प्रिय प्रेम(शर्माजी) सप्रेम चरण स्पर्श!
चरण स्पर्श से ये न समझ लिजियेगा कि मैं आपको प्रेमपूर्ण यातनाएं दे रही हूं!
बस आज़ दिल चाह रहा कि उन सभी यातनाओं के लिए दिल से माफ़ी मांग लूं जो मैंने कई सारे पत्रों में प्रेमपूर्ण उल्लाहनों के जरिए आपको दिए है और इस प्रेमपूर्ण गुस्ताखी से ऋणमुक्त हो लूं!
अपना हाल क्या ही सुनाएं कि बगैर आपके ज़िंदगी भरवां करेले जैसी हो गई है!
ऊपर से तो सब हरा भरा दिखता है लेकिन महसूसते ही स्वाद कड़वा हो जाता है।
थोड़ा यादों को डीपली अंदर तक ले लिया तो मुझे एसिडिटी हो जाती है!
आपको तो पता ही है कि मुझे स्पाइसी बाइट्स से कितनी एलर्जी है!
फिर भी न चाहते हुए भी प्राकृतिक विपदाओं को रोकने में, मैं असफल हूं।
यादों का सकूं ताज़ा होते अंत:मन हाय तौबा मचा देता है!
फिर दिल इतना ही सोच पाता है कि जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके.......!
खैर अपना बताएं हाल ऐ दिल कि विरह का शोर मेरे अंदर ही मयूरा बन नाच रहा है कि हिचकियां आपसे भी संभाली नहीं जा रही!
कई मौसम बदले कई नज़ारे छूटे मगर लौटे सावन और उनके गीतों ने आपकी याद को बेबस तो किया और दिल ने कहा कि कुछ भावनाएं समेटु और आपकी ख़बर लूं!
समझ नहीं आता बिछड़े कई जन्मों से हम क्यों फिर विरह झेल रहे हैं!
सावन जाने को है भादो आगमन पे है पूरे मुंगेर में भागीरथी डबडबाई है और एक मैं हूं कि मेरे दिल का सूखापन जाता ही नहीं!
हो सके तो शर्माजी आप लौटे!
मन रिक्त है, सांसें भारी है,उलझन में सिमटा हुआ ये हमारे प्रेम का अस्तित्व कहीं देह न त्याग दे!
आपको पता है इंतजार कितना कठिन वक्त है उसपे भी सावन में!
ख़ैर मन करे तो ही लौटे सावन न सही किसी बसंत में!
तबतक कोयल की हूक दिल को टीस पहुंचाती रहेगी!
विशेष, शेष निरंतर जारी रहेगा.....!
यादों में,ख्यालों में,मंदिर में बजते किसी घण्टे की प्रतिध्वनि में -हमारा प्रेम गुंजायमान रहेगा!
पुन:सप्रेम याद !
❤️❤️
सिर्फ़ आपकी
प्राची
प्राची सिंह "मुंगेरी"