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आज रो रहा शमशान है ......

12 दिसम्बर 2015

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आज रो रहा शमशान है ......

दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है
देख यह विपदा ,
आज रो रहा शमशान है ......

आपिस - कचहरी ,
रिश्ते - फरेव,
घर लग रहा दूकान है ,
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है |

किससे मिले ,
कहा जाये ,
झूंठ का जंगल वियावान है
धोंखो की आग दावानल में ,
पत्तों - सा जल रह इंसान है
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है |

मठ टूटे टूटी कुठारी ,
नई टेक्नॉलॉजी में
ऐ सी के गुड़गान है , फिर भी .....
दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है |
देख यह विपदा ,
आज रो रहा शमशान है ......

-हरीश मलैया
24/092015

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रचनाएँ
wwwharishmalaiya
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हमें दुनिया से क्या मतलब मदरशा है वतन अपना किताबो में दफ्न् हो जायेगे वरक होगा कफन् अपना । (्वरक् - पेज मदरशा - स्कूल )
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एक परिंदा

12 दिसम्बर 2015
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एक परिंदा उड़ कंही से , घर की खिड़की पर आ बैठा | वह बहुत खुश नहीं , हारा हुआ सा लग रहा था | उसकी आँखे बता रही थी , आज फिर उसे किसी ने | बहुत गहरी छोट दी है , खंजर की नहीं , प्यार का मारा हुआ सा लग रहा था | बड़ी सिद्धत्तो से बनाया था आशियाना , वो किसी और घोसले के हो लिए | बार बार वह खिड़की के शीशे में

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आज रो रहा शमशान है ......

12 दिसम्बर 2015
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आज रो रहा शमशान है ...... दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है देख यह विपदा , आज रो रहा शमशान है ...... आपिस - कचहरी , रिश्ते - फरेव, घर लग रहा दूकान है , दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है | किससे मिले , कहा जाये , झूंठ का जंगल वियावान है धोंखो की आग दावानल में , पत्तों - सा जल रह इंसान है

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माँ

12 दिसम्बर 2015
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