उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में एक बयान दिया. कहा कि अगर बिजली चोरी पर अंकुश लग जाए तो सूबे को 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की जा सकती है. ख्याल सचमुच अच्छा है. बहुत सारे लोगों को यह बात अच्छी भी लगी माना गया कि चलो समस्या की जड़ तक प्रदेश के मुखिया का ध्यान गया तो. दूसरी तरफ अनेक लोग इस वक्तव्य को हास्यास्पद मानते हैं. कहा जाने लगा है कि आखिर बिजली चोरी के खिलाफ सख्त कदम उठाने से उन्हें रोका किसने है. यह सवाल स्वाभाविक भी है.
यह सचमुच दुखद है कि उत्तरप्रदेश में एक के बाद एक आई सरकारों ने बयान तो खूब दिए, लोगों को सुनहरे ख़्वाब भी खूब दिखाए लेकिन धरातल पर कुछ ख़ास नहीं हो पाया. कारण क्या थे, यह तो वही जानें, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि अगर इरादे सचमुच नेक होते तो प्रदेश में बिजली संकट कब का ख़त्म हो चुका होता. इस सूबे में किसी भी आम नागरिक से बात कर लें, वह बेहद निराश नजर आएगा. लगता है किसी को भी भरोसा नहीं रह गया है कि विद्युत आपूर्ति की हालत में जल्द सुधार होगा. कारण, जबसे बिजली आपूर्ति के मामले में ‘आरक्षण’ का सिलसिला शुरू हुआ है, लगता है सत्ताधीश काफी बेफिक्र से हो गए हैं. समूचे सूबे के हितों की कुर्बानी देकर कुछ जिलों को रोशन करने की निहायत बेहूदा नीति जब तक चलेगी तब तक उस तरह का दबाव नहीं बन सकता जैसे बनना चाहिए. कहते हैं, घर से भरपूर समर्थन या विरोध ख़ासा मायने रखता है. कल्पना करें कि अगर मुख्यमंत्री या उनके परिजनों के क्षेत्र में भी भयावह बिजली संकट होता तो क्या तब भी वे इसी तरह के भाषण पिलाते रहते. निश्चित रूप से वे समस्या के समाधान के लिए अतिरिक्त परिश्रम करते. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. इनके चुनाव क्षेत्र में कोई संकट नहीं है, इसलिए इन्हें अपनी खुद की चुनावी राजनीति पर कोई संकट नहीं है. इसलिए भी वे, शायद, निश्चिन्त हैं. बहरहाल, इधर कुछ प्रयास होते दीखते हैं, हालांकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि इनके नतीजे कब तक मिलेंगे.
खैर, अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर. अपने सूबे में बिजली की धुंआधार चोरी होती है. यह किसी से छिपा नहीं है. महकमे के लोग भी चोरी करते कराते हैं, यह भी जाना पहचाना तथ्य है. गाँव हो या शहर, हर जगह कटियाबाज बेफिक्र हैं. कभी कभार बिजली चोरों के खिलाफ अभियान चलाने का ‘पाखण्ड’ होता है, लेकिन इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं. मुझे लगता है कि जब तक पूरी ईमानदारी से चोरों पर कार्रवाई नहीं होगी, अपेक्षित नतीजे नहीं मिलेंगे. इन दिनों भी एक अभियान चल रहा है. कटियाबाजों को दबोचा जा रहा है, नए कनेक्शन दिए जा रहे हैं, लोड घटाया बढाया जा रहा है. संभव है कि इससे कुछ फर्क पड़े, लेकिन वास्तविक सुधार ऐसे नहीं होगा. इसके लिए नीति और नीयत में बदलाव लाना होगा. बिजली चोरों के खिलाफ बगैर किसी भेदभाव के सख्त कार्रवाई करनी होगी. ऐसा न हो कि कोई किसी प्रभावशाली नेता का करीबी है तो उस पर हाथ न डाला जाए. फिर तो कुछ भी असर न होगा. दूसरे यह कि बिजली विभाग के अभियंताओं को उनके क्षेत्र में रहने के लिए बाध्य करना होगा. तमाम ग्रामीण इलाकों में बिजली विभाग के इंजीनियर अपने सब स्टेशनों पर महज हाजिरी लगाने ही जाते हैं. उसके बाद उनकी जिंदगी शहर में बीतती है. महकमे के अभियंताओं का तमाम ग्रामीण उपभोक्ताओं से कोई संपर्क तक नहीं है. सवाल यह है कि फिर कैसे होगा सुधार. कैसे रुकेगी बिजली चोरी. जाहिर है, यह काम सरकार को ही करना है.और सरकार करती नहीं.