अमृत महोत्सव 'संपादकीय'
जीत किसके लिए, हार किसके लिए ?
जिन्दगी भर तकरार, किसके लिए ?
जो भी आया है, इस जहां से जायेगा !
फिर... इतना अहंकार किसके लिए ?
परिवर्तन की प्रखर बेला में जब हर आदमी अपने को समझ रहा है अकेला, ऐसे हालात के बीच आधुनिकता की चकाचौंध में दिलों में तफरका,आपसी भाईचारा ,छोटी-छोटी बात परिवार का बंटवारा ,आम बात हो गया है। बर्दास्त करने की क्षमता पर विसमता की मोटी परत चढ़ चुकी है। बड़े-छोटे का लिहाज खत्म है।
फैसन परस्ती की मस्ती में देह ऊघारु कपड़े देखकर नजरें झुकी हुई है। पुरातन व्यवस्था का आधुनिक आस्था में तरपण हो चुका है। पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता में आज की पीढ़ी का समावेश हो चुका है। सनातन धर्म की आस्था आज की व्यवस्था में एक बार फिर अपना पुराना वास्ता तलाश रही है ? अखंड भारत के बिप्लवि इतिहास का हर पन्ना पढ़ा जा रहा है। विदेशी लुटेरों का कलंकित इतिहास मिटाया जा रहा है। समय के सागर में सुनामी चल रही है, तमाम इसकी चपेट में आकर धाराशाई हो रहे हैं।
कहीं करूण क्रन्दन है, कहीं अभिन्नदन है, तो कहीं तबाही है, कही वाह-वाही है! हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक स्मिता के सवाल को लेकर देश के हर कोने मे बवाल मचा हुआ है। 'अमृत महोत्सव' आजादी के सत्तर साल ने जो बवाल पैदा कर दिया, उसका जड़ से उन्मूलन करने में भी वर्षों लग जायेंगे। भारत की सीमाएं धधक रही है। दुश्मन देश मौके की तलाश में हैं। विश्व के बड़े देशों में चल रहे वैचारिक मतभेद के कारण नरसंहार के साथ प्रकृति को मानवी व्यवस्था में दिया जा रहा उपहार, आने वाले नस्लों के लिये घातक साबित होगा। देश के भीतर आजकल वजूद तलाश किया जा रहा है
भाई चारगी बना रहा सबूत दिया जा रहा है।नाजायज को जायज बनाकर मजहबी उन्माद पैदा करने वालो का गिरोह, जिस बिछोह को लेकर छटपटा रहा है। वह कहीं से भी उनके हक में नहीं है। उनका मजहब नाजायज को स्वीकार करने की इजाजत कभी नही देता ? फिर भी एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ ने बेजोड़ दुर्वव्यवस्था पैदा कर दिया है। परिवर्तन के संकीर्तन मे पुरातन आस्था का सवाल, अब स्वाभिमान बन चुका हैं ! हिन्दुस्तान के कलंकित इतिहास में अब नई इबारतें प्रतिस्थापित की जा रही है।
अहम का बहम पाले देश के परिवेश में तरक्की का निवेश करने की बात करने वाले कहीं से भी सहयोग करते नहीं देखे जा रहे है ? सामंजस्य को रहस्य बनाकर सर्वस्व पर अनाधिकार चेष्टा की चाहत उन्मादी सोचकर के कारण मर्माहत हो रही है। सदियो पहले फ्रांस के भविष्य द्रष्टा ने बता दिया है कि भारत का सब कुछ बदल जायेगा ! जिसका है, उसके पास महल जायेगा। फिर काहे का तकरार ! विदेशी लुटेरे जिसको जी भरकर लुटे, भारतीय संस्कृति को कलंकित किए अगर, आज अपने वजूद में आ रही है तो बवाल क्यो ?
सवाल सौ टका सही है, तो फिर इसमें हमारा तुम्हारा क्या ? जिसका जो है, उसका हिस्सा वापस हो ! सब मिल्लत से रहे टकराव का किस्सा खत्म हो ! शान्ती के मार्ग पर चलने वाला भारत रामायण काल भी देखा, महाभारत भी देखा ! विदेशी लुटेरो का हमला भी देखा, ईसाइयत का रूतबा भी देखा ! यूनान मिश्र रोमा सब मिट गये जहां से! कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी! सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा का तराना सदियों से परवान चढ़ रहा है ! आज का भारत फिर अपनी अखन्डता के तरफ बढ़ रहा है। सब कुछ बदल रहा है ! भारतीय संस्कृति अपनी पुरानी आकृति वापस पा रही है।
जगदीश सिंह