नित्या: मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नही हूं और ना ही बड़े घर की हूं। मैं एक साधारण से, गरीब और छोटे से घर में पली बढ़ी हूं। मुझे पढ़ाई लिखाई का बहुत शौक था लेकिन गरीब होने के कारण मेरे मां बाप मुझे पढा नहीं पाइए। इसलिए मेरी पढ़ाई दसवीं तक ही हुई है। पढ़ाई लिखाई के साथ साथ मेरा इनटरस फोटोग्राफी में कब पे गया मुझे पता ही नहीं चला। फोटोग्राफर बनना मेरा सपना बन गया और धीरे-धीरे मेरा झुकाव इसकी ओर बढ़ता गया। मैंने सोचा मैं आगे पढ़ लिख नहीं सकी तो क्या हुआ?मैं अपना फोटोग्राफर बनने का सपना तो पूरा कर ही सकती हूं, इसमें कौन से ज्यादा पैसे लगते हैं बस एक कैमरा ही तो चाहिए। लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरा यह सपना भी अधूरा ही रह जाएगा। और मेरा सपना अधूरा रहने का कारण बनेगा मेरा लड़की होना। जब एक दिन मैंने अपने सपने के बारे में अपने माता पिता से बात की उन्हें बताया कि मैं फोटोग्राफर बनना चाहती हुं तो वह मुझे समझाने लगे कि लड़कियां फोटोग्राफर नहीं बनतीं। फोटोग्राफी का काम लड़कों को ही शोभा देता था। हमारे आसपास देखा है किसी लड़की को फोटोग्राफर बनते हुए।मुझे क्या पता था कि ऐम के भी पैमाने होते हैं भी जो समाज को अच्छी लगे वहीं ऐम रखो। मेरे मन में तो यही था कि जो दिल को अच्छी लगे वहीं ऐम रखनी चाहिए। और मैंने जितना पढ़ रखा था उसमें तो यहीं था कि हम सब आजाद देश के नागरिक हैं और हम सभी को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का समान अधिकार है। मुझे क्या पता था कि वास्तव में इसके उल्ट है। लड़कियों को वहीं सपने देखने पड़ते हैं जो उन्हें शोभा दें और समाज को अच्छे लगे। मैंने अपने माता पिता को यह समझाने की बहुत कोशिश की भी ज़रूरी नहीं है कि हम वहीं काम करें जो समाज को अच्छा लगे और ऐसा भी नहीं होता कि जो काम लड़के कर सकते हैं वो लड़कियां नहीं कर सकतीं। लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। इसके बाद मैंने उनसे कभी भी इसके बारे में बात नहीं की क्योंकि मैं समझ चुकी थी कि वह मेरी बात नहीं समझेंगे। फिर एक दिन मैंने सोचा कि क्यों न अपने मन को तसल्ली देने के लिए मैं एक कैमरा खरीद लूं। इसके तुरंत बाद मेरे मन में आया कि उसके लिए पैसे कहां से आएंगे और थोड़ी ही देर बाद मेरे मन ने मेरे इस प्रश्न का भी जवाब दे दिया की अगर कैमरा मुझे चाहिए तो मेहनत भी तो मुझे ही करनी पड़ेगी। तो क्यूं ना मैं किसी प्राइवेट कंपनी में काम करूं और कैमरे के लिए पैसे जमा करूं। यह सोचने के बाद मैं काम करने की परमिशन लेने अपनी मम्मी के पास गई तो उन्होंने मना कर दिया और जब मैंने पापा से बात की तो उन्होंने भी मना कर दिया और कहा कि शादी के बाद जो चाहे करना।
कुछ समय बीता और मेरी शादी हो गई, लेकिन मेरे अंदर की फोटोग्राफर बनने की इच्छा अभी भी खत्म नहीं हुई थी वो अंदर ही अंदर बढ़ती जा रही थी। फोटोग्राफर बनना मेरी जिंदगी का एक मात्र लक्ष्य बन चुका था और मेरा लड़की होना चुनौती पर मैं सब चुनौतियों को पार करके अपने सपने को हासिल करना चाहती थी। इसलिए मैंने मेरी शादी होने के बाद भी उम्मीद नहीं छोड़ी और एक दिन हिम्मत करके अपने पति को अपने सपने के बारे मे बताया और उसका जवाब भी वहीं था जो मेरे माता पिता का था कि फोटोग्राफी का काम लड़कियों के लिए नहीं बना है। जब मैंने अपनी सास और ससुर से इसके बारे में बात की तो उनका जवाब भी वहीं था। उन सभी का जवाब सुनने के बाद मैंने कुछ वक्त के लिए यही मान लिया कि शायद वो सही कह रहे हैं, लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया तो वह लोग मेरे ऊपर बहुत सारी पाबंदियां लगाने लगे कि लड़कियां ऐसे नहीं रहतीं वैसे नहीं रहतीं, लड़कियां घर से बाहर नहीं जातीं, लड़कियां यह नहीं करतीं वो नहीं करतीं। जहां तक की जब भी मैं खाना खाने बैठती तो मुझे महसूस करवाया जाता की मैं फ्री बैठकर खा रही हूं और किसी काम की नहीं हूं जबकि मैं घर के सारे काम करती थी। मुझे महसूस करवाया जाता की मैं कम दहेज लेकर आई हूं और मुझे मेरी छोटी छोटी जरूरतों के लिए उन लोगों के सामने हाथ फैलाने पड़ते, अगर उनका मन करता तो वह लोग मेरी जरूरत पूरी करते, मन न करता तो न करते। अब मुझे महसूस होने लगा था कि ग़लत मेरा सपना नहीं ग़लत इन लोगों की सोच है क्योंकि अगर लड़कियां इनके और समाज के हिसाब से चलें तो यह तो एक दिन उन्हें यह भी कह देंगे कि उनका सांस लेना भी ग़लत है। अब मुझे मेरा सपना सपने से ज्यादा मेरी जरूरत लगने लगा था क्योंकि अब मुझे अपने आप को साबित करना था कि मैं भी कमा सकती हूं, अपनी जरुरतें खुद पूरी कर सकती हूं। अब मेरे सामने पहली चुनौती थी मैं कोई काम करुं और फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट बनूं तांकि कोई भी मुझे मेरा सपना पूरा करने से न रोक सके। लेकिन मुझे क्या पता था कि वह लोग मुझे काम करने की परमिशन भी नहीं देंगे। जब मैंने अपने ससुर से अपने काम करने की परमिशन लेने गई तो उन्होंने साफ साफ मना कर दिया और कहा कि उनके घर की औरतें बाहर काम नहीं करतीं। मैंने सोचा कि मैं अपनी सास से बात करती हूं वह तो एक औरत है मेरी बात को समझेंगी। लेकिन जब मैं उनसे बात करने गई तो पड़ोस की दो औरतें पहले से ही वहां मौजूद थीं और वह मेरी सास को समझा रहीं थी कि लड़कियों को ज्यादा छूट नहीं देनी चाहिए , जब मेरी सास ने उन्हें मेरे फोटोग्राफी के शौक के बारे में बताया तो वह तरह तरह की बातें करने लगीं और कहने लगीं कि वह मुझे मुठ्ठी में रखे तो अच्छा है। और मेरी सास उनकी हां में हां मिला रही थी। मैं समझ गई थी कि मुझे न ही सुनने को मिलेगा। जब मैंने अपने पति से बात की तो उसने भी तोड़कर जवाब दे दिया और कहा कि अगर मैं बाहर काम करने जाऊंगी तो घर के काम कौन करेगा। काम करना चाहो तो परमिशन नहीं और ना करो तो फ्री बैठकर खाने के ताने। माता पिता से मिलने जाना हो तो भी उन लोगों की मर्जी जानो। अब मुझे साफ साफ नजर आ रहा था कि मेरी जिंदगी नरक समान बन चुकी है और मेरा अपने सपने को पंख देना नामुमकिन। अब मेरी सारी उम्मीदें टूट चुकी थीं और मुझे मेरी जिंदगी बिना किसी लक्ष्य की लगने लगी थी। मैं उस घर को छोड़ना चाहती थी मगर मेरे पास जाने की कोई जगह नहीं थी। क्योंकि मेरे माता पिता ने बड़ी मुश्किल से मेरा बोझ अपने सिर से उतारा था। उनके पास जाकर मैं फिर से उनके ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती थी। बोझ ही कहूंगी क्योंकि सबको लड़कियां बोझ ही लगती हैं, उनका इतना ध्यान जो रखना पड़ता है , एक लंबी लिस्ट याद रखनी पड़ती है यह मत करो वो मत करो। अंत जब मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आया तो मैंने सोच लिया कि जो लोग कठपुतली की तरह नचाना चाहते हैं। जो चाहते हैं कि मैं उनके इशारों पर चलूं, अगर वो कहें तो खाऊं और अगर वो कहें तो पीऊं, अगर वो कहें तो उठूं और अगर वो कहें तो बैठूं, जिन्हें दूसरों की जिंदगी के फैसले लेने का ज्यादा शौक है मैं उन्हें उनकी जिंदगी के फैसले लेने के काबिल भी नहीं छोडूंगी। उनकी जिंदगी ही खत्म कर दूंगी। इसी भावना के साथ मैंने सबसे पहले उन दो पडोंसनो को खत्म करने के बारे में सोचा जो हमारे घर पर आकर पाठ पढ़ाती थी कि लड़कियों को कैसे रखना चाहिए। और एक दिन मुझे पता चला कि उनमें से एक आज घर पर अकेली है तो मैंने मौके का फायदा उठाकर चुपके से उसके घर का गैस सिलेंडर लीक कर दिया। जब उसने सिलेंडर ओन किया तो सिलेंडर फट गया और वो मेरे रास्ते से हट गई। इसके कुछ ही दिनों बाद मुझे मेरा दूसरा मौका भी मिल गया। क्योंकि उस दिन हमारी दूसरी पड़ोसन छत पे कपड़े सुखा रही थी और आस पास कोई नहीं था। मैंने दबे पांव पीछे से जाकर उसे छत से धक्का दे दिया और वो वहीं मर गई। फिर मैंने अगला टारगेट अपने ससुर को बनाया क्योंकि उसकी मर्जी के बगैर घर का पत्ता भी नहीं हिलता था। एक दिन जब वह मोटरसाइकिल से किसी काम से बाहर जा रहा था तो मैंने उसके पानी में नींद की दवा मिला दी जिसके कारण उसका रास्ते में एक्सीडेंट हो गया और वो भी मर गया। अब पीछे मेरी सास और मेरा पति रह गये थे और मैं मौके की तलाश में थी कि कब मेरी सास घर पर अकेली हो और कब मैं उससे अपना सपना छूटने का बदला लूं। और एक दिन वह दिन भी आ गया जिस दिन मैं और मेरी सास घर पर अकेली थी। मैंने मौका संभाला और उसका मुंह पानी में डुबोकर उसकी सांस रोकने की कोशिश की मुझे क्या पता था कि उसी समय मेरा पति वहां आ जाएगा और मुझे ऐसा करते देख लेगा। जब उसने मुझे देख लिया तो मैंने अपने हाथ में चाकू उठा लिया और सोचा कि एक न एक दिन मैंने इसे भी मारना ही था तो क्यों न आज ही काम निपटा दूं। यही सोचकर मैंने उन दोनों को सारी सच्चाई बयां कर दी और उनके सामने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया। जुर्म कबूलने के बाद मैंने उन दोनों को चाकू से मार दिया। हमारे घर से शोर सुनकर धीरे धीरे मुहल्ले वाले हमारे घर पर जमा होने लगे। उस समय मैं अनजान थी कि मेरे पति की सांसें अभी चल रही थी और उसने मरते मरते मुहल्ले वालों को बता दिया कि मैंने पांच कत्ल किए हैं और पहले तीन कत्लों को हादसे की तरह दिखाया है। और मैंने किया भी बिल्कुल वैसा ही था। मैं तो चौथे कत्ल को भी हादसे की तरह बनाना चाहती थी मगर ऐसा नहीं हुआ।
गरिमा : और नित्या तुम्हें ऐसा करके मिला क्या ? तुम तो अपने आप को आजाद कराना चाहती थी न। क्या ऐसा करके तुम्हें आजादी मिल गई। बदलाव क्या हुआ पहले तुम घर में क़ैद थी और अब जेल में।
नित्या: ऐसा करके मेरे मन को सुकून मिल गया और वैसे भी ऐसा करने के सिवाय मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।
गरिमा(मन में) : उन लोगों ने नित्या पर इतनी पाबंदियां लगा रखीं थीं कि उन पाबंदियों ने नित्या का मानसिक संतुलन ही बिगाड़ दिया और वो पागलों की तरह जो उसके मन में आया करने लगी।
गरिमा (नित्या से): देखो नित्या मैं तुम्हारी सजा तो कम नहीं करवा सकती क्योंकि तुमने जो किया है बहुत ग़लत किया है लेकिन हां मैं उस अखबार में छपी खबर को जरूर बदलवा सकती हूं। पहले मुझे लगता था कि लोग अपने घर की औरतों को तुम्हारी तरह देखने लगे है और वो ग़लत है लेकिन अब मैं चाहती हूं कि वह लोग थोड़ा थोड़ा ऐसा करें भी। क्योंकि जब मैं न्यूज चैनलों में तुम्हारी कहानी बताउंगी तो वह लोग अपने घर की औरतों पे पाबंदियां लगाने से पहले डरेंगे क्योंकि उन्हें डर होगा कि वह औरतें भी तुम्हारी तरह न बन जाए।
नित्या: इसका मतलब है अब मैं किसी के गुलाम होने की जिम्मेदार नहीं होऊंगी?
गरिमा: नहीं।