एक गिलास पानी 'कविता'
कभी वो है, कभी हम है।
उसके बाद जो पानी कम है,
बशर्ते, पी नहीं सकते उसको,
इसी बात का गम है।
गिलास तू अपना पानी बिखेर देता है,
जब मर्जी आए, तब पानी रख लेता है।
बता मेरे गिलास,
क्या तेरा ये ही कर्म है ?
कैसे बयां करूं ?
कितनी सिरदर्दी है तूझे पानी से,
क्या सच में तू इतना बेशर्म है ?
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'