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राम अनूप द्विवेदी

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पुस्तक के भाग

1

धन्यवाद शब्द नगरी

5 फरवरी 2015
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इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही समझूंगा कि आज से पहले मैंने कभी कानपुर के इस होनहार का नाम नहीं सुना था. जी हाँ, पहली बार यह नाम सुना और सिर गर्व से ऊंचा हो गया. यह नाम है आईआईटी मुम्बई से वर्ष २००७ में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने वाले अमितेश मिश्र का, जिन्होंने आज यानी २४ जनवरी को वसंत पंचमी जैसे पावन प

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उन्हें रोका किसने है

2 फरवरी 2015
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में एक बयान दिया. कहा कि अगर बिजली चोरी पर अंकुश लग जाए तो सूबे को 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की जा सकती है. ख्याल सचमुच अच्छा है. बहुत सारे लोगों को यह बात अच्छी भी लगी माना गया कि चलो समस्या की जड़ तक प्रदेश के मुखिया का ध्यान गया तो. दूसरी तरफ अनेक ल

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तकलीफदेह है यह ‘शोर’

3 फरवरी 2015
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मुझे राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं, लेकिन दिल्ली के चुनावों में मची ‘मारकाट’ तकलीफदेह है. मैं नहीं जानता कि दिल्ली के मतदाता इन चुनावों के प्रति कैसा नजरिया रख रहे हैं. हाँ, कभी कभी मीडिया के सर्वेक्षणों के नतीजे और भविष्यवाणियाँ यह जताते हैं कि वहां लडाई कांटे की है. मुझे इससे भी कोई फर्क नहीं पड़त

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आत्ममुग्ध होने की गुंजाइश नहीं

4 फरवरी 2015
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संयुक्त राष्ट्र की ताजा रपट शायद ही किसी को चौंकाए. यह बताती है कि भारत में अब भी करीब 30 करोड़ लोग भयावह गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं. ऐसे समय में जबकि देश में विकास के नित नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, ये आंकड़े हमें थोडा बहित चिधाएंगे ही. बेशक, हमारे पास मिसाइलें हैं, तकनीक है, कम्प्यूटर हैं, म

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महान विचार

4 फरवरी 2015
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जार्ज बर्नार्ड शा का यह कथन अपने भीतर गंभीर अर्थ समेटे हुए है. आप भी देखें-

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दिल्ली : अब मतदाताओं की बारी

6 फरवरी 2015
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लीजिए साहब, दिल्ली में चुनाव के भोंपू खामोश हो गए. बड़ा शोर हुआ, ‘दुश्मन’ को उसकी औकात बताने के लिए एक से बढ़कर एक शक्तिशाली ‘मिसाइलें’ दागी गयीं. कीचड़ उछालने की ऐसी प्रतिस्पर्धा चली कि देखने वालों ने दांतों तले उंगली दबा ली. मीडिया ने भी ‘आग’ में खूब ‘घी’ डाला. एक से बढ़कर खबरिया ‘ज्योतिषी’ परदे पर आए

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कहाँ हो तुम

15 नवम्बर 2015
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अब कहाँ हो तुममैंने अचानक घुमड़ेबादलों से भी पूछावह लाचारयाद आयातुम्हारा वह सवाल'कहाँ रहते हो तुमदिखते रहा करो'.#रामअनूपद्विवेदी

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गहराता संकट

15 नवम्बर 2015
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यह सचमुच विडम्बना ही है कि ऐसे समय में जबकि भयावह सूखे का सामना कर रहे किसानों को भरपूर मदद की दरकार है, हमारी व्यवस्था के नियामक अपनी अपनी राजनीति चमकाने में व्यस्त हैं. एक के बाद एक चुनावों में बाजी मारने की कवायद में वे यह भूल से चुके हैं कि अगर किसान का अस्तित्व संकट में पड़ा तो कोई भी कहीं का न

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गहराता संकट

15 नवम्बर 2015
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यह सचमुच विडम्बना ही है कि ऐसे समय में जबकि भयावह सूखे का सामना कर रहे किसानों को भरपूर मदद की दरकार है, हमारी व्यवस्था के नियामक अपनी अपनी राजनीति चमकाने में व्यस्त हैं. एक के बाद एक चुनावों में बाजी मारने की कवायद में वे यह भूल से चुके हैं कि अगर किसान का अस्तित्व संकट में पड़ा तो कोई भी कहीं का न

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