मैं बैठा सरहद पर हूं
मैं बैठा सरहद पर हूं,रेगिस्तान की छांव में| अबके साल कैसा होगा,मौसम मेरे गांव मे|तकती होंगी सूनी गलियां मेरे आने की राहें,मेरी याद मे रोती होंगी तन्हाई मे सारी निगाहें| जिनकी बाहों का तकिया कभी बनाकर सोया था मै,कभी तरसती होंगी मेरे सिर धरने को वो बाहें|इस मिट्टी मे स्वर्ग वही ,माँ!जो स्वर्ग है तेरे पाँव मे|मै सोंच रहा था बैठे बैठे ,पूरब से फिर हवा चली|मैने पूंछा रुक तो जरा घर का हाल बता दे तो,घर मे सब कुशल मंगल है माँ का हाल सुना दे तो| लगी हवा कहने फिर मुझसे ,याद तुझे सब करते हैं तुझे याद करे हैं खेत सभी,याद करे हैं गली गली|ऐ हवा!तू ये तो बता तुझे कैसा लगा था गाँव मे| मै बैठा.....