मोहब्बत के सभी रंग बहुत ख़ूबसूरत हैं... परन्तु...सबसे ख़ूबसूरत रंग वह है... जिसमें इज़हार के लिए अल्फ़ाज़ ना हों...-दिनेश कुमार कीर
फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाईसखी बसन्त मदन ऋतु है कहां आई??न दिखे खेत पीले सरसों न नीली अलसी ।कहां सखी कोकिल कूके आंबौर हुलसी ।सूरजमुखी के गेरुए संत गेंदा की तरुणाई ।मधुरस महुआ को छू पवन करे अगुआई
प्रकृति कर रही नर्तन, धार नववधू यौवनशीत का है गमन ,ऋतुराज का आगमनधूप हुयी गुनगुनी सजीली व चमकीलीजीर्ण वसन छोड़ नवपात सजी डालीरुत मस्तानी, स्वच्छ चांदनी है गगन मेंदेखो नव फसलें, किलक रहीं भूतल मेंवीणा
पुष्प पीत रंग सरसों की डालियां, कलियां खिल उठी चमन।सुहावनी ऋतु आई बसंत , जन-जन का खिल उठा है मन।आम्र, बेरों से लदी डालियां, खाने को उत्सुक हो उठा हर मन। मधुर-मधुर फल खाकर खग, पुलकित हो उठा है हर