आज रो रहा शमशान है ......
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है
देख यह विपदा ,
आज रो रहा शमशान है ......
आपिस - कचहरी ,
रिश्ते - फरेव,
घर लग रहा दूकान है ,
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है |
किससे मिले ,
कहा जाये ,
झूंठ का जंगल वियावान है
धोंखो की आग दावानल में ,
पत्तों - सा जल रह इंसान है
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है |
मठ टूटे टूटी कुठारी ,
नई टेक्नॉलॉजी में
ऐ सी के गुड़गान है , फिर भी .....
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है |
देख यह विपदा ,
आज रो रहा शमशान है ......
-हरीश मलैया
24/092015