5 अक्टूबर 2015
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राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जलेसर,एटा, उत्तर प्रदेश में सन २०११ से कार्यरत। पूर्व में सन १९९८ से २०११ तक रेलवे के राजभाषा विभाग में सेवा। लेखन अभिरूचि क्षेत्र - व्यतिरेकी भाषा विज्ञान, ब्रज का भाषा विज्ञान, विस्मर्श केंद्रित साहित्य (दलित, स्त्री, आदिवासी तथा तृतीय वर्ण)D
असल में पापा के आने की झिड़क देना पारिवारिक अनुशासन बनाये रखने के अंग के रूप में भी देखा जा सकता है। यहाँ मेरा उद्देश्य सिर्फ उपेक्षित पहलू का प्रकाशन था।
8 अक्टूबर 2015
थोड़ा असहमत हूँ आपकी बात से , कुछ लोगों का नही कह सकती मगर आज भी कई घरों मे माँ यही कहती है - आने दो पापा को … तब मार पड़ेगी हम सब जानते हैं की हमारे पिता या भाई कितना परिश्रम करते हैं और सबकी ज़िम्मेदारी उठाते हैं
6 अक्टूबर 2015