शोभित नाम का एक बालक था। शोभित का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर गांव में हुआ था। शोभित अपने माता-पिता का इकलौता संतान था। शोभित अपने माता पिता के साथ नरसिंहपुर गांव में रहता था। शोभित के पिता पेशे से किसान थे । और शोभित की माता गृहणी थी। शोभित की माता एक अच्छे परिवार से थी, तथा पढ़ी-लिखी अच्छे और नेक विचारों वाली थी ।शोभित की मां शोभित को अच्छे और नेक संस्कार देती थी। शोभित के पिता दो भाई थे ।शोभित के पिता बड़े थे। शोभित के चाचा जी रमेश पेशे से वकील थे। शोभित की चाची जी गृहणी थी। शोभित की चाची स्वभाव से झगड़ालू थी। वह घर के कामों में शोभित की मां की मदद नहीं करती थी। शोभित के चाचा जी के एक लड़की और एक लड़के थे। लड़की का नाम सीमा था ।सीमा की शादी एक अच्छे परिवार में हुई थी। उसके पति पेशे से व्यापारी थे। शोभित के चाचा के बेटे का नाम सौरभ था। सौरभ घर परिवार से दूर कानपुर में पढ़ाई करता था। शोभित के पिता खेतों में दिन रात मेहनत करते थे ।अपने मेहनत और परिश्रम के द्वारा वे अनाज उगते थे। उनका गांव में बहुत सम्मान था। वह गांव में अपने स्वभाव के वजह से सबके दिलों में काफी जगह बना लिए थे। वह गांव के लोगों की मदद करते थे। शोभित के पिता को दूसरों का मदद करके बहुत आनंद महसूस होता था। शोभित अपने पिता के साथ हर रोज शाम को दो-तीन घंटे बैठकर वार्तालाप करता था ।शोभित के पिता उसे जीवन जीने के तरीके समझाते थे। उन्हें प्रेरणादायक कहानियां सुनाते थे। तथा उसे मनावता का ज्ञान देते थे। शोभित के पिता शोभित को कहते थे कि अपने कर्मों का फल ही इस दुनिया में मनुष्य को मिलता है । शोभित नरसिंहपुर गांव में एक स्कूल में पढ़ता था। वह पढ़ने में बहुत तेज था ।वह हमेशा कक्षा में प्रथम आता था। शोभित के माता पिता के संस्कार के कारण शोभित के स्कूल के सभी छात्र अध्यापक शोभित को पसंद करते थे।
एक वर्ष शोभित के पिता कृषि को और ज्यादा आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बैंक से लोन लिए ,और दिन-रात परिश्रम करके खेती किए। उन्हें पूरा विश्वास था की फसल अच्छी होगी । किंतु दुर्भाग्यवश उस वर्ष अधिक वर्षा होने के कारण बाढ़ आ गई और खेतों के सारे फसल नष्ट हो गए। शोभित के पिता पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। यहां बैंक वालों ने अपनी लोन की भरपाई करने के लिए शोभित के पिता को कहने लगे। शोभित के पिता बहुत ही परेशान थे ।उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। किस से मदद मांगी जाए बाढ़ के आने से थोड़ी बहुत परेशानी गांव के सभी घरों में थी। शोभित के पिता बैंक का लोन चुकाने के लिए अपने हिस्से के खेत को बेच दिए । अब शोभित के पिता अपने आगे के भविष्य के बारे में सोचकर काफी परेशान रहने लगे, तनाव और चिंता के कारण वह बीमार रहने लगे , और फिर कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई ।शोभित और उसकी माता पर दुख का पहाड़ टूट गया। अपने भाई के स्वर्गवास हो जाने के बाद शोभित के चाचा और चाची का व्यवहार शोभित और उसकी मां के प्रति अच्छा नहीं था ।वह शोभित और उसकी मां को घर से निकाल दी। शोभित अपनी मां के साथ घर छोड़कर चला गया। रास्ते में उन्हें एक ढाबा दिखा। शोभित और उसकी मां थके होने के कारण ढाबे पर बैठ गए। ढाबे का मालिक दिल से दयालु था। वह शोभित और उसकी मां से उनसे ऐसी परिस्थिति का कारण पूछे। शोभित और उनकी मां ने सारी बातें उस मालिक को विस्तार में बताइए। ढाबे के मालिक ने शोभित और उसकी मां की मदद का आशा दिलाते हुए बोले ,आप चिंता ना करें हम ऐसी परिस्थिति में आपके साथ है। मालिक की बातें सुनकर शोभित और उनकी मां को धीरज मिला ।शोभित को अपने पिता के कर्मों का फल मिला जिस प्रकार उसके पिता सबकी मदद करते थे ठीक उसी प्रकार शोभित की मदद के लिए ढाबे का मालिक शोभित को मिला। उन्होंने शोभित और उनकी मां के रहने की व्यवस्था करवाई। तथा शोभित को अपने ढाबे में काम दिया। शोभित पूरे दिन ढाबे पर काम करता था ,और मेहनत कर पैसे कमाता था। उस पैसे से अपनी अपना घर चलाता था ।साथ ही साथ वह अपने पढ़ाई पर भी ध्यान देता था । वह ढाबे से आने के बाद घर पर बैठकर किताब लेकर पढ़ता था। तथा अपनी किताब ढाबे पर ले जाता था , समय मिलने पर तुरंत किताब खोल कर पढ़ने लगता था ।शोभित की पढ़ाई में रुचि देखकर ढाबे के मालिक ने शोभित का स्कूल में दाखिला करवाया। शोभित ढाबे पर अब रात में काम करता था। दिन में वह स्कूल जाता था। शोभित ने बहुत परिश्रम और मेहनत से पढ़ाई की तथा ढाबे में काम भी किया एक समय ऐसा आया कि शोभित पढ़कर एक सरकारी डॉक्टर बन गया।अपने पिता द्वारा सिखाए गए मानवता के रास्ते को अपनाते हुए शोभित एक अस्पताल खोला। जहां पर गरीब और असहाय लोगों की मुफ्त में इलाज होता था। आज शोभित की माता अपने बेटे की मेहनत और दिए हुए संस्कार से बहुत खुश है। और शोभित के पिता स्वर्ग में बैठे अपने बेटे के मेहनत पर नाज़ कर रहे हैं। शोभित समाज के लिए एक मिसाल बन कर खड़ा हुआ, कि बुरे वक्त को मेहनत के द्वारा हराया जा सकता है। शोभित के अस्पताल में एक दिन शोभित की चाची इलाज के लिए आई ।वे शोभित को डॉक्टर के रूप में देखकर अपने कर्म पर घृणा कर रही है ।शोभित की चाची का लड़का सौरभ जो कानपुर में रहकर पढ़ाई करता था। वह किसी के प्रेम में पड़कर आपने माता पिता को छोड़कर चला गया। शोभित की चाची शोभित को ऐसे रूप में देखकर अपने कर्म पर लज्जित है।
यह सब संस्कार और कर्मों का फल है ।जो शोभित के माता-पिता शोभित को दिए जिस वजह से शोभित की मां आज शोभित से खुश तथा शोभित की चाची सुनीता जो अपने बेटे सौरभ को अच्छे संस्कार नहीं दे पाई थी इस बात से वह अत्यंत ही दुखी है ।उन्हें पता है कि मुझे आज मेरे कर्म का फल मिला है।