हिन्दी साहित्य में कई ऐसे लेखक हुए हैं जिन्होंने वक़्त, जिंदगी , इश्क़ और न जाने कितनों विषयों को अपनी कलम से परिभाषित किया है। इन लेखकों की सोच प्रकाश गति से भी तेज है । आज हम ऐसे ही लेखकों की प्रसिद्ध कविताएं आपके लिए लाए हैं जिन्होंने न केवल अपनी ब्लकि आने वाली पीढ़ियों को नई परिभाषाएं और आयाम दिए हैं ।
हिन्दी कविता- हिन्दी प्रसिद्ध कविताएं
एक सोच अक्ल से फिसल गयी
मुझे याद थी कि बदल गयी
मेरी सोच थी की वो ख़्वाब था
मेरी ज़िंदगी का हिसाब था
मेरी ज़िंदगी के बरक्स थी
मेरी मुश्किलों का वो अक्स थी
मुझे याद हो तो वो सोच थी
जो ना याद हो तो गुमां था
मुझे बैठे बैठे गुमां हुआ
गुमां नहीं था ख़ुदा था वो
मेरी सोच नहीं थी ख़ुदा था वो
वो ख़ुदा की जिसने जुबां दी
मुझे दिल दिया मुझे जान दी
वो जुबां जिसे ना चला सके
वो दिल जिसे ना मना सके
वो जान जिसे ना लगा सके
कभी मिल तो तुझको बताएं हम
तुझे इस तरह से सताएं हम
तेरा इश्क़ तुझसे छीन कर
तुझे मए पिला कर रुलाए हम
तुझे दर्द दूं तू ना सह सके
तुझे दूं ज़ुबां तू ना कह सके
तुझे दूं मकां तू ना रह सके
तुझे मुश्किलों में घिरा के
मैं कोई ऐसा रास्ता निकाल दूं
तेरे दर्द की मैं दवा करूं
किसी गर्ज़ के मैं सिवा करूं
तुझे हर नज़र पे उबूर[1] दूं
तुझे ज़िन्दगी का शहूर[2] दूं
कभी मिल भी जायेंगे गम ना कर
हम गिर भी जायेंगे गम ना कर
तेरे एक होने पे शक नहीं
तेरी शान में भी कोई कमी नहीं
मेरी नीयत को तू साफ़ कर
मेरी इस कलम को माफ़ कर
शब्दार्थ:- 1. महत्तव 2.मशहूर
रचयिता:- यूसुफ बशीर कुरैशी
कराची, पाकिस्तान
Hindi Kavita on Life
2- औक़ात
एक दिन मैने पानी की एक बूँद से पूछा, तेरी औक़ात क्या है
उसने मुझे झरने से बोल,नदी से कहलवाया,
तू समुन्द्र जा के देख मेरी औक़ात जान जायेगा।
एक दिन मैने रेत के कण से पूछा, तेरी औक़ात क्या है?
उसने मुझे रेत के टीले से बोल,रेत की आंधियों से कहलवाया
तू रेगिस्तान जाकर देख मेरी औक़ात जान जायेगा ।
एक दिन मैने एक चीटीं से पूछा, तेरी औकात क्या है?
उसने मुझे बाजुएं दिखाकर, ताक़त से कहलवाया,
तू मुझे हाथी की सूंड में भेज के देख मेरी औक़ात जान जायेगा ।
एक दिन मैने जिंदगी से पूछा तेरी औक़ात क्या है ?
उसने ज़िंदगानी से एक ख़ूबसूरत लम्हा ले कर, कुछ अल्फ़ाज़ों में फ़रमाया
तू इन्हे जीकर देख मेरी औक़ात जान जायेगा ।
एक दिन मुझ से किसी ने पूछा तेरी औक़ात क्या है।
मैंने अपनी परछाई से बोल, अक्श से कहलवाया
तू मेरे इरादे जान ले मेरी औकात जान जायेगा ।
रचयिता:- कमल मिश्रा
रामपुर, उत्तर प्रदेश
Hindi Ki Kavita
3- उदास एक मुझी को तो कर नही जाता
वह मुझसे रुठ के अपने भी घर नही जाता
वह दिन गये कि मुहबबत थी जान की बाज़ी
किसी से अब कोई बिछडे तो मर नही जाता
तुमहारा प्यार तो सांसों मे सांस लेता है
जो होता नश्शा तो इक दिन उतर नही जाता
पुराने रिश्तों की बेग़रिज़यां न समझेगा
वह अपने ओहदे से जब तक उतर नही जाता
'वसीम' उसकी तड़प है, तो उसके पास चलो
कभी कुआं किसी प्यासे के घर नही जाता
रचयिता:- वसीम बरेलवी
4- जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है
अपने माज़ी[1] की जुस्तुजू[2] में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है
शब्दार्थ:- 1.अतीत 2. इच्छा
रचियता:- गुलज़ार
फिल्म निर्देशक, गीतकार, पटकथा लेखक, निर्माता, कवि, लेखक
5- वक़्त
ये वक़्त क्या है?
ये क्या है आख़िर
कि जो मुसलसल[1] गुज़र रहा है
ये जब न गुज़रा था, तब कहाँ था
कहीं तो होगा
गुज़र गया है तो अब कहाँ है
कहीं तो होगा
कहाँ से आया किधर गया है
ये कब से कब तक का सिलसिला है
ये वक़्त क्या है
ये वाक़ये [2]
हादसे[3]
तसादुम[4]
हर एक ग़म और हर इक मसर्रत[5]
हर इक अज़ीयत[6] हरेक लज़्ज़त[7]
हर इक तबस्सुम[8] हर एक आँसू
हरेक नग़मा हरेक ख़ुशबू
वो ज़ख़्म का दर्द हो
कि वो लम्स[9] का हो ज़ादू
ख़ुद अपनी आवाज हो
कि माहौल की सदाएँ[10]
ये ज़हन में बनती
और बिगड़ती हुई फ़िज़ाएँ[11]
वो फ़िक्र में आए ज़लज़ले [12] हों
कि दिल की हलचल
तमाम एहसास सारे जज़्बे
ये जैसे पत्ते हैं
बहते पानी की सतह पर जैसे तैरते हैं
अभी यहाँ हैं अभी वहाँ है
और अब हैं ओझल
दिखाई देता नहीं है लेकिन
ये कुछ तो है जो बह रहा है
ये कैसा दरिया है
किन पहाड़ों से आ रहा है
ये किस समन्दर को जा रहा है
ये वक़्त क्या है
कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ
कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो
तो ऐसा लगता है दूसरी सम्त[13]जा रहे हैं
मगर हक़ीक़त में पेड़ अपनी जगह खड़े हैं
तो क्या ये मुमकिन है
सारी सदियाँ क़तार अंदर क़तार[14]
अपनी जगह खड़ी हों
ये वक़्त साकित[15] हो और हम हीं गुज़र रहे हों
इस एक लम्हें में सारे लम्हें
तमाम सदियाँ छुपी हुई हों
न कोई आइन्दा [16] न गुज़िश्ता [17]
जो हो चुका है वो हो रहा है
जो होने वाला है हो रहा है
मैं सोचता हूँ कि क्या ये मुमकिन है
सच ये हो कि सफ़र में हम हैं
गुज़रते हम हैं
जिसे समझते हैं हम गुज़रता है
वो थमा है
गुज़रता है या थमा हुआ है
इकाई है या बंटा हुआ है
है मुंज़मिद[18] या पिघल रहा है
किसे ख़बर है किसे पता है
ये वक़्त क्या है
रचयिता:- जावेद अख्तर
शब्दार्थ:-
1. लगातार 2. घटनाएँ 3. दुर्घटनाएँ 4. संघर्ष,टकराव 5.हर्ष, आनंद, ख़ुशी 6.तकलीफ़ 7.आनंद 8.मुस्कराहट 9.स्पर्श 10.आवाज़ें 11.वातावरण 12.भूचाल 13.दिशा, ओर 14.पंक्ति दर पंक्ति 15.ठहरा हुआ 16.भविष्य 17.भूतकाल 18.जमा हुआ