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रमन की रागिनी 💖

6 सितम्बर 2021

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शहर के पुराने मोहल्लों में से एक मुहल्ले की एक गली जो मुहाने पर अत्यंत संकरी थी, परंतु जैसे-जैसे गली अंदर की ओर बढ़ती, उत्तरोत्तर चौड़ी होती गई थी। गली के सारे मकान एक दूसरे से जुड़े थे। गली के बीचोंबीच एक पीपल का पुराना पेड़ और एक छोटा सा मंदिर। सामान्य सा मुहल्ला था जिसमें लगभग सभी जातियों के लोग थे। लेकिन ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा थी।

इन्हीं में से एक थे पं ललित तिवारी, जो एक विद्यालय में संगीत के अध्यापक थे। दूसरे थे संतोष दूबे, जो एक व्यापारी थे और भविष्य में विधायक लड़ने का मंसूबा संजोए थे।

ललित तिवारी का परिवार एक आम भारतीय निम्न परिवार की तरह था। जो हर छोटी छोटी बात पर खुशियाँ ढूंढ लेता है। तिवारी जी के परिवार में उनकी पत्नी सुधा, बेटी रागिनी और बेटा शुभम था। रागिनी संगीत से बी. ए. कर रही थी वहीं शुभम अभी ग्यारहवीं में था।

दूसरी ओर संतोष दूबे थोड़े रूतबे वाले थे। उनका व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति पर था। उन्होंने अपनी दो खानदानी दुकानों को बढ़ा दस कर लिया था। एकलौती संतान थे इसलिए फायदे में थे। परिवार में, उनकी मां, पत्नी सुमन, तीन बेटियां खुशबू , प्रियंका नेहा और बेटा रमन था। संतोष जी ने तीन में से दो बेटियों की शादी कर दी थी वहीं नेहा अभी पढ़ रही थी। रमन जी का तो पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था लेकिन परिवार के युवराज थे इसलिए संतोष जी ने किसी तरह कुछ ले देकर बी. टेक में उनका एडमिशन करा दिया था।
रमन और रागिनी माने शरीर और छाया जैसे थे। रमन के तो दिन की शुरुआत ही रागिनी से होती थी। बचपन से ही दोनों एक साथ पले बढ़े। दोनों के परिवारों में पहले बहुत दोस्ती थी। पर जैसे-जैसे दूबे जी का रूतबा बढ़ा वो मोहल्ले के लोगों को जरा कमतर आंकने लगे, खासकर ललित जी से अपनी दोस्ती को। हालांकि परिवार का आना जाना अभी तक बना हुआ था। पर सिर्फ रमन और रागिनी के माध्यम से।

रमन और रागिनी के बीच दोस्ती की शुरुआत उस दिन से हुई जब दोनों करीबन आठ या नौ साल के थे। एक दिन रमन अपनी छत पर पतंग उड़ा रहा था। वहीं रागिनी अपनी छत पडे़ गेहूं को कबूतरों से बचा रही थी साथ ही साथ वो रमन के पतंग की कलाबाजियां भी देख रही थी। पर तभी रमन की पतंग घर के पास से गये बिजली के तारों में उलझ गई थी। जिद्दी रमन अपनी पतंग को छुड़ाने के लिए उन तारों को
बेतहाशा अपनी ओर खींच रहा था। खींचने से वो तार उसकी छत की ओर ढीले हो लटकने लगे। अगर कोई तार गिर जाता तो वो रमन के छत पर लगे लोहे की रेलिंग को छू जाता जिससे रमन की जान भी जा सकती थी। क्योंकि रमन उस रेलिंग से टिककर ही पतंग को अपनी ओर खींच रहा था।
रागिनी यह सब सांस रोके देख रही थी साथ ही वह अपनी और रमन के छत के बीच की दीवार की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही थी। उसे भान हो गया था कि कुछ अनर्थ हो सकता है।

उसी समय रमन की माँ भी छत पर फैलै पापड़ो को पलटने आईं। रमन को ये मुर्खता करते देख वो चिल्लाईं। लेकिन शायद इकलौते पुत्र के साथ होने वाली अनहोनी के भय ने उनका गला ही रूंध दिया। वो चिल्ला भी न सकीं। तार गिरने ही वाला था। रमन अपनी धुन में पतंग के लिए उन बिजली के तारों को अपनी ओर खींच रहा था। तार टूट गया वो रेलिंग पर गिरने ही वाला था। रमन की माँ ये देख बेहोश हो गयीं।


लेकिन अभी कुछ अनर्थ होत उससे पहले ही रागिनी दीवार फांद, लकड़ी का एक डंडा लिए रमन की ओर बिजली की तेजी से बढ़ी और रमन को छत की ओर ढकेल, तार को पास की नीम की डाल की ओर उछाल दिया। तार नीम की डाल पर चला गया। रमन छत पर सिर के बल गिर गया।

मुहल्ले के कई लोग इस घटना को सांस रोके देख रहे थे। लेकिन किसी की आगे आ  रमन को बचाने की हिम्मत न पड़ी। रागिनी की दिलेरी ने उन लोगों को तालियां बजाने को मजबूर कर दिया। शोर सुन दोनों के घर वाले छत की ओर दौड़े। सकुचाई रागिनी ने उन सब को घटना से अवगत कराया। रमन के पापा का हाथ श्रद्धा से उसके सिर पर पड़ गया। "हमेशा खुश रहो  " बोल वो भावुक हो गए।

रमन की माँ होश में आने पर रमन को सही सलामत देख खुशी से रोने लगी। उन्होंने रागिनी की माँ के आगे हाथ जोड़ लिया और बोली...... "बड़ी पूजा-अर्चना के बाद रमन को पाया है बहन जी। आज रागिनी ने उसकी जान बचा मुझे खरीद लिया। बड़ा एहसान चढ़ा दिया मुझपर। इसीलिए आज से अभी से ये मेरी चौथी बेटी की तरह रहेगी" ।


क्रमशः

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