मैं अपनी ज़िंदगी का अब इक नया फ़साना लिखूंगी..!!
अपनों में शामिल गैरों को अब बेगाना लिखूंगी..!!
आतिश-ए-गम में जलकर ज़िंदगी बर्बाद हुई..
चालाकियां उसकी हर दम जैसे आबाद हुई..
पूछेंगे दवा जब दर्द की, तो सिर्फ़ मयखाना लिखूंगी
अपनों में शामिल गैरों को अब बेगाना लिखूंगी..!!
झूठे रिश्ते-नाते मेरे झूठा सब का अपनापन..
मेरे अपनों ने भर दिया दुनिया में बेगानापन..
सच्चे एहसासों की कद्र हो,वो ज़माना लिखूंगी
अपनों में शामिल गैरों को अब बेगाना लिखूंगी..!!
जलके शमाएं करती रही रौशनी महफ़िल में..
इश्क तेरा चुभता ही रहा धड़कते इस दिल में..
जलते शमां का मर्म समझे वो परवाना लिखूंगी..
अपनों में शामिल गैरों को अब बेगाना लिखूंगी..!!
मैं अपनी ज़िंदगी का अब इक नया फ़साना लिखूंगी..!!
अपनों में शामिल गैरों को अब बेगाना लिखूंगी..!!
kanchan"savi"