एक समय की बात है। वीरेंद्र नाम का एक लंगड़ा और गरीब व्यक्ति था। वह स्वभाव से बहुत दयालु और संतोषी था ।वीरेंद्र अपनी पत्नी विनीता के साथ गांव के बाहर एक छोटे से घर में रहता था। रोज सुबह उठकर वह ईश्वर के चरणों में नमन कर, अपना थैला लिए भिक्षा मांगने के लिए घर से निकल जाता था। शाम को जब वह भिक्षा मांग कर आता, फिर हाथ पैर धोकर ईश्वर के चरणों में नमन कर ,अपनी पत्नी के साथ बैठकर भोजन करता था। वह पूरा दिन भिक्षा मांगता था। उसे जो कुछ भी मिलता, उसे प्रेम पूर्वक ग्रहण करता था। विनीता और वीरेंद्र अपने जीवन से संतुष्ट थे, तथा ईश्वर के सामने कभी भी खड़े होकर अपने ऐसी जीवन पर सवाल नहीं करते थे ।धीरे-धीरे समय बीतता गया ।एक दिन जब वह शाम को भिक्षा मांग कर अपने घर लौटा, और रोज की तरह ईश्वर के चरणों में नमन कर विनीता और वीरेंद्र खाने बैठे। उसी समय बाहर से एक साधु की आवाज आई ,वीरेंद्र अपने घर से बाहर निकला उसने द्वार पर साधु को खड़े देख हाथ जोड़कर साधु से कहा। मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं। साधु ने कहा मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है ,मुझे भोजन करा दो। वीरेंद्र साधु को अपनी झोपड़ी में प्रवेश करने को कहता है। तुरंत साफ सफाई कर आसन बिछाकर साधु को बैठने के लिए कहता है। विनीता भोजन निकालकर साधु के सामने रखती है। साधु इतने भूखे रहते है, कि वह विनीता का बनाया हुआ सारा भोजन खा जाते है। विनीता के हाथों का स्वादिष्ट भोजन करने के बाद साधु वीरेंद्र और विनीता को आशीर्वाद देते हैं हुए कहते है। माता लक्ष्मी का आशीर्वाद तुम दोनों पर बना रहे, तुम्हें धन की प्राप्ति हो यह कहकर साधु चला जाता है।
दूसरे दिन वीरेंद्र भिक्षा मांगने जाता है, और विनीता घर के आंगन में बैठी रहती है। तभी एक कौवा उड़कर आंगन में आता है। उसके मुख में एक पोटली होती है। वह विनीता के आंगन में पोटली खोलने का प्रयत्न करता है, परंतु पोटली ना खुलने पर वह पोटली को वहीं छोड़कर उड़ जाता है ।रोज की तरह वीरेंद्र जब भिक्षा मांगकर आते हैं। ईश्वर के सामने चरणों में नमन कर दोनों साथ में खाने बैठते हैं। खाना खाने के बाद दोनों सो जाते हैं।
रात को वीरेंद्र के सपने में माता लक्ष्मी आती है। वह वीरेंद्र से कहती है, कि तुम्हारे जीवन में इतना दुख है किंतु तुम कभी इस बात की शिकायतें नहीं करते हो, और अपनी जीवन से संतुष्ट हो खुद भिक्षुक होकर एक साधु को पेट भर भोजन कराएं, मैं तुमसे प्रसन्न हुई साधु द्वारा दिए गए आशीर्वाद से मैं तुम पर कृपा बरसाने आई हूं, जाओ अपने घर के आंगन में देखो वहां एक पोटली पड़ी है, उस पोटली में तुम्हारे संतोष का फल है। वीरेंद्र उठता है और वह विनीता को सारी बात बताता है। वीरेंद्र और विनीता दोनों घर के आंगन में जाते हैं। उसे वहां पर एक पोटली दिखती है ।खोलकर देखने पर पोटली में बहुत सारा रत्न रहता है। विनीता माता लक्ष्मी का धन्यवाद करती हैं ।रत्न को बेचकर वीरेंद्र एक अच्छा और अमीर व्यक्ति बन जाता है। वह गांव वालो के लिए मुफ्त में स्कूल और अस्पताल बनवाता है ।हर रोज भूखे व्यक्ति को भोजन करवाता है। वीरेंद्र और विनीता दोनों खुशी-खुशी रहने लगते हैं ।कुछ समय बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होती है।