वेदना के स्वर
कुम्हला गयी नलिनी भँवर की मौन सृष्टि हो गयी है,सर्प के बंधन में बंद्धकर मृत्यु चन्दन की हुई है,,बोले स्वर्णिम तन्तु मुझसे है पूर्णिमा तेरे निलय में,,है पूर्णिमा की रात तो फिर क्यों अंधेरी हो गयी है।।।वेदना अंजुली में भरकर मैंने नमन तुमको किया है,,सोम के सागर में घुसकर विसपान मैंने भी किया है,, मेरी