एक दिन वह भी आएगा, जब सपनों का आकार होगा। वह सुख-शांति का सागर होगा, जो हमें अंतर्मन से आवाज़ देगा। एक दिन वह भी आएगा, जब समृद्धि की मिठास बिखरेगी। सभी दरियाओं को लहराएगा, अपने प्या
ढूंढा तुमको मैंने, यहाँ वहां न जाने कहाँ, कुछ लोगों से पूंछा, तेरे मिलने का ठिकाना, कुछ ठिकाने भी ढूंढे, जहाँ तुम मिला करते थे, जहाँ तुम मिला करते थे, वहां तुम मिले नहीं अरसो से, नए ठिकानों पर
है कठिन डगर सुन ले ओ पथिक चलने से घबरा मत जाना जाति - पाति के भेदभाव में फंसकर कहीं तुम न रह जाना कांटो को तुम पुष्प बनाकर बढ़ते जाना चलते जाना कहीं लगे थक गए बहुत हो तनिक ये भाव न मन में
शालिनी ( प्यारी सी बालिका ) बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंदर - सी, बहुत प्यारी - सी और विद्यालय का गृह कार्य समय पर क
होती थी यह वर्षों पहले जब दिवाली में जलते थे दिये पर अब चाहे हो जैसे दिवाली में जलते हैं पैसे छोड़ते हैं बम-पटाखे और छोड़ते हैं रॉकेट फैलाते है प्रदुषण बढ़ाते हैं बीमारी चाहे हो जैसे पर दिवाल
“सुना है तुम छुआछूत की समस्या पर कटाक्ष करता हुआ कोई नाटक करने वाले हो इस बार अपने स्कूल में”, संतोष भईया ने मुझसे शाम को खेलते समय पूछा, “और उस नाटक की स्क्रिप्ट भी तुमने ही लिखी है, बहुत बढ़िया”।
विमान में प्रवेश की उद्घोषणा के साथ रमा एक झटके से उठ बैठी और लपक कर लाइन में लग गयी। वहीं सुरेश आराम से अपने लैपटॉप पर काम करता रहा। दोनों दम्पतिअक्सर हवाई जहाज से यात्रा करते थे और हर बार ऐसा ही घटन
अजय की बेटी की शादी में जाने के लिए जब सब तैयार हो रहे थे तो मैंने इस काम के लिए ले जाने वाले एक लिफाफे को निकाला और सोचा इसमें कितनी रकम डालूं। आम तौर पर मेरी पत्नी इस जिम्मेदारी को निभाती थी और इस
अपराजिता - जीवन की मुस्कराहटबड़े शहर से शादी करके आई अपराजिता जब से अपने ससुराल एक छोटे से गांव में आई तब से देख रही थी ससुराल में उसकी बुजुर्ग दादी सास का निरादर होता हुआ। ससुराल में उसके पति वि
ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब म
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत स
टिंग-टोंग... डोरबेल बजी तो कुछ ही देर बाद किरण ने दरवाज़ा खोला। सामने अमन था। किरण- अमन! अच्छा हुआ तू आ गया। मेरी जान छुड़वा इनसे। अमन को देखते ही राहत भरी सांस लेकर बोली किरण तो उसने हैरानी से पूछ
गौर किया जाए तो आप देखेंगे कि पहले हमारे देश में घूंघट की प्रथा नही थी। ये पर्दा प्रथा भारत में मुस्लिम समुदाय को देन है। जब मध्यकाल में मुगल द्वारा आक्रमण होने लगे और तब हिंदू स्त्रीयों ने अपना मान औ
पुराने समय से विधवा जीवन एक अभिशाप से कम नही है। पति की मृत्यु के बाद एक स्त्री का जीवन। नर्क समान है। उससे न सिर्फ सौभाग्य की निशानियां छिन्न जाती है बल्कि कष्टदाई जीवन जीने को मजबूर हो जाती है। पूर्
मोलक्की ये एक ऐसी प्रथा है ,जिसमें पैसे देकर लड़कियों को खरीदा और बेचा जाता है । इस प्रथा का चलन उत्तर भारत में ज्यादा है। हरियाणा में ये प्रथा काफी प्रचलित है।किसी प्रथा के आड़ में लड़की खरीदना और बे
हमारे देश में जाने कितनी ही कुप्रथा का चलन है। जिनमें से एक है बाल विवाह बाल विवाह की कुप्रथा वो भयानक लहर है। जिसमे किसी मासूम का बचपन बह जाता है। बाल विवाह से बच्चों की मासूमियत छिन जाती है।हमारे दे
आटा साटा समाज की बहुत पुराने समय से चली आ रही एक प्रथा है। जो रिश्तों को बेहतर और मजबूत बनाने और प्रेम संबंध कायम रखने के लिए बनाई गई थी। पर धीरे ध
एक बेटी का जन्म क्यों अभिशाप माना जाता है और बेटे का जन्म वरदान। ये कैसी सोच , ये कैसी मानसिकता? क्यों बेटी के जन्म से निराशा का मोहौल हो जाता है?क्या बेटी को इस संसार का सुख पाने का अधिकार नही ह
सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि,आई पावन हरतालिका तीज।रखें व्रत यह कुवांरी सुहागिनें,संकल्प करें हरतालिका तीज।।लगा कर मेहंदी हाथों में,पावन निर्जला व्रत रखती।प्रतीक होता अखंड सौभाग्य,नक्षत्रों का आशीर्वाद पा