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शमशेर बहादुर सिंह के बारे में

शमशेर बहादुर सिंह आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उन्हें नागार्जुन और त्रिलोचन के साथ हिंदी कविता की ‘प्रगतिशील त्रयी’ में शामिल किया जाता है। वह नई कविता के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। नई कविता का आरंभ अज्ञेय के ‘दूसरा सप्तक’ से माना जाता है जहाँ शमशेर एक प्रमुख कवि के रूप में शामिल हैं। शमशेर का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में ही हुई, फिर वह उच्च शिक्षा के लिए गोंडा और इलाहबाद विश्वविद्यालय गए। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह धर्मवती से हुआ। छह वर्षों के सहजीवन के बाद 1935 में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। अल्पायु में माता की मृत्यु और युवपन में पत्नी की मृत्यु से उनके जीवन में उत्पन्न हुआ यह अभाव सदैव उनके अंदर बना रहा। शमशेर की संवेदनशीलता उन्हें एक बड़ा और विशिष्ट कवि बनाती है। प्रतिगातिवादी चेतना और प्रयोगवादी चेतना के परस्पर अंतर्विरोध उनकी कविताओं में घुल जाते हैं और एक आकर्षक सामंजन का सृजन करते हैं। उनकी रचनात्मकता का एक विशेष दृष्टिकोण यह है कि वह अनुभूति की सच्चाई पर बल देते हैं। यह सच्चाई ही उन्हें फिर यथार्थपरक अभिव्यक्ति और मानवीय भावनाओं का कवि बनाती है। शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह हिन्दी साहित्य में माँसल एंद्रीए सौंदर्य के अद्वीतीय चितेरे और आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा के समर्थक रहे। उन्होंने स्वाधीनता और क्रांति को अपनी निजी चीज़

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शमशेर बहादुर सिंह की पुस्तकें

शमसेर बहादुर  सिंह की रचनाएँ

शमसेर बहादुर सिंह की रचनाएँ

जीवन-परिचय-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी-साहित्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका अज्ञेय के तार सप्तक में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म13 जनवरी, सन 1911 ई० को उत्तराखंड के देहरादून जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभ

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133 रचनाएँ

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शमसेर बहादुर  सिंह की रचनाएँ

शमसेर बहादुर सिंह की रचनाएँ

जीवन-परिचय-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी-साहित्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका अज्ञेय के तार सप्तक में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म13 जनवरी, सन 1911 ई० को उत्तराखंड के देहरादून जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभ

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शमशेर बहादुर सिंह के लेख

उत्तर

16 जुलाई 2022
1
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बहुत अधिक, बहुत अधिक तुम्‍हें याद करता मैं रहा; यह भी था कारण जो पत्र मैं लिख नहीं सका; लिख नहीं सका, बस। भावों का भार उन शब्‍दों से उठ नहीं सका, लिखे-पढ़े जाते जो पत्रों में। अन्‍य रूप शब्‍दों क

दिन तमाशा ख़्वाब हैं रातें मेरी

16 जुलाई 2022
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दिन तमाशा ख़्वाब हैं रातें मेरी फिर ग़ज़ल में ढल गईं बातें मेरी दिल के आईने में मुस्तक़बिल उदास क्या ख़ुशी देंगी मुलाक़ातें मेरी गर्मियाँ, आहों भरी तनहाइयाँ आंसुओं की याद बरसातें मेरी मेरी

मेरा दिल अब आज़माया जाएगा

16 जुलाई 2022
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मेरा दिल अब आज़माया जाएगा मुफ़्त इक महशर उठाया जाएगा जाने-जाँ यह ज़िन्दगी होगी न जब ज़िन्दगी से तेरा साया जाएगा आज मैं शायद तुम्हारे पास हूँ और किसके पास आया जाएगा कौन मरहम दिल पे रक्खेगा

ओ मेरे घर

16 जुलाई 2022
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ओ मेरे घर ओ हे मेरी पृथ्वी साँस के एवज़ तूने क्या दिया मुझे -ओ मेरी माँ ? तूने युद्ध ही मुझे दिया प्रेम ही मुझे दिया क्रूरतम कटुतम और क्या दिया मुझे भगवान दिए कई-कई मुझसे भी निरीह मुझसे भी न

बँधा होता भी

16 जुलाई 2022
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बँधा होता भी मौन यदि उस व्यथा के रूप से कोमल जो कि तुम हो समय पा लेता उसे तब भी।

उत्तर

16 जुलाई 2022
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बहुत अधिक, बहुत अधिक तुम्‍हें याद करता मैं रहा; यह भी था कारण जो पत्र मैं लिख नहीं सका; लिख नहीं सका, बस। भावों का भार उन शब्‍दों से उठ नहीं सका, लिखे-पढ़े जाते जो पत्रों में। अन्‍य रूप शब्‍दों क

ये लहरें घेर लेती हैं

16 जुलाई 2022
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ये लहरें घेर लेती हैं ये लहरें .. उभर कर अर्द्ध द्वितीया टूट जाता है.. अंतरिक्ष में ठहरा एक दीर्घ रहेगा समतल - मौन दू्र... उत्तर पूर्व तक तीन ब्रह्मांड टूटे हुए मिले चले गये हैं अगिन व्यथा

एक मौन

16 जुलाई 2022
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सोने के सागर में अहरह एक नाव है (नाव वह मेरी है) सूरज का गोल पाल संध्या के सागर में अहरह दोहरा है. ठहरा है... (पाल वो तुम्हारा है) एक दिशा नीचे है एक दिशा ऊपर है यात्री ओ! एक दिशा आगे है ए

गीली मुलायम लटें

16 जुलाई 2022
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गीली मुलायम लटें आकाश साँवलापन रात का गहरा सलोना स्तनों के बिंबित उभार लिए हवा में बादल सरकते चले जाते हैं मिटाते हुए जाने कौन से कवि को.. नया गहरापन तुम्हारा हृदय में डूबा चला जाता न जाने

निंदिया सतावे

16 जुलाई 2022
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निंदिया सतावे मोहे सँझही से सजनी। सँझही से सजनी ॥1॥ प्रेम-बतकही तनक हू न भावे सँझही से सजनी ॥2॥ निंदिया सतावे मोहे...। छलिया रैन कजर ढरकावे सँझही से सजनी ॥3॥ निंदिया सतावे मोहें...। दुअि नैन

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