प्रिय प्रेम (शर्माजी) सप्रेम स्मरण
बीते तक़रीबन एक साल से मैंने कुछ नहीं लिखा!
इसका ये मतलब तो कतई नहीं है कि आप मेरे मन में नहीं है!
आप याद आए और बहुत याद आए!
लेकिन मेरी कुंडली में गम कुंडली मार बैठा है!
क्या - क्या सुनाएं गम ऐ दास्तां इक आरजू है आप जो दिल से बयां नहीं कर पा रहे!
किस्मत से मिले हम और नसीब से बिछड़ गए!
मैं क़िस्मत पर गुरुर ज़रूर करती हूं कि आप मुझे मिले लेकिन नसीब को लेकर कभी रोई नहीं!
जानते हैं क्यों - क्योंकि आज़ भी दिल में ख्वाहिश है कि जब भी मिलेंगे हाथ में फ़ूल लिए और होठों पर मुस्कान लिए मिलेंगे!
मैं नसीब का रोना और अफ़सोस के साथ नहीं मिलना चाहती!
ख़ैर खैरियत बताएं!
सुनने और बतलाने के लिए क्या -क्या नहीं है इस जहां में!
ऐसे लाख अफसाने भरे पड़े हैं राहें जुदाई में!
लेकिन ये भी दिन है बस
गुजर जायेंगे!
जो मुनासिब लगे वही बताएं और गिनाएं!
क्या - क्या महसूसा आपने नियति और प्रकृति बीच!
कैसे लिखा जाता है प्रेम
और कैसे फिर लिख दी जाती है जुदाई!
जानते हैं आप मैं अपने आख़िरी दिनों में क्या सीखना चाहूंगी - मैं सीखूंगी पानी पर लिखने की कला जो लहर से क्या भविष्य के मिटाए भी न मिटें!
शायद प्रेम करना पानी पर लिखने जैसा है गर कुछ लिख दो तो भी वो टिक नहीं पाता!
लहरें उठती है पानी में और सब समेट ले जाती है और फिर कुछ नहीं रह जाता!
लेकिन प्रेम भी जटिल और ज़िद्दी है लौट कर आ जाता है पु:न बारम्बार!
याद दिलाने आ जाता है अपने हिस्से का नमकीन पानी जिसका खारापन चाह लो तो भी ज़िंदगी से फिर कभी नहीं जाता!
जाते - जाते ऐ मेरे हमसफ़र
ये सच है कि हमने साथ में कोई सफ़र नहीं किया!
फिर भी सफ़र ज़ारी है प्रेम के अविराम सफ़र का!
अपना ख्याल रखें कि जवानी जाते ही प्रौढ़ अवस्था काफ़ी कष्टदाई हो जाती है उसपर भी तब जब इंसान गलतियां करने में माहिर हो!
विशेष,शेष आगे भी लिखूंगी!
आपकी
हमसफर
प्राची
प्राची सिंह "मुंगेरी"