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पुरुष सबके लिए करे फिर भी कोई नहीं मानता की उसने किसी के लिए कुछ किया

5 अक्टूबर 2015

150 बार देखा गया 150
featured imageबचपन बुढापा दूसरों पर कुर्बान न कोई एहसान पुरुष।
मेरा रचना संसार

मेरा रचना संसार

असल में पापा के आने की झिड़क देना पारिवारिक अनुशासन बनाये रखने के अंग के रूप में भी देखा जा सकता है। यहाँ मेरा उद्देश्य सिर्फ उपेक्षित पहलू का प्रकाशन था।

8 अक्टूबर 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

थोड़ा असहमत हूँ आपकी बात से , कुछ लोगों का नही कह सकती मगर आज भी कई घरों मे माँ यही कहती है - आने दो पापा को … तब मार पड़ेगी हम सब जानते हैं की हमारे पिता या भाई कितना परिश्रम करते हैं और सबकी ज़िम्मेदारी उठाते हैं

6 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
drvijejndrapratapsingh
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इस आयाम में आप पाएंगे 8शब्दों की कविता।

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