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एक परिंदा

12 दिसम्बर 2015

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एक परिंदा उड़ कंही से ,
घर की खिड़की पर आ बैठा |
वह बहुत खुश नहीं ,
हारा हुआ सा लग रहा था |

उसकी आँखे बता रही थी ,
आज फिर उसे किसी ने |
बहुत गहरी छोट दी है ,
खंजर की नहीं ,
प्यार का मारा हुआ सा लग रहा था |

बड़ी सिद्धत्तो से बनाया था आशियाना ,
वो किसी और घोसले के हो लिए |
बार बार वह खिड़की के शीशे में चोंच मरता ,
कहता ,बस अब आगे न बोलिए ...|

ये तो मेरी दास्तां है ,
जो केहदी आपसे |
गर कंही मिलजाए वो ...
हाल मेरा न उसे बोलिए .......|
- हरीश मलैया ..

हरीश मलैया

हरीश मलैया

इस तरह की घटनाएँ मनुष्य के जीवन में भी होती रहती है | आप सभी को धन्यबाद ...... मेरी इस रचना की सराहना करने के लिए ...

15 दिसम्बर 2015

14 दिसम्बर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

लिखा बहुत अच्छा है आपने । मन दुखी हुआ ये सोच कर की एक परिंदा कितना परेशान होता होगा जब उसका घरौंदा टूट जाता होगा ... या वो पेड़ काट दिया जाता होगा ....

14 दिसम्बर 2015

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रचनाएँ
wwwharishmalaiya
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हमें दुनिया से क्या मतलब मदरशा है वतन अपना किताबो में दफ्न् हो जायेगे वरक होगा कफन् अपना । (्वरक् - पेज मदरशा - स्कूल )
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एक परिंदा

12 दिसम्बर 2015
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एक परिंदा उड़ कंही से , घर की खिड़की पर आ बैठा | वह बहुत खुश नहीं , हारा हुआ सा लग रहा था | उसकी आँखे बता रही थी , आज फिर उसे किसी ने | बहुत गहरी छोट दी है , खंजर की नहीं , प्यार का मारा हुआ सा लग रहा था | बड़ी सिद्धत्तो से बनाया था आशियाना , वो किसी और घोसले के हो लिए | बार बार वह खिड़की के शीशे में

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आज रो रहा शमशान है ......

12 दिसम्बर 2015
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आज रो रहा शमशान है ...... दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है देख यह विपदा , आज रो रहा शमशान है ...... आपिस - कचहरी , रिश्ते - फरेव, घर लग रहा दूकान है , दो पाठो की चक्की में पिस रहा इंसान है | किससे मिले , कहा जाये , झूंठ का जंगल वियावान है धोंखो की आग दावानल में , पत्तों - सा जल रह इंसान है

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माँ

12 दिसम्बर 2015
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ये रात यु थम ना जाय

12 दिसम्बर 2015
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कजरी और भोला

12 दिसम्बर 2015
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यही तो था मेरे बचपन का खजाना

16 दिसम्बर 2015
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अजब सी सहेली हूँ ……

16 दिसम्बर 2015
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अलविदा कह कर जा रही है .............

18 दिसम्बर 2015
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