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रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर सब बहनों की तरफ से अपने भाइयों को कविता के रूप में अनमोल भेंट

3 अगस्त 2022

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रक्षाबंधन का प्यारा सा त्यौहार आ रहा है. भाई बहन दोनों ही इन्तजार कर रहे होंगे हैं इस त्यौहार का. भाई अपनी बहनों से मिल कर उन्हें चिढ़ाने खिजाने के लिए और बहनें मायके जा कर सब से मिलने और भाई की जेब ढीली करने के लिए.यह तो रही हास परिहास के बात.

वास्तव में बड़ा प्यारा है यह भाई बहनों का रक्षाबंधन का यह त्यौहार. तो ऐसे ही मौके पर जो आज का विषय है जो "जीवन के रंग त्योहारों के संग" इसी विषय पर मैंने यह कविता  आपके सामने प्रस्तुत की है...

रहे सलामत मेरा भैया

बचपन के गलियारे में 

संग संग हम खेले 

रहे सलामत मेरा भैया 

लगे रहे यहां मेले

यह रूठना और मनाना

मुंह फुला कर बैठ जाना

शिकायत कर मां

से से पिटवाना

जीभ निकालकर 

मुंह चिढ़ाना

खाने की चीजों पर 

छीन झपटना

हंसना रोना और

पैर पटकना 

पापा डांटे तो मां के 

आंचल में सिमटना 

कितने ही ऐसे खेले 

बचपन के गलियारे में 

हमने संग संग खेले 


उन यादों की डोरी को 

तेरी कलाई में बांधूं

सारी दुआएं अपनी 

चंदा तारों सी टांकू

सारी बलाएं ले लूं तेरी

 नेह डेर से तुझे बाँधू

कभी ना तुझको लगूं 

में बंधन, भैया 

रेशम सा यह कोमल 

 प्यारा नाता साधूं

मेरे नेहर की तू पूंजी 

अनमोल बड़े हैं

यह रिश्ते अलबेले

बचपन के गलियारे में 

हम संग संग खेले


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बहुत सुन्दर सामयिक रचना

3 अगस्त 2022

अन्जु अग्रवाल

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3 अगस्त 2022

बहुत-बहुत धन्यवाद कविता जी. मेरे ब्लॉग गृह-स्वामिनी तथा New Folk Lyrics पर कृपया आप हमारी और भी रचनाएं देखें.

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