shabd-logo

यही तो था मेरे बचपन का खजाना

16 दिसम्बर 2015

268 बार देखा गया 268
featured image


हवा का झोका आता कुछ इस तरह से ,
बचपन की याद दिला जाता कुछ इस तरह से .
वृक्ष की डालियनों का लचीला पन

बचपन की याद दिलाता
वो सड़को पर पहिया घुमाना                            

और पेड़ो पर चढ़ जाना ,सारे दोस्तों के साथ ,
अंडडओरी का वह खेल ,  खेल खूब खिलाना .                                                                              फिर अचानक बारिश का तूफ़ान आ जाना ,
फिर वहीं कंही गलियनो मे डंडे पानी से नहाना ,
फिर साम को घर बापस आना ,
आग के घेरे के पास बैठ कर दांत किट किटाना,
फिर एक दो रोटी खा कर माँ के पास सो जाना ,
यही तो था मेरे बचपन का खजाना ..

अभी भूला नहीं में अपने बचपन का खजाना

-हरीश मलैया

हरीश मलैया

हरीश मलैया

आप सभी को बहुत बहुत धन्यबाद ...........

17 दिसम्बर 2015

17 दिसम्बर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

ऐसा कुछ पढ़ कर बस याद ही आ जाता है बचपन

16 दिसम्बर 2015

हरीश मलैया

हरीश मलैया

जी धन्यबाद ...........ओम प्रकाश जी ...........

16 दिसम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अद्भुत है बचपन का ख़ज़ाना, हरीश मलैया जी !

16 दिसम्बर 2015

8
रचनाएँ
wwwharishmalaiya
0.0
हमें दुनिया से क्या मतलब मदरशा है वतन अपना किताबो में दफ्न् हो जायेगे वरक होगा कफन् अपना । (्वरक् - पेज मदरशा - स्कूल )
1

एक परिंदा

12 दिसम्बर 2015
0
8
3

एक परिंदा उड़ कंही से , घर की खिड़की पर आ बैठा | वह बहुत खुश नहीं , हारा हुआ सा लग रहा था | उसकी आँखे बता रही थी , आज फिर उसे किसी ने | बहुत गहरी छोट दी है , खंजर की नहीं , प्यार का मारा हुआ सा लग रहा था | बड़ी सिद्धत्तो से बनाया था आशियाना , वो किसी और घोसले के हो लिए | बार बार वह खिड़की के शीशे में

2

आज रो रहा शमशान है ......

12 दिसम्बर 2015
0
5
0

आज रो रहा शमशान है ...... दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है देख यह विपदा , आज रो रहा शमशान है ...... आपिस - कचहरी , रिश्ते - फरेव, घर लग रहा दूकान है , दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है | किससे मिले , कहा जाये , झूंठ का जंगल वियावान है धोंखो की आग दावानल में , पत्तों - सा जल रह इंसान है

3

माँ

12 दिसम्बर 2015
0
6
0

4

ये रात यु थम ना जाय

12 दिसम्बर 2015
0
4
0

5

कजरी और भोला

12 दिसम्बर 2015
0
3
0

6

यही तो था मेरे बचपन का खजाना

16 दिसम्बर 2015
0
4
5

<!--[if gte mso 9]><xml> <o:DocumentProperties> <o:Version>12.00</o:Version> </o:DocumentProperties></xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:DoNotShowComments/> <w:DoNotShowPropertyChanges/>

7

अजब सी सहेली हूँ ……

16 दिसम्बर 2015
0
6
3

8

अलविदा कह कर जा रही है .............

18 दिसम्बर 2015
0
1
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए