बहती पानी की धारा,
जब सिर को भिगोती है ।
दूर कहीं पहाड़ों पर,
जब एकांत में आंखे बंद होती है ।
पक्षियों की चहचहाट के बीच
पानी की गिरती कल कल की आवाज़,
जब मन को शांत कर देती है ।
दुनिया की फिक्र से दूर
जब खामोशी लबो पर
मुस्कान बन सज जाती है ।
तब बंद आँखे शीतल जल से
जिंदगी को ठहरा कर,
हालातो की शांति और सुकून से
मेरी मुलाकात करा देती है ।
अभिषेक जैन
~ Ajain_words