है मार्ग दूसरा समाधान का, क्यों युद्ध की राह निहारी जाय?
जब जरासंध की चिढ़ मुझसे है, क्यों भोली जनता मारी जाय?
मथुरा के हित की खातिर, संग्राम से बचना ही होगा।
समय की मजबूरी है अब, मथुरा से हटना ही होगा।।
मुझे पता है वीर पले हैं, इस राज्य की पावन माटी में।
पर है विनाश, बे-अर्थ का युद्ध लड़ने की परिपाटी में।।
जरासन्ध की प्रबल चुनौती के आगे झुक जाता हूँ।
हाँ, त्याग युद्ध को जाता हूँ, रणछोड़ नाम अपनाता हुँ।।
जब पाप बढ़ेगा जरासन्ध का, लौट के वापस आऊंगा।
भोली जनता को न झोंक युध्द में, द्वंद युध्द करवाऊंगा।।