Name Abhishek jain
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रेतीला अरमान
अरमानों की तर्ज पर
एक घर हमनें भी बनाया है
पसीनों की बूंद को, रेत में मिला
एक रेतीला ख्वाब सजाया है
विशाल समंदर किनारे ढलती शाम में
अरमानों का किला बनाया है
नैनों से उतरते ख्वाब को हमने
रेत से बना कर घर अपना साकार बनाया है
जज्बातों ने भी तब खूब
साथ निभाया है
पर हवाओं को ये अंदाज
शायद पसन्द ना आया है
लहरों को कर तेज़
किनारें से जो टकराया है
और गुदगुदाते एहसासों के साथ
बने खुशियों के किले जो गिराया है
बिखरे अरमानो को जो हमने समेटा था
अंत मे उसे धूमिल कर
हमे हकीकत से जो फिर मिलाया है ।