस पुस्तक में मैं कृष्ण के जन्म से लेकर कंस वध तक की लीला को काव्य रूप में मात्रिक छंद के रूप में प्रस्तुत करूंगा।

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