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हरीश मलैया

8 अध्याय
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हमें दुनिया से क्या मतलब मदरशा है वतन अपना किताबो में दफ्न् हो जायेगे वरक होगा कफन् अपना । (्वरक् - पेज मदरशा - स्कूल )  

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पुस्तक के भाग

1

एक परिंदा

12 दिसम्बर 2015
0
8
3

एक परिंदा उड़ कंही से , घर की खिड़की पर आ बैठा | वह बहुत खुश नहीं , हारा हुआ सा लग रहा था | उसकी आँखे बता रही थी , आज फिर उसे किसी ने | बहुत गहरी छोट दी है , खंजर की नहीं , प्यार का मारा हुआ सा लग रहा था | बड़ी सिद्धत्तो से बनाया था आशियाना , वो किसी और घोसले के हो लिए | बार बार वह खिड़की के शीशे में

2

आज रो रहा शमशान है ......

12 दिसम्बर 2015
0
5
0

आज रो रहा शमशान है ...... दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है देख यह विपदा , आज रो रहा शमशान है ...... आपिस - कचहरी , रिश्ते - फरेव, घर लग रहा दूकान है , दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है | किससे मिले , कहा जाये , झूंठ का जंगल वियावान है धोंखो की आग दावानल में , पत्तों - सा जल रह इंसान है

3

माँ

12 दिसम्बर 2015
0
6
0

4

ये रात यु थम ना जाय

12 दिसम्बर 2015
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4
0

5

कजरी और भोला

12 दिसम्बर 2015
0
3
0

6

यही तो था मेरे बचपन का खजाना

16 दिसम्बर 2015
0
4
5

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7

अजब सी सहेली हूँ ……

16 दिसम्बर 2015
0
6
3

8

अलविदा कह कर जा रही है .............

18 दिसम्बर 2015
0
1
0

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