कालेज से घर लौटने के बाद देखा कि घर में गहमा-गहमी मची हुई है। ताऊजी किसी से फोन पर बातचीत कर रहे थे। ताई, बुआ भाभी न जाने किस गुफ्तगू में मगन थी। मैं जैसे ही हाथ मुँह धोकर जैसे ही डाइनिंग टेबल पर खाना खाने बैठी वैसे ही ताई ने मुझे आवाज दी। 'अभी आती हूँ बोलकर' मै खाना खाने लगी। "मैं " यानी अंशिका उर्फ अंशु, एक बिल्कुल आम सी गोरखपुर की एक झल्ली सी लड़की, घर में ताई ताऊ, बड़े भैया, भाभी और एक बुआ थी। बस कमी थी तो माँ की।
सब मुझे बहुत प्यार करते थे। पर माँ के जाने के बाद मै और पापा अपने आप में ही सिमट कर रह गए। मैने माँ की स्टडी को अपनी दुनिया बना ली और पापा ने समाज सेवा को। 'शिवानी ' की कहानियां ही मेरी दुनिया और उनकी नायिकायें ही मेरे लिए आदर्श।
बहरहाल वापस वर्तमान में आकर मैं आगे की कहानी बताती हूँ। खाना खाकर ताई के कमरे में गई तो ताई ने कहा,.... कल बनारस जाना है,..... मैंने पूछा कि कौन कौन जा रहा है। ताई बोली मै, तुम और ताऊजी। पता नहीं क्यूं दिल अजीब सा धड़क गया। इसके आगे ताई से भी कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं थी।
भाभी से भी पुछा तो उन्होंने भी कुछ नहीं बताया। सोच सोच कर मुझे रात भर नीद भी नहीं आई। खैर भोर में हम बनारस के लिए निकल गये। मेरी स्थिति वैसी ही थी जैसी एक कैदी की जेल जाते समय होती होगी। ताऊजी, ताई और भैया आपस में बात कर रहेऔर मैं उनकी बात सुनकर उघं रही थी।
12 बजे तक हम बनारस पहुंच गए। फिर रहे नहाने धोने के बाद विश्वनाथजी का दर्शन किया। फिर होटल आ गये। होटल आकर मुझे अजीब सा सुकून मिला। मै आकर फिर सो गई। शाम 4 बजे ताई ने मुझे आवाज दी..... अंशु - अंशु मै उठी तो उन्होंने मुझे एक हल्के पीले रंग का सूट दिया और कहा कि ले इसे पहन कर तैयार हो जा तुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं। मुझे तो काटो खून नहीं। जिससे मैं भी डर रही थी वही हुआ। वे फिर मुझपे चिल्लाई मै बेमन से उठी और बाथरूम में चली गई। मुझे चिल्ला चिल्ला के रोने का मन कर रहा था। इस समय मां बहुत याद आ रही थी।
थोड़ी देर बाद किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी, भैया की आवाज सुनाई दी...... अंशु अंशु क्या कर रही है अंदर जल्दी बाहर निकल। मैने किसी तरह सूट पहना और बाहर निकल आई। ताई बोली अब अपने बाल तो बना ले। मैंने बेमन से एक क्लचर लगा लिया। ताई फिर भी शुरू हो गई..... इसी दिन के लिए कहती थी कुछ लडकियों वाले गुनढंग ला अपने अंदर लेकिन नहीं महारानी एलिजाबेथ को तो किताबों से ही फुर्सत ना थी। ये सुनते ही ही मै जोर से सिसकने लगी। भैया आये और मेरा हाथ पकड़कर बाहर ले गए। फिर कार में बिठाकर मेरे सिरपर के हाथ रखकर बोले तू घबरा मत.... मै हूं कि ना कुछ गलत नहीं होने दूंगा। भैया की यही सबसे अच्छी बात थी कि वे बोलते ज्यादा नहीं थे पर सबके मन की बात जान जाते थे। खैर भैया ने आगे ले जाकर एक पार्लर के सामने गाड़ी रोकी और मुझे बैठने का बोल अपने उस पार्लर के रिसेप्शन पर जाकर बात करने लगे। 5 मिनट बाद वापस आकर मुझे पार्लर में भेज दिया। पार्लर वाली ने मेरा हल्का सा मेकअप कर दिया और बालों में पिन लगाकर खुला छोड़ दिया। फिर वापस ले हम होटल आ गये और ताई ताऊ के साथ एक दूसरे होटल में चले गये।
लडके वालों ने पूरा एक हाॅल जैसा कमरा बुक किया था। हम एक तरफ सोफे पर बैठ गए। तभी लड़के को वाले आने लगे। एक साथ इतने सारे लोगों को देखकर मैं कांपने के लगी। भैया ने मेरे हाथ पकड़ा और आंखों से शांत रहने का इशारा किया। लड़के वाले की तरफ से एक जन ने अपने लोगों का परिचय देना चाहिए शुरू किया। ये अनूपम के बड़े चाचा और चाची। ये छोटे चाचा चाची, ये मामा, मामी।ये अनूपम जी की बड़ी बहन और मैं अनूपम का जीजा। ताऊ ताई ने सबको हाथ जोड़कर नमस्ते किया। और मुझे भी सबको नमस्ते करने के लिए बोला। मैने भी किसी तरह सबको नमस्ते किया।
थोड़ी देर बाद उस तरफ की औरतें मुझे बगल के एक कमरे में लेकर चली गई। करीब 10 मिनट बाद कथित अनूपम के जीजा जी और एक लडका अंदर आते हैं। जीजा जी बोले कि...... इनसे मिलिए ये है अनूपम। उस लड़के ने ताई के पैर छुए और मुझे हेलो 👋 कहा। जवाब में मेरे मुँह से कुछ नहीं निकला। क्योंकि मैं तो अंदर ही अंदर जलभून कर खाक हो रही थी। ताई ने लड़के का इन्टरव्यू लेना शुरू किया। वैसे लड़के वालों ने मेरा इन्टरव्यू पहले ही ले लिया था।
कुछ देर बाद जीजा जी बोले.....चलिए सब लेडिज लोग नाश्ता कर लीजिए और लड़की लड़के को आपस में बात कर लेने दिजीए। हालांकि ताई जी मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी पर क्या करें लडके वालों की डिमांड जो थी।
सब के जाने के बाद लड़का है मेरे सामने लगी कुर्सी पर बैठ गया। अभी तक एक नजर भी मैने उसे देखा नहीं था। उसने अपना हाथ आगे करते हुए कहा कि....... Hi I am Anoop, और आप? मै बिल्कुल जडवत बैठी रही और कुछ भी नहीं बोली। कुछ देर बाद उसने अपना हाथ नीचे कर लिया। कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा। फिर उसने कहा कि आप कुछ कहना चाहती हैं? मुझे तो शायद इसी पल का इंतजार था। बस मैं फट पडी और लगभग उसे धमकाते हुए कहा कि...... वो इस शादी से इंकार कर दे और कह दे मुझे लड़की पसंद नहीं। थोड़ी देर मौन रहने के बाद उसने कहा क्यूं.... आपको कोई और पसंद हैक्या? अब मैने अपना सिर उठाया और उसकी तरफ देखा, उसको देखने के बाद मैं उसे देखती ही रह गई। कितना सुंदर था वो, आँखें तो मानो कोई झील, जो देखे बस डूब जाए। कुछ देर बाद उसने फिर अपना सवाल दुहराया। मै वापस तन्द्रा में आयी और बोली.... जी नहीं मेरी जिंदगी में कभी किसी के लिए कोई जगह नहीं। वो कुछ भी नहीं बोला और हाॅल कि तरफ चला गया।
कुछ देर बाद अनुपम की बड़ी बहन मुझे भी हाल में ले गयी। सब लोग एक नाश्ता करने लगे पर मेरे मन में तो अजीब सी घबराहट हो रही थी। नाश्ते के बाद सब चलने को तैयार हुए। उसी समय अनुपम की दीदी मेरे पास आयी और मुझे एक नारियल एक अंगुठी और एक लिफाफा पकड़ा के मेरा माथा चुमते हुए बोलीं..... आज से तुम हम लोगों की हो गई। मेरी घबराहट और बढ़ गई और मेरी नजर उस लड़के को ढूंढने लगी। तभी ताई ने मुझसे सबका पैर छूने को कहा। मैं कांपते हुए आगे बढी और किसी तरह सबके पैर छुए। तभी मेरी नजर उस लड़के पर पड़ी जो मेरे ताऊजी से किनारे मे ना जाने क्या बातें कर रहा था। मुझे तो गुस्से में उसका खून करने का मन कर रहा था। फिर सब लोग जाने लगे और ताई मुझे लेकर कार के पास आ गई। अनुपम फिर एक बार कार के पास आया और ताई के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। मैने बड़ी आशा भरी नजरों से उसे देखा, उसने भी मेरी तरफ देखा और एक हल्की सी मुस्कान देकर चला गया। हमसब उसी समय गोरखपुर के लिए निकल लिए।
घर आकर मैने फिर अपने आप को कमरे में कैद कर लिया।
चूंकि मैं पहले भी इसी तरह रहती थी इसलिए घर में किसी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। भाभी ही कभी-कभी अनुपम का नाम ले ले कर मुझे छेडती रहती थीं। एक दिन पापा ने घर आने पर मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर मुझे अपने पास बुलाया और कहा कि....... अंशु बेटा तु खुश तो है ना, अनुपम बहुत अच्छा लड़का है तुझे बहुत खुश रखेगा। भैया ने भी उनकी हां में हां मिलायी। उनकी बात सुनकर मैं चिल्लाकर - चिल्लाकर कर कहना चाहती थी कि, मै अभी शादी नहीं करना चाहती हूं, शायद कभी भी नहीं करना चाहती। पर ना जाने क्यों मै कुछ भी नहीं बोल पायी।
कुछ दिनों तक सब कुछ शांति से चलता रहा। मैंने भी कालेज जाना शुरू कर दिया। एक दिन कालेज से आने के बाद मुझ पर फिर बम गिरा। भाभी चहकते हुए आयीं और बताया कि लड़के वाले इंगेजमेंट करना चाहते हैं और 5 मार्च की डेट पर बताई है। उन्होंने मुझे छेड़ते हुए कहा कि आपकी तो बल्ले बल्ले हो गई उसी दिन बर्थडे और उसी दिन सगाई वाह जी वाह। 5 मार्च को ही मेरा बर्थडे भी होता है। पता नहीं क्यों इस बार ना मै दुखी हुई ना ही खुश। शायद मेरा मन अब मेरी लाइफ में आने वाले बदलाव के लिए धीरे-धीरे तैयार हो रहा था। एक दिन भैया मुझे और भाभी को गोलघर ले गये और मुझे लहंगा पसंद करने के लिए कहा। इन सब मामलों में पहले से ही झल्ली थी। मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मुझे सब अच्छे लगते रहे थे। लास्ट में खीझकर भाभी ने ही मुझे एक पिंक और एक लाइट ब्लू कलर का लहंगा ट्राई करने को बोला। मैंने दोनों ट्राई किया। भैया भाभी को पिंक वाला लहंगा पसंद आया। मुझे भी वो पसंद आया। हमने उसे फाईनल कर दिया। फिर हम भाभी और ताई के लिए साड़ियां देखने लगे। भाभी ने लाइट ग्रीन कलर की साड़ी पसंद की और ताई के लिए उन्होंने ताई के पसंदीदा येलो कलर की साड़ी ली। फिर हम लहंगे और साड़ी के ब्लाउज को सिलने के देने के लिए एक बुटीक मे गये। वहां पर सब काम कम्प्लीट करते के बाद हम सब को भूख लगी थी। फिर हम बार्बीज गये। वहां हमने अपने अपने पसंद की चीजें खाईं।
(आगे की कहानी के लिए अगले मिलन यानी अगले भाग का इंतजार करिये।)