सनातन धर्म में ऋषियों के आधार पर आगे इनके वंशज स्थापित किए गए। जिसका हम भी हिस्सा हैं। पाणिनीकी अष्टाध्यायी में गोत्र की एक परिभाषा भी मौजूद है - ‘अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्’ जिसका मतलब है कि बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। इस प्रकार से प्राचीन काल से एक ही गोत्र के भीतर होने वाले लड़के और लड़की का एक-दूसरे से भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है।
क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं, इसीलिए वह सगे तो नहीं, लेकिन मूल रूप से भाई-बहन ही हुए। इसीलिए गोत्र सिद्धांत के अंतर्गत एक ही गोत्र के लड़के या लड़की का विवाह करने की मनाही होती है।
एक मानवीय शरीर में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं।
यह दो प्रकार के होते हैं - ‘एक्स’ क्रोमोसोम तथा ‘वाय’ क्रोमोसोम। विज्ञान कहता है कि एक ही गोत्र के सभी मर्दों में वाय क्रोमोसोम एक जैसा ही होता है।
इसी तरह से एक ही गोत्र की सभी स्त्रियों में भी एक्स क्रोमोसोम एक जैसा होता है। तो यदि एक ही गोत्र के लड़का एवं लड़की की शादी कर दी जाए तो उनकी संतान कुछ कमियों के साथ पैदा होती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एक संतान को अपना गोत्र अपने पिता से ही हासिल होता है, परंतु मलयालम और तेलुगु भाषी समुदायों में संतान का गोत्र उसकी मां के मुताबिक तय किया जाता है।
क्यों शादी के बाद महिलाएं अपना पुराना गोत्र या पुराना आखिरी नाम छोड़ नए गोत्र को अपनाती हैं? वह उसी गोत्र के साथ अपनी सारी ज़िंदगी क्यों नहीं बिता सकतीं?
एक शरीर में 23 क्रोमोसोम होते हैं। एक बच्चे को जन्म के बाद अपने माता-पिता दोनों से ही बराबर के क्रोमोसोम मिलते हैं।
इसका मतलब उसे 46 क्रोमोसोम हासिल होते हैं। इन सभी क्रोमोसोम में से एक खास क्रोमोसोम होता है ‘सेक्स क्रोमोसोम’, जो यह निश्चित करता है कि पैदा होने वाले बच्चे का लिंग ‘मादा’ है या ‘पुरुष’। संभोग के दौरान प्रत्येक इंसान में एक खास क्रोमोसोम की उत्पत्ति होती है।
यदि संभोग के दौरान बनने वाले ‘सेल्स’ एक्स-एक्स सेक्स क्रोमोसोम का जोड़ा बनाते हैं, तो लड़की पैदा होती है। इसके विपरीत यदि एक्स-वाय सेक्स क्रोमोसोम बनता है, तो लड़का पैदा होगा।
इसको उदाहरण से समझते हैं
एक मां द्वारा केवल एक्स सेक्स क्रोमोसोम ही दिया जाता है। एक पिता ही है जो एक्स और वाय दोनों सेक्स क्रोमोसोम देने की क्षमता रखता है।
यदि लड़का होगा तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम पिता से हासिल होता है। परंतु एक लड़की अपना सेक्स क्रोमोसोम माता-पिता दोनों से हासिल करती है। एक बच्चा यदि लड़का हो तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम केवल अपने पिता से ही हासिल होता है क्योंकि उसका वाय क्रोमोसोम उसे कोई और नहीं दे सकता।
लेकिन एक लड़की को अपना सेक्स क्रोमोसोम उसकी मां और उसकी मां की भी मां से हासिल होता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ‘क्रासओवर’ भी कहा जाता है। इस सारे वैज्ञानिक खेल में एक ‘वाय’ सेक्स क्रोमोसोम ऐसा है, जो कहीं ना कहीं कम पड़ जाता है।
यह वाय सेक्स क्रोमोसोम कभी भी एक महिला को हासिल नहीं होता है। इस वाय क्रोमोसोम का गोत्र से काफी गहरा सम्बन्ध है। यदि कोई अंगरस गोत्र से है तो उसका वाय क्रोमोसोम हजारों वर्ष पीछे से चलकर आया है, जो सीधा ऋषि अंगरस से सम्बन्धित है।इसके साथ ही यदि व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज है जिसके साथ गोत्र परिवार (अंगिरस, बृहस्पत्य, भारद्वाज) भी जुड़े हैं, तो उसका वाय क्रोमोसोम वर्षों पीछे से अंगिरस से बृहस्पत्य और फिर ब्रहस्पत्य से भारद्वाज में बदलकर आया है। यहां समझने योग्य बात यह है कि केवल वाय क्रोमोसोम ही ऐसा है जो गोत्र परिवारों को एक आधार प्रदान करता है।
इसीलिए यह माना जाता है कि एक स्त्री का खुद का कोई गोत्र नहीं होता। उसका गोत्र वही है जो उसके पति का गोत्र है। उनमें वाय क्रोमोसोम की अनुपस्थिति उन्हें अपने पति के गोत्र को अपनाने के लिए विवश करती है।