शुभ वर्षा का समय मेघ नभ में छाये थे,
त्रण संयुत थी भूमि दृश्य भी मन भाये थे I
था शुभ प्रात: काल विहग उड़ते बहु सुन्दर,
शीतल मंद सुगन्ध सनी थी पवन मनोहर I
निज-निज शय्या त्याग शौच से छुट्टी पाकर,
चले निरावन खेत कृषक मन में हर्षा कर I
पुस्तक ले निज हाथ चले बालक पाठशाला,
कर ईश्वर का ध्यान यती-जन फेरे माला I
देखो छोटा बालक जाता है जंगल से,
है अतीव निर्द्वंद मोद प्रिय मन मंगल से I
पड़ा अचानक शव्द कान में विस्मित स्वर से,
भागो ! भागो !! बचो !!! श्वान से इस कुक्कुर से I
अहा अचानक चिहुक बाल ने देखा पीछे,
वे चिल्लाये और दौड़ते आते पीछे I
किन्तु डरा कब बाल मोद से कोट उतारा,
ले चट बाये हाथ साथ ही बूट उतारा I
तब तक पंहुचा आन श्वान भी निकट बाल के,
हे ईश्वर ! अब बचा प्राण निर्भीक लाल के I
अहा ! लपक कर लखो श्वान ने मुह फैलाया,
बन कर यम की मूर्ति बाल के ऊपर धाया I
किन्तु बाल ने लखो श्वान मुख ढका कोट से,
करने लगा प्रहार हाथ में लिए बूट से I
तब तक पहुचे आन ग्राम-वासी जन थोड़े I
करने लगे सहाय हाथ ले लाठी रोड़े I
किया श्वान का अंत बाल मन में हर्षाया,
तब उसको था ग्रामजनो ने कंठ लगाया I
देखो दे कर ध्यान इसे साहस कहते हैं,
इससे ही जन सकल सफलता को वरते है I
भारत माँ के लाल बनो निर्भीक साहसी,
जिससे बने ‘अनूप’ जननि स्वर्गपि गरीयसी
जिससे हो कल्याण विश्व का और देश का,
सत्य-अहिंसा पर दुःख कातर निज स्वदेश का I
अनूप कुमार शुक्ल ‘अनूप’
ए-५० गौतम विहार , कल्यानपुर, कानपुर