शुक्ल-पक्ष में मनाईं जाएंगी 'निर्जला एकादशी'
सरस्वती उपाध्याय
निर्जला एकादशी का काफी अधिक महत्व है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल-पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी के अलावा भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। साल में पड़ने वाली 24 एकादशियों में से इसे सबसे कठिन एकादशी माना जाता है। क्योंकि इस एकादशी में बिना जल पिएं व्रत रखा जाता है। एकादशी भगवान विष्णु को अति प्रिय है। मान्यता है कि इस एकादशी में भगवान विष्णु की विधिवत तरीके से पूजा करने के साथ व्रत रखने से सभी एकादशियों के बराबर फल मिलता है। जानिए निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि...
निर्जला एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त...
निर्जला एकादशी तिथि- 10 और 11 जून 2022, शुक्रवार।
एकादशी तिथि प्रारंभ- 10 जून सुबह 7 बजकर 25 मिनट से शुरू।
एकादशी तिथि समाप्त- 11 जून सुबह 5 बजकर 45 मिनट में समाप्त।
अभिजीत मुहूर्त – 10 जून को सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 53 मिनट तक।
शिव योग – 11 जून शाम 08 बजकर 46 मिनट से 12 जून शाम 05 बजकर 27 मिनट तक।
स्वाति नक्षत्र – 11 जून सुबह 03 बजकर 37 मिनट से 12 जून सुबह 02 बजकर 05 मिनट तक।
रवि योग- 10 जून को सुबह 5 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर 11 जून सुबह 3 बजकर 37 मिनट तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- 11 जून सुबह 5 बजकर 23 मिनट से 12 जून सुबह 2 बजकर 5 मिनट तक।
पारण का समय- 11 जून सुबह 5 बजकर 49 मिनट’ से 8 बजकर 29 मिनट तक।
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि करके साथ कपड़े धारण कर लें। भगवान विष्णु का मनन करके हुए निर्जला व्रत का संकल्प ले लें।
भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा अर्चना करें।
सबसे पहले एक चौकी या फिर पूजा घर में ही पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर या फिर मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद फूल की मदद से जल अर्पित करके शुद्धि करें।
आसन बिछाकर बैठ जाएं।
अब भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल और माला चढ़ाएं। इसके बाद पीले रंग का चंदन, अक्षत आदि लगा दें।
इसके साथ ही भोग और तुलसी दल चढ़ा दें। अब घी का दीपक और धूप जलाकर विष्णु भगवान के मंत्र, चालीसा, स्तुति, स्तोत्र आदि का जाप कर लें।
अंत में विधिवत आरती कर लें और दिनभर निर्जल व्रत रहने के बाद दूसरे दिन सूर्योदय होने के बाद पारण करें। इसके बाद जल ग्रहण करें।